हवाई द्वीप अग्निकांड : व्यवस्थाजन्य आपदा

आज के आधुनिक तकनीक के दौर में अमेरिका सरीखे विकसित देश का एक शहर आग से खाक हो जाये और सैकड़ों लोग मारे जायें, इस बातलाहैना पर विश्वास करना मुश्किल लगता है। पर यही सच है कि अमेरिका के हवाई द्वीप का लाहैना कस्बे का ज्यादातर हिस्सा आग की भेंट चढ़ चुका है। इससे भी क्रूर सच यह है कि इस आग से लगभग 100 लोग मारे जा चुके हैं और सैकड़ों अभी लापता हैं। 
    
कहा जा रहा है कि आग लाहैना शहर से करीब 50 किमी. दूर जंगलों में लगी। आग 5-6 घण्टे में तेज तूफानी हवाओं के चलते शहरर पहुंच गयी। स्थानीय अधिकारी आग की गम्भीरता का अनुमान लगाने में विफल रहे। उन्होंने काफी देरी से जब शहर खाली करने की चेतावनी जारी की तब तक मोबाईल नेटवर्क व विद्युत सप्लाई ध्वस्त होने की वजह से यह नागरिकों तक नहीं पहुंची। यह चेतावनी फोन पर संदेशों व फेसबुक आदि के जरिये जारी की गयी थी। पर शहर में आपदा की चेतावनी हेतु बने सायरनों को सक्रिय नहीं किया गया। अगर समय पर सायरन बजा कर लोगों को सचेत किया जाता तो ढेरों जानें बचाई जा सकती थीं। 
    
आज के आधुनिक तकनीक व संचार के साधनों वाले युग में जंगल में लगी किसी आग का पता सैटेलाइट के जरिये चन्द मिनटों में लग जाता है। तूफान का पता तो आने के पहले से ही चल जाता है। हवाई द्वीप की जंगलों की आग का भी पता चल चुका था। ऐसे में 5-6 घण्टे का समय किसी इलाके को खाली कराने व आग की रोकथाम के लिए काफी होता है। पर इसके बावजूद अगर दोनों काम समय से नहीं किये गये तो यह दिखलाता है कि अमेरिकी सरकार व स्थानीय शासन-प्रशासन दोनों ने इस मामले में गम्भीर चूक की। इसी के साथ हवाई द्वीप समुद्री तूफानों-सुनामी वाला क्षेत्र रहा है वहां ऐसी किसी आपदा के लिए जितने चेतावनी-सुरक्षा आदि के उपाय होने चाहिए, वह भी करने के लिए अमेरिकी सरकार तैयार नहीं है। 
    
इस बात का अंदाजा महज इस तथ्य से लगता है कि लाहैना में अग्निशमन गाड़ियों की संख्या काफी कम थी और वे इतनी बड़ी थीं कि शहर की मुख्य सड़क से ही पानी की बौछार डाल सकती थीं। वे गलियों में जाने लायक ही नहीं थीं। न ही दूसरे इलाकों से ऐसी गाड़ियों की तैनाती के प्रयास ही किये गये। परिणाम यह निकला कि लाहैना शहर की करीब 2700 इमारतें जल कर खाक हो गयीं। इमारतों के अंदर लोग जिन्दा भुन गये। ढेरों लोगों के आग से बचने के लिए समुद्र में कूदने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा। हालत यह हो गयी कि सड़कों पर खड़ी कारों के टायर तक गल गये। 
    
आग बुझने के 3 दिन बाद पूरा शहर एक भुतहा खण्डहर में बदल गया नजर आता है जहां सब कुछ जल कर खाक हो चुका है। लाशों को मलबे से निकालने का काम अगले कई दिनों तक चल सकता है। सैकड़ों लोग गायब हैं। साथ ही इस आग से जली धातुओं से जहरीली गैसें वातावरण में फैलने की भी संभावना लगायी जा रही है। करीब 850 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र आग की भेंट चढ़ चुका है। 
    
हवाई द्वीप अमेरिका में अमीरों की ऐशगाह के बतौर इस्तेमाल होता रहा है। यहां अमेरिका के अमीरों के जेफ बेजास से लेकर जुकरबर्ग तक ने बड़े-बड़े भूखण्ड खरीद रखे हैं। यहां ये अमीरजादे छुट्टी मनाने आते हैं। लाहैना जैसे शहर की बड़ी आबादी मजदूर-मेहनतकश रही है जिनमें से ढेरों अमीरजादों की ऐशगाह की सेवा में भी कार्यरत रहे हैं। 
    
लाहैना शहर की तबाही के पुनर्निर्माण में 5-6 अरब डालर खर्च की बात आ रही है। पर अमेरिकी सरकार इस राशि को खर्च करने को तैयार नहीं है। हालत यह है कि शहर से सुरक्षित निकाले गये लोगों की बुनियादी जरूरतें भी सरकार कायदे से पूरा नहीं कर रही है। अमेरिकी अमीरजादे दिखावे के लिए कुछ चैरिटी से अधिक कुछ नहीं कर रहे हैं। अमेरिकी शासकों पर युद्ध पर फूंकने-पूंजीपतियों को बेलआउट देने के लिए अरबों-खरबों डालर हैं पर लाहैना को फिर से बसाने व पीड़ित लोगों पर खर्च के लिए धन नहीं है। यह स्थिति दिखाती है कि विकसित मुल्क में भी आम जन की जान की कीमत लुटेरे शासकों की नजर में कुछ नहीं है। पूंजीवादी व्यवस्था की यही हकीकत है जिसे भारत सरीखे गरीब मुल्क से अमेरिका सरीखे अमीर मुल्क हर जगह देखा जा सकता है। स्पष्ट है कि लाहैना की आपदा प्राकृतिक से अधिक व्यवस्थाजन्य है।  

आलेख

अमरीकी साम्राज्यवादी यूक्रेन में अपनी पराजय को देखते हुए रूस-यूक्रेन युद्ध का विस्तार करना चाहते हैं। इसमें वे पोलैण्ड, रूमानिया, हंगरी, चेक गणराज्य, स्लोवाकिया और अन्य पूर्वी यूरोपीय देशों के सैनिकों को रूस के विरुद्ध सैन्य अभियानों में बलि का बकरा बनाना चाहते हैं। इन देशों के शासक भी रूसी साम्राज्यवादियों के विरुद्ध नाटो के साथ खड़े हैं।

किसी को इस बात पर अचरज हो सकता है कि देश की वर्तमान सरकार इतने शान के साथ सारी दुनिया को कैसे बता सकती है कि वह देश के अस्सी करोड़ लोगों (करीब साठ प्रतिशत आबादी) को पांच किलो राशन मुफ्त हर महीने दे रही है। सरकार के मंत्री विदेश में जाकर इसे शान से दोहराते हैं। 

आखिरकार संघियों ने संविधान में भी अपने रामराज की प्रेरणा खोज ली। जनवरी माह के अंत में ‘मन की बात’ कार्यक्रम में मोदी ने एक रहस्य का उद्घाटन करते हुए कहा कि मूल संविधान में राम, लक्ष्मण, सीता के चित्र हैं। संविधान निर्माताओं को राम से प्रेरणा मिली है इसीलिए संविधान निर्माताओं ने राम को संविधान में उचित जगह दी है।
    

मई दिवस पूंजीवादी शोषण के विरुद्ध मजदूरों के संघर्षों का प्रतीक दिवस है और 8 घंटे के कार्यदिवस का अधिकार इससे सीधे जुड़ा हुआ है। पहली मई को पूरी दुनिया के मजदूर त्यौहार की

सुनील कानुगोलू का नाम कम ही लोगों ने सुना होगा। कम से कम प्रशांत किशोर के मुकाबले तो जरूर ही कम सुना होगा। पर प्रशांत किशोर की तरह सुनील कानुगोलू भी ‘चुनावी रणनीतिकार’ है