सवालों के घेरे में जज

पिछले दिनों भारत के हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट के जज सवालों के घेरे में आ रहे हैं। ये सवाल अलग-अलग कोणों से उठ रहे हैं। इनमें भ्रष्टाचार से लेकर संवैधानिक दायित्वों त
पिछले दिनों भारत के हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट के जज सवालों के घेरे में आ रहे हैं। ये सवाल अलग-अलग कोणों से उठ रहे हैं। इनमें भ्रष्टाचार से लेकर संवैधानिक दायित्वों त
यह कितना अजीब लगता है कि बाइस-तेइस साल से राजसी ठाठ-बाट के साथ रहने वाला आदमी हर मौके-बेमौके सारी दुनिया को बताता है कि उसका बचपन कितनी गरीबी में बीता। ऐसा लगता है मानो व
भारत के गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा में धमकी भरे अंदाज में फरमाया ‘भारत कोई धर्मशाला नहीं है कोई जब चाहे यहां आकर रह जाए’ं अमित शाह को शायद पता हो न हो कि भारत के अमीर भ
कश्मीर इस समय भयंकर नशे की चपेट में है। और यह नशा शराब या भांग का नहीं है बल्कि ज्यादा घातक नशीले पदार्थों का है। युवा आबादी इस नशे की चपेट में ज्यादा है।
इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है।
मनुस्मृति अपने जमाने में हिन्दू धर्म की कानूनी संहिता थी जिसमें चार वर्णों के लिए अपराध के लिए अलग-अलग दण्ड प्रावधान थे। जाहिर है यह वर्ण-जाति वर्चस्व का सबसे संगठित ग्रं
पिछले दिनों एक मजेदार वाकया घटा। हुआ यह कि तमिलनाडु का बजट पेश करते हुए वहां के मुख्यमंत्री स्तालिन ने रुपये के प्रतीक को बदलकर तमिल भाषा में लिख दिया। उनके इस काम से भार
आजकल दक्षिण भारत के राज्यों में खासकर इन राज्यों में सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं में बहुत बेचैनी है। यह बेचैनी कभी परिसीमन, कभी नई शिक्षा नीति, कभी भाषा के सवाल पर फूट पड़ती
असल में धार्मिक साम्प्रदायिकता एक राजनीतिक परिघटना है। धार्मिक साम्प्रदायिकता का सारतत्व है धर्म का राजनीति के लिए इस्तेमाल। इसीलिए इसका इस्तेमाल करने वालों के लिए धर्म में विश्वास करना जरूरी नहीं है। बल्कि इसका ठीक उलटा हो सकता है। यानी यह कि धार्मिक साम्प्रदायिक नेता पूर्णतया अधार्मिक या नास्तिक हों। भारत में धर्म के आधार पर ‘दो राष्ट्र’ का सिद्धान्त देने वाले दोनों व्यक्ति नास्तिक थे। हिन्दू राष्ट्र की बात करने वाले सावरकर तथा मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान की बात करने वाले जिन्ना दोनों नास्तिक व्यक्ति थे। अक्सर धार्मिक लोग जिस तरह के धार्मिक सारतत्व की बात करते हैं, उसके आधार पर तो हर धार्मिक साम्प्रदायिक व्यक्ति अधार्मिक या नास्तिक होता है, खासकर साम्प्रदायिक नेता।
जर्मनी में हुए हालिया चुनाव में जहां दक्षिणपंथी पार्टी सीडीयू 28.5 प्रतिशत वोट पाकर सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर सामने आई, वहीं विगत चुनाव में पांचवे नम्बर की पार्टी रही धुर
अमरीकी सरगना ट्रम्प लगातार ईरान को धमकी दे रहे हैं। ट्रम्प इस बात पर जोर दे रहे हैं कि ईरान को किसी भी कीमत पर परमाणु बम नहीं बनाने देंगे। ईरान की हुकूमत का कहना है कि वह
संघ और भाजपाइयों का यह दुष्प्रचार भी है कि अतीत में सरकार ने (आजादी के बाद) हिंदू मंदिरों को नियंत्रित किया; कि सरकार ने मंदिरों को नियंत्रित करने के लिए बोर्ड या ट्रस्ट बनाए और उसकी कमाई को हड़प लिया। जबकि अन्य धर्मों विशेषकर मुसलमानों के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। मुसलमानों को छूट दी गई। इसलिए अब हिंदू राष्ट्रवादी सरकार एक देश में दो कानून नहीं की तर्ज पर मुसलमानों को भी इस दायरे में लाकर समानता स्थापित कर रही है।
आजादी के दौरान कांग्रेस पार्टी ने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह उग्र भूमि सुधार करेगी और जमीन किसानों को बांटेगी। आजादी से पहले ज्यादातर जमीनें राजे-रजवाड़ों और जमींदारों के पास थीं। खेती के तेज विकास के लिये इनको जमीन जोतने वाले किसानों में बांटना जरूरी था। साथ ही इनका उन भूमिहीनों के बीच बंटवारा जरूरी था जो ज्यादातर दलित और अति पिछड़ी जातियों से आते थे। यानी जमीन का बंटवारा न केवल उग्र आर्थिक सुधार करता बल्कि उग्र सामाजिक परिवर्तन की राह भी खोलता।
अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं।