दर्दनाक मौत और मालिक का संवेदनहीन रवैया

हरिद्वार बेगमपुर सिडकुल एरिया में गंगा थर्मा पैक नाम की एक वैण्डर कम्पनी है जो डिंकसन, सोनी, हैवल्स, केन्ट आदि के लिए उत्पादन करती है। कम्पनी का मालिक बारह साल में तीन गुना से भी ज्यादा कमाई कर कई कम्पनी खड़ी कर चुका है। इस कम्पनी में पांच मालिक हैं। इस कम्पनी के मैनेजर का नाम मनोज कुमार त्रिपाठी है जो कि तानाशाही से कम्पनी में मजदूरों से बात करता है। उसके डर से कई स्टाफ के लोग भी नौकरी छोड़ कर चले गये हैं। मैनेजर मजदूरों के बीच खुद चेकिंग अभियान चलाता है। मजदूरों की जेब से सुर्ती-तम्बाकू-बीड़ी निकलने पर पांच सौ रु. जुर्माने के काट लिये जाते हैं।

कम्पनी में न्यूनतम वेतन तक नहीं दिया जाता है। मजदूरों को ठेके पर रखने की प्रथा है। ठेकेदार तीस दिन के हिसाब से पैसा देता है। महिला मजदूरों से भी मशीन चलवायी जाती है। मशीन चलाने वाले को भी हेल्पर का ही वेतन दिया जाता है। काम के घंटे बारह हैं। कम्पनी में चार सालों में 13 मशीनों से तीस मशीनें हो गयी हैं। जो आधुनिक मशीनें लगायी गयी हैं उनसे उत्पादन बहुत तेजी से होता है। इन आधुनिक मशीनों को भी अकुशल मजदूरों से चलवाया जाता है। खराब होने पर सुपरवाइजर खुद मशीनों को ठीक कर देता है। हर रविवार को कम्पनी में मशीनों की रिपेयरिंग का काम किया जाता है।

नये साल के दिन भी रविवार को प्रोडक्शन मैनेजर और सुपरवाइजर पूरे दिन कम्पनी में मशीनों की मरम्मत करवाते रहे। जब रात को नौ बजे कम्पनी से वे मोटरसाइकिल से जा रहे थे तभी एक गाड़ी ने उनको टक्कर मार दी। दोनों की मौके पर ही मौत हो गयी।

प्रोडक्शन मैनेजर व सुपरवाइजर की मौत की खबर जब मजदूरों को मिली तो वे पुलिस थाने पहुंच गये और मालिक के सामने मजदूरों ने दोनों लोगों के लिए आवाज उठायी। उन्होंने दोनों की मौत होने पर मुआवजे की बात की। मैनेजर मनोज कुमार त्रिपाठी मजदूरों से डांट-फटकार करने लगा। लेकिन मजदूर नहीं माने। मारे गये लोगों के परिजन भी साथ में थे। काफी संघर्ष के बाद मालिक ने कहा कि अभी 50 हजार रु. लेकर शव का दाह संस्कार करो उसके बाद पांच लाख 50 हजार रु. मुआवजा दिया जायेगा। कम्पनी में मजदूरों ने भी मिलकर दो दिन की अपनी मजदूरी मृतकों के परिजनों को दी। इस तरह सारे मजदूरों ने आपसी एकता और संवेदनशीलता का परिचय दिया।

अक्सर देखने में आता है कि फैक्टरी में स्टाफ के लोग मालिक के मुनाफे के लिए मजदूरों का शोषण-उत्पीड़न करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। लेकिन इतने पर भी मालिक उनके साथ भी संवेदनशीलता का व्यवहार नहीं करता। जब तक वे उसके लिए काम कर रहे हैं तभी तक वो उनको पूछता है बाकी उनसे उसे कोई सरोकार नहीं होता है। उसे बस अपने मुनाफे से सरोकार होता है। अगर मजदूर संघर्ष नहीं करते तो वह प्रोडक्शन मैनेजर व सुपरवाइजर की मौत पर कुछ भी नहीं देता। -रामकुमार

आलेख

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