विश्व गुरू बनने के आधुनिक नुस्खे

देश के हिन्दू फासीवादियों की लम्बे समय से तमन्ना रही है कि भारत एक बार फिर विश्व गुरू बन जाये जैसा कि वह उनकी नजर में अतीत में था। अब हिन्दू फासीवादी यह मानने लगे हैं कि भारत भले ही विश्व गुरू न बना हो पर संघी प्रधानमंत्री मोदी जरूर विश्व गुरू बन गये हैं। 
    
हिन्दू फासीवादियों की जमात से अलग बाकी लोगों को अचरज होता है कि आखिर मोदी किस बात के विश्व गुरू बन गये हैं? उन्होंने नेहरू जैसा पंचशील या गुट निरपेक्षता का सिद्धान्त सामने नहीं रखा। उन्होंने 1970 के दशक के तीसरी दुनिया के नेताओं की तरह नयी विश्व व्यवस्था की मांग भी नहीं की। उन्होंने आज दुनिया भर को सता रही, बेरोजगारी, महंगाई, लड़ाई-झगड़े जैसी समस्याओं के हल का भी कोई रास्ता नहीं सुझाया। फिर भी वे विश्व गुरू कैसे हो गये?
    
विश्व गुरू का मतलब होता है कि दुनिया के लोग उसकी बात मानें। पर मोदी की हालत यह है कि कभी भारत के संरक्षित देश माने जाने वाले नेपाल और भूटान भी उसकी बात नहीं सुनते। बांग्लादेश और श्रीलंका से भी रिश्ते पहले जैसे नहीं रहे। रही पाकिस्तान की बात तो हिन्दू फासीवादियों ने स्वयं ही अपने से सात गुना छोटे देश को अपने बराबर घोषित कर दिया है- बार-बार उससे अपनी तुलना करके। रही-सही कसर अभी ताजा कनाडा प्रकरण ने पूरी कर दी जिसमें मोदी विश्वगुरू की तरह नहीं बल्कि अपराधी की तरह कठघरे में खड़े कर दिये गये। 
    
लेकिन इन सब सामान्य सी सच्चाईयों का उन हिन्दू फासीवादियों के लिए कोई मतलब नहीं है जो यह मानते हैं कि मोदी विश्वगुरू बन गये हैं और दुनिया भर में भारत का डंका पीट रहे हैं। हिन्दू फासीवादी ही नहीं, बहुत सारे अन्य लोग भी मानते हैं कि मोदी के कारण दुनिया भर में भारत का डंका बज रहा है। मोदी की तथाकथित ऊंची लोकप्रियता में इसका बड़ा हाथ है। 
    
अब सवाल उठता है कि मोदी ने यह हासिल किया कैसे? आधुनिक जमाने में बिना कुछ करे-धरे कोई विश्वगुरू कैसे बन सकता है? विश्वगुरू बनने का आधुनिक नुस्खा क्या है?
    
विश्वगुरू बनने का आधुनिक नुस्खा यह है कि आप परले दर्जे के झूठे और धूर्त नेता हों, आप के पास ऐसे ही समर्थकों की पर्याप्त फौज हो तथा आधुनिक प्रचार माध्यमों का आपको भरपूर साथ मिले। झूठे और धूर्त नेता को बस तथ्यों और सत्यों की परवाह किये बिना दावे करने होते हैं, उसके बाद उसके समर्थक उस दावे को हजारों-लाखों बार दुहरा कर सत्य बना देते हैं। लोग एक ही झूठ को सैकड़ों-हजारों बार सुनकर सच मानते लगते हैं, खासकर तब जब उन तक विरोधी बात न पहुंच रही हो। इस तरह लोगों को कम से कम कुछ समय के लिए बेवकूफ बनाया जा सकता है। और हिन्दू फासीवादी चूंकि चुनाव-दर-चुनाव सफर करते हैं, उनका मकसद पूरा होता रहता है। 
    
लेकिन विश्वगुरू बनने के इस नुस्खे की देश को भारी कीमत चुकानी पड़ रही है। विश्वगुरू का भांडा न फोड़ने के लिए साम्राज्यवादी इसकी भारी कीमत वसूल रहे हैं। इस समय पश्चिमी साम्राज्यवादियों, खासकर अमेरिका से चोरी-छिपे जो समझौते हो रहे हैं, वे देश के लिए काफी खतरनाक हैं। यहां तक कि चीनी साम्राज्यवादी भी मोदी और हिन्दू फासीवादियों की इस कमजोरी को भांपकर भारत सरकार को दबा रहे हैं। विश्वगुरू बन चुके मोदी की हालत यह हो गई है कि वे चीन का नाम भी नहीं ले पाते। शी जिंगपिंग ने जी-20 की बैठक में आये बिना वह हासिल कर लिया जो वे चाहते थे। 
    
इस विश्वगुरू मोदी की हालत उससे बेहतर नहीं है जो उस नंगे राजा की थी जो बिना कपड़ों के खूब अकड़ कर चल रहा था कि उसने बेहद शानदार और लाजबाव कपड़े पहन रखे हैं। बस फरक यह है कि उस राजा को एक ठग ने बेवकूफ बनाया था पर यहां हिन्दू फासीवादियों और मोदी ने खुद ही यह कर डाला है। 

आलेख

अमरीकी साम्राज्यवादी यूक्रेन में अपनी पराजय को देखते हुए रूस-यूक्रेन युद्ध का विस्तार करना चाहते हैं। इसमें वे पोलैण्ड, रूमानिया, हंगरी, चेक गणराज्य, स्लोवाकिया और अन्य पूर्वी यूरोपीय देशों के सैनिकों को रूस के विरुद्ध सैन्य अभियानों में बलि का बकरा बनाना चाहते हैं। इन देशों के शासक भी रूसी साम्राज्यवादियों के विरुद्ध नाटो के साथ खड़े हैं।

किसी को इस बात पर अचरज हो सकता है कि देश की वर्तमान सरकार इतने शान के साथ सारी दुनिया को कैसे बता सकती है कि वह देश के अस्सी करोड़ लोगों (करीब साठ प्रतिशत आबादी) को पांच किलो राशन मुफ्त हर महीने दे रही है। सरकार के मंत्री विदेश में जाकर इसे शान से दोहराते हैं। 

आखिरकार संघियों ने संविधान में भी अपने रामराज की प्रेरणा खोज ली। जनवरी माह के अंत में ‘मन की बात’ कार्यक्रम में मोदी ने एक रहस्य का उद्घाटन करते हुए कहा कि मूल संविधान में राम, लक्ष्मण, सीता के चित्र हैं। संविधान निर्माताओं को राम से प्रेरणा मिली है इसीलिए संविधान निर्माताओं ने राम को संविधान में उचित जगह दी है।
    

मई दिवस पूंजीवादी शोषण के विरुद्ध मजदूरों के संघर्षों का प्रतीक दिवस है और 8 घंटे के कार्यदिवस का अधिकार इससे सीधे जुड़ा हुआ है। पहली मई को पूरी दुनिया के मजदूर त्यौहार की

सुनील कानुगोलू का नाम कम ही लोगों ने सुना होगा। कम से कम प्रशांत किशोर के मुकाबले तो जरूर ही कम सुना होगा। पर प्रशांत किशोर की तरह सुनील कानुगोलू भी ‘चुनावी रणनीतिकार’ है