सम्पादकीय

पहलगाम आतंकी हमले से निकलने वाले सबक

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पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान जैसे युद्ध के मुहाने पर पहुंच गये हैं। संधियां निलम्बित की जा रही हैं और व्यापार से लेकर लोगों के आने-जाने पर प्रतिबंध लगाये जा

चट्टान में भी फूल खिल सकते हैं; शर्त खूने जिगर से सींचने की है

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यह एक ठोस हकीकत है कि दुनिया में कहीं भी मजदूर राज नहीं है। जहां कहीं कम्युनिस्ट नामधारी या मजदूर पार्टियां शासन में हैं भी, वहां भी मजदूर राज नहीं है। यह बात चीन, वियतना

कृत्रिम बुद्धिमत्ता और वास्तविक दुनिया

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गौर से देखा जाये तो मानव ज्ञान के तीन अहम स्रोत रहे हैं। जिन्हें- ‘‘उत्पादन, वर्ग संघर्ष और वैज्ञानिक प्रयोग’’- जैसे तीन क्षेत्रों में बांटा जाता रहा है। वास्तविक दुनिया में उत्पादन (यानी कृषि, उद्योग से लेकर वैज्ञानिक उपकरण) का विशाल क्षेत्र और मानव जाति के भरण-पोषण, रहन-सहन आदि को किन्हीं कृत्रिम बुद्धिमत्ता से लैस रोबोटिक उपकरणों से प्रतिस्थापित करना शेखचिल्लीपना है। और फिर कोई तो होगा जो इन मशीनों का निर्माण व उपयोग करेगा। और जहां तक वर्ग संघर्ष के क्षेत्र की बात है वहां असल झगड़ा मनुष्यों के बीच है। एक ओर पूंजीपति है तो दूसरी ओर मजदूर, किसान और अन्य मेहनतकश हैं। साम्राज्यवादी देशों के आपसी झगड़े हैं तो ये देश तीसरी दुनिया के देशों का शोषण-दोहन करते हैं। यानी मनुष्यों की अति विशाल बहुसंख्या शोषित-उत्पीड़ि़त है। और रही बात विज्ञान और वैज्ञानिक प्रयोगों की तो ये आज एकाधिकारी पूंजी के सेवक बने हुए हैं।

तुम्हारे झूठे ख्वाबों की कीमत हम क्यों चुकायें

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दुनिया में गाहे-बगाहे इस बात पर चर्चा चलती रहती है कि क्या भारत भविष्य में एक महाशक्ति (सुपर पावर) बन सकता है। क्या भारत चीन की तरह उभर सकता है। और अक्सर ही इसका जवाब ‘‘न

फिलिस्तीन जिन्दाबाद !

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के शपथ ग्रहण समारोह में जब दुनिया के सबसे अमीर कारोबारी एलन मस्क ने नाजी अभिवादन किया था तब ही यह बात स्पष्ट हो चुकी थी कि अब ये नये नाज

युद्ध विराम समझौता

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काफी ना-नुकुर और षड्यंत्रकारी हील-हवाली के बाद इजरायल के नाजी जियनवादी क्रूर शासक, हमास के साथ ‘युद्ध विराम’ के लिए राजी हुए। और अंततः 19 जनवरी को युद्ध विराम समझौता लागू

एक देश-एक चुनाव : भारतीय गणराज्य का नया शोकगीत

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‘एक देश-एक चुनाव’ हिन्दू फासीवादियों के अलावा इनके आका अडाणी-अम्बानी-टाटा जैसी एकाधिकारी घरानों की भी चाहत है। समय-समय पर होने वाले चुनाव इन्हें अपनी लूट में बाधा दिखाई देते हैं। अगर सरकार गिरती, बनती-बिगड़ती है तो इनका गणित गड़बड़ा जाता है। इन्हें नयी सौदेबाजियां करनी पड़ती हैं। जिस ‘‘विकास’’ का हवाला मोदी एण्ड कम्पनी तथा एकाधिकारी घरानों का पालतू मीडिया रात-दिन देता है। वह क्या है? वह भारत के प्राकृतिक संसाधनों की लूट के साथ भारत के मजदूरों-किसानों का निर्मम शोषण है।

लो, एक साल और बीता

चुनावी साल बीतने के बाद भारत लगभग वहीं खड़ा है जहां वह पिछले वर्ष खड़ा था। मणिपुर जलता रहा और हिन्दू फासीवादियों ने पूरे देश में अलग-अलग मुद्दों के जरिये देश में मुसलमानों के प्रति घृणा, वैमनस्य की आग को भड़काने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। इस सच्चाई के बावजूद कि आम चुनाव में हिन्दू फासीवादियों को जीत बहुत कठिनाई से मिली है उन्होंने अपने फासीवादी कुकृत्यों को ही अपनी जीत का मूल सूत्र बनाया हुआ है। योगी, हिमंत विस्वा सरमा जैसे कई-कई छोटे-छोटे मोदी अपने राजनैतिक कैरियर को उसी लाइन पर बढ़ा रहे हैं जिस पर चलकर मोदी सत्ता के शीर्ष पर पहुंचे। 

‘‘अरबन नक्सल’’

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मोदी साहब वस्तुतः जो चाहते हैं वह यह कि कोई भी आम लोगों के बारे में बात न करें। न कोई उनकी कोई मांग उठाये। क्योंकि वे ही सबसे बड़े गरीब नवाज हैं। उनके शब्दों में, ‘उन्होंने गरीबी देखी है’, ‘बचपन में चाय बेची है’, वगैरह-वगैरह। यहां मोदी साहब अपने आपको एक ऐसे व्यक्ति और अपने शासन को ऐसे शासन के रूप में पेश करते हैं जहां वे स्वयं गरीबों के सबसे बड़़े रहनुमा हैं और उनके शासन में हर गरीब के आंसू पोंछे जा चुके हैं। गरीबी, बेरोजगार, भुखमरी, असमानता, महंगाई यानी गरीबों की हर समस्या का या तो अंत कर दिया गया है या बस अंत होने ही वाला है। 

आलेख

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अमरीकी सरगना ट्रम्प लगातार ईरान को धमकी दे रहे हैं। ट्रम्प इस बात पर जोर दे रहे हैं कि ईरान को किसी भी कीमत पर परमाणु बम नहीं बनाने देंगे। ईरान की हुकूमत का कहना है कि वह

/modi-sarakar-waqf-aur-waqf-adhiniyam

संघ और भाजपाइयों का यह दुष्प्रचार भी है कि अतीत में सरकार ने (आजादी के बाद) हिंदू मंदिरों को नियंत्रित किया; कि सरकार ने मंदिरों को नियंत्रित करने के लिए बोर्ड या ट्रस्ट बनाए और उसकी कमाई को हड़प लिया। जबकि अन्य धर्मों विशेषकर मुसलमानों के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। मुसलमानों को छूट दी गई। इसलिए अब हिंदू राष्ट्रवादी सरकार एक देश में दो कानून नहीं की तर्ज पर मुसलमानों को भी इस दायरे में लाकर समानता स्थापित कर रही है।

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आजादी के दौरान कांग्रेस पार्टी ने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह उग्र भूमि सुधार करेगी और जमीन किसानों को बांटेगी। आजादी से पहले ज्यादातर जमीनें राजे-रजवाड़ों और जमींदारों के पास थीं। खेती के तेज विकास के लिये इनको जमीन जोतने वाले किसानों में बांटना जरूरी था। साथ ही इनका उन भूमिहीनों के बीच बंटवारा जरूरी था जो ज्यादातर दलित और अति पिछड़ी जातियों से आते थे। यानी जमीन का बंटवारा न केवल उग्र आर्थिक सुधार करता बल्कि उग्र सामाजिक परिवर्तन की राह भी खोलता। 

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अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं।