भावनायें आहत होने की नौटंकी

जब से मोदी सरकार देश की सत्ता में आयी है तब से देश में धार्मिक आधार पर लोगों की भावनायें तेजी से आहत होने लगी हैं। किसी कार्टून, किसी कविता, किसी आरोप, किसी लेख, किसी धर्मग्रंथ पर प्रश्न आदि आदि मामलों से हिन्दू फासीवादी तत्वों की धार्मिक भावनायें आहत होने लगी हैं और इन आहत होने वाली भावनाओं से थानों में मुकदमे भी दर्ज होने लगे हैं।

अभी हाल में ही उत्तराखण्ड के नैनीताल में एक यूट्यूबर लड़की पर इसलिए मुकदमा दर्ज कर लिया गया कि उसने एक सार्वजनिक स्थान पर भगवा झण्डा फहराये जाने पर प्रश्न खड़ा करता वीडियो यू ट्यूब पर डाल दिया। उसने कहा कि सार्वजनिक स्थान पर तो तिरंगा झण्डा ही उचित होता। किसी धर्म विशेष का झण्डा सार्वजनिक स्थल पर नहीं होना चाहिए। एक धर्म निरपेक्ष देश के तौर पर उसकी बात एकदम उचित थी पर हिन्दू फासीवादियों को संविधान में लिखी धर्म निरपेक्षता से क्या लेना-देना। उनकी तो हिन्दू भावना आहत होनी ही थी और भगवा झण्डे पर प्रश्न से वह आहत हो गयी। परिणाम यह निकला कि उक्त लड़की पर मुकदमा दर्ज कर लिया गया।

इसी तरह जब कानपुर में बुलडोजर न्याय के चलते एक ब्राह्मण गरीब मां-बेटी आग में जलकर भस्म हो गये और गीतों के जरिये मोदी-योगी सरकार पर तंज कसने वाली नेहा राठौर ने नया गीत रच दिया तो बगैर किसी की शिकायत के कानपुर पुलिस की भावना आहत हो गयी और उसने नेहा राठौर को कारण बताओ नोटिस जारी कर प्रश्न पूछ लिया कि उनके गीत से सामाजिक सौहार्द बिगड़ने का खतरा है।

इससे पूर्व जब रामचरितमानस पर सपा के एक नेता ने स्त्री विरोधी, दलित-पिछड़ा विरोधी होने का आरोप लगाया था तब भी हिन्दू फासीवादी तत्वों की ‘मुलायम-क्षण भंगुर’ हो चुकी भावनायें आहत हो गयी थीं और नेता पर मुकदमा दर्ज हो गया था।

प्रश्न उठता है कि मोदी काल में हिन्दू फासीवादी क्या इतने धार्मिक हो गये हैं कि उनकी बात-बात पर भावनायें आहत होने लगती हैं या फिर सच्चाई कुछ और है। कुछ वक्त पूर्व जब एक हिन्दू धर्म गुरू की अलौकिक शक्तियों पर प्रश्न उठा था तो भी इन संघी तत्वों की भावनायें आहत हो गयी थीं और प्रश्न उठाने वालों के खिलाफ ढेरों तहरीरें दे दी गयी थीं। यह दीगर बात है कि गुरू की हिम्मत चुनौती देने वालों के सामने अपनी शक्तियों के प्रदर्शन की नहीं पड़ी।

अगर मोदी शासन में धर्म का इतना ही बोलबाला हो गया है तो भावनायें दूसरे धर्मों की भी आहत होती दिखनी चाहिए थीं पर ऐसा नहीं है। हिन्दू फासीवादी एक से बढ़कर एक जहरीले बयान, दूसरे धर्मों को खासकर मुस्लिम धर्म को कोसते हुए दे रहे हैं, गीत रच रहे हैं, सार्वजनिक स्थानों पर भाषण दे रहे हैं पर इन गीतों-भाषणों-झूठे आरोपों पर किसी थाने में मुकदमे दर्ज नहीं हो रहे हैं। खुद मोदी-शाही की जोड़ी ऐसे अनर्गल आरोप जब-तब लगाती रही है। चाहे कपड़ों से आतंकी ताकतों की पहचान की बात हो या फिर तीन तलाक पर मुस्लिम धर्म की खिंचाई या गौ हत्या-लव जिहाद-आतंकवाद- पाक परस्ती का आरोप हो, सब जगह मुस्लिम सीधे निशाने पर लिये जा रहे हैं। पर इन आरोपों पर थानों में मुकदमे दर्ज नहीं हो रहे हैं बल्कि इन्हें भारतीय समाज के आम चलन का हिस्सा मान लिया जा रहा है।

बात स्पष्ट है कि हिन्दू फासीवादी अपने वर्चस्व का इस्तेमाल कर वह माहौल पैदा कर रहे हैं कि कोई हिन्दू धर्म, उसके भगवा झण्डे उसके धर्म ग्रंथ-फर्जी बाबाओं पर प्रश्न न उठा सके। भावनायें आहत होना इनके लिए महज विरोधियों को दबाव में लेने का मामला है। अन्यथा तो ये हिन्दू फासीवादी मूलतः भावना रहित होते जा रहे हैं।

कोई हिन्दू धर्म ग्रंथ गौहत्या पर हत्या कर देने, लव जिहाद पर हत्या करने की बात नहीं करता। कोई हिन्दू धर्म ग्रंथ दिन-रात दूसरे धर्मों को गाली देने, दंगे रचने की सीख नहीं देता। पर हिन्दू फासीवादियों का हिन्दू धर्म ग्रंथ दरअसल हिटलर ग्रंथ है जहां भावनाओं की कोई जगह नहीं है। जहां राजनैतिक उद्देश्य की खातिर हर कुकर्म जायज है।

भावना रहित हिन्दू फासीवादियों की ओर से बड़े पैमाने पर भावना आहत होने के मुकदमे दर्ज कराना हमारे समय का बेहद क्रूर यथार्थ है।

आलेख

अमरीकी साम्राज्यवादी यूक्रेन में अपनी पराजय को देखते हुए रूस-यूक्रेन युद्ध का विस्तार करना चाहते हैं। इसमें वे पोलैण्ड, रूमानिया, हंगरी, चेक गणराज्य, स्लोवाकिया और अन्य पूर्वी यूरोपीय देशों के सैनिकों को रूस के विरुद्ध सैन्य अभियानों में बलि का बकरा बनाना चाहते हैं। इन देशों के शासक भी रूसी साम्राज्यवादियों के विरुद्ध नाटो के साथ खड़े हैं।

किसी को इस बात पर अचरज हो सकता है कि देश की वर्तमान सरकार इतने शान के साथ सारी दुनिया को कैसे बता सकती है कि वह देश के अस्सी करोड़ लोगों (करीब साठ प्रतिशत आबादी) को पांच किलो राशन मुफ्त हर महीने दे रही है। सरकार के मंत्री विदेश में जाकर इसे शान से दोहराते हैं। 

आखिरकार संघियों ने संविधान में भी अपने रामराज की प्रेरणा खोज ली। जनवरी माह के अंत में ‘मन की बात’ कार्यक्रम में मोदी ने एक रहस्य का उद्घाटन करते हुए कहा कि मूल संविधान में राम, लक्ष्मण, सीता के चित्र हैं। संविधान निर्माताओं को राम से प्रेरणा मिली है इसीलिए संविधान निर्माताओं ने राम को संविधान में उचित जगह दी है।
    

मई दिवस पूंजीवादी शोषण के विरुद्ध मजदूरों के संघर्षों का प्रतीक दिवस है और 8 घंटे के कार्यदिवस का अधिकार इससे सीधे जुड़ा हुआ है। पहली मई को पूरी दुनिया के मजदूर त्यौहार की

सुनील कानुगोलू का नाम कम ही लोगों ने सुना होगा। कम से कम प्रशांत किशोर के मुकाबले तो जरूर ही कम सुना होगा। पर प्रशांत किशोर की तरह सुनील कानुगोलू भी ‘चुनावी रणनीतिकार’ है