बेलसोनिका यूनियन पर राजनीतिक हमले के विरोध में मजदूर सम्मेलन

गुड़गांव/ गुड़गांव-मानेसर की बेलसोनिका यूनियन को रजिस्ट्रार ट्रेड यूनियन, हरियाणा द्वारा यूनियन का रजिस्ट्रेशन रद्द करने की धमकी के साथ जारी कारण बताओ नोटिस के विरुद्ध मजदूरों का आक्रोश लगातार बढ़ रहा है। इस मुद्दे पर 12 फरवरी को लघु सचिवालय, गुड़गांव में आयोजित मजदूर सम्मेलन में ठेका मजदूर को यूनियन की सदस्यता देने के विरोध में जारी रजिस्ट्रार के नोटिस को मजदूरों पर राजनीतिक हमला बताते हुये इसके विरुद्ध आंदोलन को व्यापक बनाने का संकल्प लिया गया।

सम्मेलन को सम्बोधित करते हुये बेलसोनिका यूनियन के महासचिव अजीत ने कहा कि यूनियन द्वारा ठेका मजदूर को यूनियन की सदस्यता देना भारतीय संविधान के आर्टिकल-19 (1)(C), ट्रेड यूनियन एक्ट 1926 एवं यूनियन के संविधान के नियम-5 के अनुरूप पूरी तरह वैधानिक है। जबकि रजिस्ट्रार ट्रेड यूनियन, हरियाणा द्वारा जारी नोटिस पूरी तरह से गैर कानूनी एवं यूनियन के कामों में अनधिकृत हस्तक्षेप है, कि इस नोटिस का मकसद स्थायी एवं ठेका मजदूरों की वर्गीय एकता को तोड़ना है, जिसे बिल्कुल भी बरदाश्त नहीं किया जायेगा।

बेलसोनिका यूनियन के समर्थन में मजदूर सम्मेलन में पहुंचे विभिन्न मजदूर संगठनों, यूनियनों एवं छात्र-महिला संगठनों के प्रतिनिधियों ने कहा कि आज जब केंद्र की सत्ता पर फासीवादी ताकतें बैठी हैं जो कि सभी राजकीय संस्थाओं समेत संविधान तक पर हमले बोल रही हैं, जबकि जनता के जनवादी अधिकारों पर खुलेआम हमले हो रहे हैं और कारपोरेट पूंजीपतियों के पक्ष में मजदूर-मेहनतकश जन विरोधी क़ानून बनाये जा रहे हैं, तब ऐसे दौर में बेलसोनिका यूनियन द्वारा ठेका मजदूर को यूनियन का सदस्य बनाने का कदम न सिर्फ साहसपूर्ण अपितु बेहद महत्वपूर्ण भी है। इसने मजदूर आंदोलन को आगे बढ़ाने में मजदूरों की वर्गीय एकता के महत्त्व एवं ठेका मजदूरों के संगठित होने के अधिकार पर बहस को पटल पर ला दिया है।

वक्ताओं ने कहा कि आज देश में संगठित मजदूरों में ठेका एवं अस्थायी मजदूर बहुसंख्यक हैं और अतिशय शोषण का शिकार हैं। उदारीकरण- निजीकरण के पिछले तीन दशकों में स्थायी प्रकृति के कामों पर गैरकानूनी रूप से ठेके के तहत मजदूरों से काम करवाना एकदम आम हो चुका है। ठेका मजदूरों से बेहद कम वेतन पर काम कराकर और उनकी जीवन परिस्थितियों को नारकीय बनाकर देशी-विदेशी पूंजीपति भारी मुनाफा कमा रहे हैं। इन्होंने मजदूरों को स्थायी एवं अस्थायी अथवा ठेका मजदूरों में बांटकर मजदूरों की यूनियनों को भी बेहद कमज़ोर बना दिया है। यही वजह है कि बेलसोनिका यूनियन द्वारा ठेका मजदूर को यूनियन की सदस्यता देने पर पूंजीपतियों और श्रम विभाग में खलबली मची हुई है, क्योंकि स्थायी ओर अस्थायी अथवा ठेका मजदूरों की वर्गीय एकता न सिर्फ मजदूरों की सामूहिक सौदेबाजी की ताकत को कहीं अधिक बढ़ा देगी अपितु ठेका मजदूरों के अतिशय शोषण के विरुद्ध भी संगठित संघर्ष को जन्म देगी।

इसके अलावा वक्ताओं ने चार नये लेबर कोड्स को अपने निशाने पर लेते हुये कहा कि इन घोर मजदूर विरोधी लेबर कोड्स में एकतरफा छंटनी -तालाबंदी की सीमा को 100 मजदूरों तक वाले फैक्टरी-संस्थानों से बढाकर 300 मजदूरों तक वाले फैक्टरी-संस्थानों तक कर दिया गया है। ये लेबर कोड्स अभी औपचारिक तौर पर लागू भी नहीं हुये हैं लेकिन विभिन्न राज्य सरकारों खासकर भाजपाई राज्य सरकारों ने लेबर कोड्स के इस प्रावधान को पिछले दरवाजे से लागू भी कर दिया है। और देशी-विदेशी पूंजीपति इसका इस्तेमाल स्थायी मजदूरों की छंटनी करने और यूनियनों को तोड़ने में कर रहे हैं। बेलसोनिका का मालिक-प्रबंधन भी यही साजिश कर रहा है। गौरतलब है कि इन लेबर कोड्स के लागू होने के बाद स्थायी मजदूरों की नौकरी की सुरक्षा और कार्यस्थल पर उनकी विशेष स्थिति दोनों समाप्त हो जायेंगी।

वक्ताओं ने कहा कि बेलसोनिका यूनियन पर मौजूदा हमला सभी यूनियनों एवं पूरे मजदूर आंदोलन पर हमला है। और हमलावार पूंजीपतियों एवं कारपोरेट हित में एकदम नंगे होकर काम कर रही मोदी सरकार को पीछे धकेलने के लिये आवश्यक है कि स्थायी, ठेका, ट्रेनी इत्यादि सभी विभाजन भुलाकर पूरे औद्योगिक क्षेत्र के स्तर पर मजदूरों की वर्गीय एकता कायम की जाये।

मजदूर सम्मेलन में बेलसोनिका के स्थायी एवं ठेका मजदूरों के अलावा हिटाची के संघर्षरत ठेका मजदूर भी अपनी यूनियन के साथ शामिल हुये। साथ ही मारुति सुजुकी ( मानेसर ), पावर ट्रेन, रोहतक से आइसिन, फरीदाबाद से औद्योगिक ठेका मजदूर यूनियन, बरेली (उत्तरप्रदेश) की मार्किट वर्कर्स यूनियन, पंतनगर (उत्तराखंड) की ठेका मजदूर कल्याण समिति, सिडकुल (उत्तराखंड) से इंटरार्क, गुजरात अंबुजा, यजाकि, बडवे, राजा बिस्कुट, आई टी सी की फूडस श्रमिक यूनियन, भेल की बी एम टी यू एवं प्रगतिशील भोजन माता संगठन इत्यादि यूनियनों के प्रतिनिधियों ने भी बढ़ चढ़ कर भागीदारी की। इसके अलावा इंकलाबी मजदूर केंद्र, मजदूर सहयोग केंद्र, आई एफ टी यू (सर्वहारा), सीटू, प्रगतिशील महिला एकता केंद्र, जनवादी महिला समिति, परिवर्तनकामी छात्र संगठन, मासा, मजदूर पत्रिका एवं हमारी सोच पत्रिका के प्रतिनिधियों ने भी संघर्ष में बेलसोनिका यूनियन को अपना समर्थन दिया। -गुड़गांव संवाददाता

आलेख

अमरीकी साम्राज्यवादी यूक्रेन में अपनी पराजय को देखते हुए रूस-यूक्रेन युद्ध का विस्तार करना चाहते हैं। इसमें वे पोलैण्ड, रूमानिया, हंगरी, चेक गणराज्य, स्लोवाकिया और अन्य पूर्वी यूरोपीय देशों के सैनिकों को रूस के विरुद्ध सैन्य अभियानों में बलि का बकरा बनाना चाहते हैं। इन देशों के शासक भी रूसी साम्राज्यवादियों के विरुद्ध नाटो के साथ खड़े हैं।

किसी को इस बात पर अचरज हो सकता है कि देश की वर्तमान सरकार इतने शान के साथ सारी दुनिया को कैसे बता सकती है कि वह देश के अस्सी करोड़ लोगों (करीब साठ प्रतिशत आबादी) को पांच किलो राशन मुफ्त हर महीने दे रही है। सरकार के मंत्री विदेश में जाकर इसे शान से दोहराते हैं। 

आखिरकार संघियों ने संविधान में भी अपने रामराज की प्रेरणा खोज ली। जनवरी माह के अंत में ‘मन की बात’ कार्यक्रम में मोदी ने एक रहस्य का उद्घाटन करते हुए कहा कि मूल संविधान में राम, लक्ष्मण, सीता के चित्र हैं। संविधान निर्माताओं को राम से प्रेरणा मिली है इसीलिए संविधान निर्माताओं ने राम को संविधान में उचित जगह दी है।
    

मई दिवस पूंजीवादी शोषण के विरुद्ध मजदूरों के संघर्षों का प्रतीक दिवस है और 8 घंटे के कार्यदिवस का अधिकार इससे सीधे जुड़ा हुआ है। पहली मई को पूरी दुनिया के मजदूर त्यौहार की

सुनील कानुगोलू का नाम कम ही लोगों ने सुना होगा। कम से कम प्रशांत किशोर के मुकाबले तो जरूर ही कम सुना होगा। पर प्रशांत किशोर की तरह सुनील कानुगोलू भी ‘चुनावी रणनीतिकार’ है