पंतनगर वि.वि. : परियोजना शिक्षकों पर शासन का हमला

पंतनगर/ उत्तराखंड शासन के 4 जुलाई 2023 के आदेशानुसार विश्वविद्यालय प्रशासन ने आदेश जारी कर 34 शिक्षकों (जो 60 वर्ष की आयु पूरी कर चुके थे) को एक झटके में सेवानिवृत्त कर दिया। इससे शिक्षक सकते में हैं। शासन-प्रशासन के आदेश का शिक्षकों ने विरोध भी किया। पर हमलावर प्रशासन धमकाने की कार्यवाही में जुटा हुआ है। शिक्षक-कर्मचारी विरोधी आदेश की सोशल मीडिया पर आलोचना, सवाल करने की पोस्ट को फारवर्ड करने मात्र से प्रशासन द्वारा एक वरिष्ठ प्राध्यापक डा. आर पी सिंह को निलंबित कर रुद्रप्रयाग स्थानांतरण भी कर दिया गया है जो इस आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट गये हैं। 
    
मालूम हो कि विश्वविद्यालय पंतनगर में कुछ शिक्षकों को उच्च शिक्षा विभाग द्वारा जनरल बजट में नियुक्त किया गया है और कुछ शिक्षकों को आई सी ए आर, नार्प, एकरिप, के वी के, भारत सरकार की परियोजनाओं में। यह परियोजनाएं नियत समय के लिए आती हैं और खत्म हो जाती हैं। ऐसे में परियोजना खत्म होने पर प्रशासन द्वारा शिक्षक-कर्मचारियों को आने वाली दूसरी नई परियोजनाओं में समायोजित कर दिया जाता रहा है। तब परियोजना-गैर परियोजना के शिक्षकों में कोई भेदभाव नहीं था। अब विश्वविद्यालय प्रशासन बिना शासन से पूछे परियोजनाओं में समायोजित नहीं कर पायेगा।
    
वर्ष 2012 में उत्तराखंड शासन के आदेशानुसार विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा आदेश जारी कर सभी परियोजनाओं में अध्यापन कार्य करा रहे सीनियर रिसर्च एसोसिएट, जूनियर रिसर्च एसोसिएट आदि पीएचडी धारक शिक्षकों एवं गैर परियोजना में अध्यापन कार्य करा रहे पीएचडी धारक सभी शिक्षकों की सेवानिवृत्ति उम्र 60 वर्ष से बढ़ाकर 65 वर्ष कर दी गई। तब से सभी शिक्षकों को 65 वर्ष की उम्र पूरी होने पर सेवानिवृत्त किया जा रहा था। 
    
पिछले कुछ वर्ष से शासन-प्रशासन में यह मुद्दा गरमाया कि कौन कक्षागत शिक्षण में आने वाले शिक्षक हैं और कौन कक्षागत शिक्षण में नहीं वाले शिक्षक हैं। शासन-प्रशासन द्वारा परियोजनाओं में अध्यापन कार्य कर रहे शिक्षकों को कक्षागत (Class room teaching) शिक्षक मानना बन्द कर दिया गया व सेवानिवृत्त शिक्षकों-कर्मियों की ग्रेच्युटी, टर्मिनल लीव, पेंशन, राशिकरण बंद कर दिया गया। वर्ष 2017 में विश्वविद्यालय प्रशासन और शिक्षकों के संगठन के बीच समझौता किया गया कि परियोजनाओं से सेवानिवृत्त हो रहे शिक्षकों-कर्मियों की ग्रेच्युटी, पेंशन आदि लाभ विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा भुगतान किया जाएगा। तब से सभी शिक्षकों की भांति परियोजना के शिक्षकों को भी सेवानिवृत्ति उपरांत उपरोक्त पेंशन, ग्रेच्युटी, टर्मिनल लीव आदि का भुगतान किया जा रहा था। शासन के इस रुख के खिलाफ शिक्षकों ने हाईकोर्ट नैनीताल में भी याचिका दायर की थी। 10 अप्रैल 2023 को हाईकोर्ट भी शासन की हां में हां मिलाते अपनी सुनवाई में शिक्षकों को 60 वर्ष में सेवानिवृत्त करने की बात कही। और उसी को लेकर 4 जुलाई 2023 के उपरोक्त शासन के आदेशानुसार विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा सभी परियोजनाओं में अध्यापन कार्य करा रहे शिक्षकों को सेवानिवृत्त कर दिया गया है। 30 जून 2023 को सेवानिवृत्त हो चुके अथवा आगे सेवानिवृत्त होने वाले शिक्षकों-कर्मचारियों की ग्रेच्युटी, टर्मिनल लीव, पेंशन, राशिकरण का भुगतान करने का अभी कोई पता नहीं है। टर्मिनल लीव तो पहले से ही लम्बित है। इस सम्बन्ध में कुमाऊं कमिश्नर की अध्यक्षता में जांच कमेटी को कोई रास्ता निकालना था। पता चला कि जांच कमेटी भंग कर दी गई है। अब शिक्षक इस मामले में उत्तराखंड हाईकोर्ट के फैसले का इंतजार कर रहे हैं। हाईकोर्ट का फैसला क्या आता है, कब आता है, तभी कुछ पता चलेगा। शासन-प्रशासन तो 60 वर्ष के बाद 65 वर्ष की उम्र में सेवानिवृत्त हो चुके शिक्षकों से वेतन-भत्ता रिकवरी की भी बात कर रहा है।
    
उत्तराखंड शासन की अचानक नींद खुली। वह अपने पुराने शासनादेशों एवं उत्तर प्रदेश विश्वविद्यालय पंतनगर अधिनियम का हवाला देते हुए तर्क दे रहा है कि परियोजनाओं में अध्यापन कार्य करा रहे शिक्षकों को 60 वर्ष से 65 वर्ष की उम्र में सेवानिवृत्त का लाभ अनुचित है। कि इन्हें कक्षागत शिक्षक (Class room teaching), प्राध्यापक नहीं माना जा सकता है। विश्वविद्यालय प्रबंधन परिषद ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर गलत लाभ दिया है। कि गैर परियोजना के शिक्षकों की भांति उनकी शैक्षिक योग्यता और नियुक्ति प्रक्रिया समान होने के बावजूद उन्हें कक्षा वाला (बसें तववउ जमंबीपदह), शिक्षक नहीं माना जा सकता, आदि आदि। नींद से जागा उत्तराखंड शासन ऐसे कुतर्क कर रहा है कि मानो विश्वविद्यालय को स्थापना समय से चलाने वाले मूर्ख रहे हैं। जबकि विश्वविद्यालय प्रबंधन परिषद द्वारा शासनादेशों के आलोक में ही अन्य शिक्षकों की भांति परियोजना में अध्यापन कार्य करा रहे शिक्षकों को देय लाभ एवं वर्ष 2012 से 65 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त किए जाते रहे हैं। इतना ही नहीं इसके लिए विश्वविद्यालय की मांग के अनुरूप सरकार लगातार धन भी देती रही है। गौरतलब है कि एक समय था जब विश्वविद्यालय चलाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने विश्वविद्यालय में प्रबंधन परिषद का गठन कर विश्वविद्यालय प्रशासन को अतिरिक्त अधिकार दिए थे। अब उत्तराखंड सरकार कह रही है कि विश्वविद्यालय प्रबंधन परिषद के पास अधिकार ही नहीं हैं। 
    
निजीकरण, उदारीकरण की जनविरोधी नीतियों को आगे बढ़ाते हुए शासन-प्रशासन द्वारा कई वर्षों से विश्व विख्यात विश्वविद्यालय की अनदेखी, उपेक्षा कर विश्वविद्यालय के बजट में कटौती की जा रही है। इससे ठेका मजदूरों को पूरे माह काम और वेतन नहीं मिलता, नियमित कर्मचारी सहित छात्रों के शिक्षण शोध भी संसाधनों की कमी से प्रभावित हो रहे हैं। शासन ने अपने ही संस्थान विश्वविद्यालय को शंका की नजर से देखते हुए जनरल बजट से नियुक्त किए गए शिक्षकों, कर्मचारियों का वेतन-ग्रेच्युटी-पेंशन आदि का भुगतान ऊधम सिंह कोषागार से किए जाने का आदेश दिया है। पर परियोजना के शिक्षकों-कर्मियों का नहीं किया गया है। अब परियोजनाओं में समय से बजट प्राप्त न होने पर परियोजना में कार्यरत शिक्षकों, कर्मचारियों का वेतन, ग्रेच्युटी, पेंशन आदि का समय से भुगतान होने में भी बाधा उत्पन्न होगी। यह शिक्षक, कर्मचारी, मजदूरों सभी पर तीखा हमला किया गया है। 
    
हमलावर शासन-प्रशासन के सामने शिक्षकों का संगठन पंतनगर टीचर्स एसोसिएशन, शिक्षक-कर्मचारी विरोधी आदेश का कोई प्रतिरोध दर्ज नहीं करा पाया है। शिक्षकों में परियोजना-गैर परियोजना में बंटे होने और पदाधिकारियों के तुच्छ निजी स्वार्थ से भी संगठन में कमजोरी आई है। शिक्षकों का संगठन भी मजदूर संगठनों से एकता करने में शर्म महसूस कर बहुत दूर रहता है। इसी कमजोरी का फायदा उठाकर वार्ता करने गए शिक्षकों की एसोसिएशन के पदाधिकारियों को कुलपति ने हाईकोर्ट और शासनादेश का हवाला देकर हाल-फिलहाल शांत कर दिया है।
    
शासन-प्रशासन द्वारा हाल-फिलहाल परियोजना के शिक्षकों पर तीखा हमला बोला गया है। गैर परियोजना के शिक्षक अपने को सुरक्षित महसूस कर भ्रम के शिकार हैं। शासन-प्रशासन द्वारा हमला मात्र परियोजना के शिक्षकों पर ही नहीं है यह हमला शिक्षकों, कर्मचारियों, ठेका मजदूरों, छात्रों सभी पर है। समय रहते शिक्षक, कर्मचारी, मजदूरों की वर्गीय एकता और जुझारू संघर्ष ही हमलावर शासन-प्रशासन को पीछे धकेल सकता है। -पंतनगर संवाददाता

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