आपका उन्माद विषाक्त समाज रच रहा है!

पहलगाम हमले के बाद पूंजीवादी मीडिया, संघी प्रचार मशीनरी के उन्मादी प्रचार से भारतीय समाज को एक विषाक्त समाज में तब्दील किया जा रहा है। एक ऐसा समाज जो सारा विवेक-सारी तर्क
पहलगाम हमले के बाद पूंजीवादी मीडिया, संघी प्रचार मशीनरी के उन्मादी प्रचार से भारतीय समाज को एक विषाक्त समाज में तब्दील किया जा रहा है। एक ऐसा समाज जो सारा विवेक-सारी तर्क
बहुत कम ईडी निदेशक रहे होंगे जो निरंतर चर्चा में बने रहते हैं। संजय मिश्रा ऐसों में सबसे ऊपर हैं। इनकी चर्चा भाजपा सरकार के इशारों पर नाचने वाले के तौर पर होती है। विपक्ष
फासीवादी ब्रिगेड ने रामनवमी पर इस बार भी जमकर उत्पात मचाया और विभिन्न राज्यों में शोभा यात्राओं के नाम पर भड़काऊ जुलूस निकाले। इस दौरान डी जे पर बेहद तेज आवाज में अश्लील औ
पिछले कुछ वर्षों से देश में अलग-अलग लोगों की भावनाएं समय-समय पर आहत होती रहती हैं। यह भावनाएं हैं कि किसी विशेष मामलों में आहत होती है। शायद यह भावनाएं किसी खास मौके पर आ
पिछले दिनों भारत के हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट के जज सवालों के घेरे में आ रहे हैं। ये सवाल अलग-अलग कोणों से उठ रहे हैं। इनमें भ्रष्टाचार से लेकर संवैधानिक दायित्वों त
यह कितना अजीब लगता है कि बाइस-तेइस साल से राजसी ठाठ-बाट के साथ रहने वाला आदमी हर मौके-बेमौके सारी दुनिया को बताता है कि उसका बचपन कितनी गरीबी में बीता। ऐसा लगता है मानो व
अमरीकी सरगना ट्रम्प लगातार ईरान को धमकी दे रहे हैं। ट्रम्प इस बात पर जोर दे रहे हैं कि ईरान को किसी भी कीमत पर परमाणु बम नहीं बनाने देंगे। ईरान की हुकूमत का कहना है कि वह
संघ और भाजपाइयों का यह दुष्प्रचार भी है कि अतीत में सरकार ने (आजादी के बाद) हिंदू मंदिरों को नियंत्रित किया; कि सरकार ने मंदिरों को नियंत्रित करने के लिए बोर्ड या ट्रस्ट बनाए और उसकी कमाई को हड़प लिया। जबकि अन्य धर्मों विशेषकर मुसलमानों के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। मुसलमानों को छूट दी गई। इसलिए अब हिंदू राष्ट्रवादी सरकार एक देश में दो कानून नहीं की तर्ज पर मुसलमानों को भी इस दायरे में लाकर समानता स्थापित कर रही है।
आजादी के दौरान कांग्रेस पार्टी ने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह उग्र भूमि सुधार करेगी और जमीन किसानों को बांटेगी। आजादी से पहले ज्यादातर जमीनें राजे-रजवाड़ों और जमींदारों के पास थीं। खेती के तेज विकास के लिये इनको जमीन जोतने वाले किसानों में बांटना जरूरी था। साथ ही इनका उन भूमिहीनों के बीच बंटवारा जरूरी था जो ज्यादातर दलित और अति पिछड़ी जातियों से आते थे। यानी जमीन का बंटवारा न केवल उग्र आर्थिक सुधार करता बल्कि उग्र सामाजिक परिवर्तन की राह भी खोलता।
अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं।