देहरादून में भोजनमाताओं ने भरी हुंकार

प्रगतिशील भोजनमाता संगठन, उत्तराखंड नैनीताल के बैनर तले भोजनमाताओं ने राजधानी देहरादून में विशाल प्रदर्शन कर भयंकर शोषण के विरुद्ध अपनी आवाज़ बुलंद की है। 27 जून को पूर्व घोषणा के अनुरुप स्थायी किये जाने और अन्य मांगों के साथ गढ़वाल व कुमाऊं मंडल से सैंकड़ों की संख्या में भोजनमातायें देहरादून के परेड ग्राउंड पर एकत्रित हुई। तदुपरान्त उन्होंने एक जुलूस की शक्ल में सचिवालय की ओर कूच किया जहां बैरीकेडिंग और भारी पुलिस बल लगाकर उन्हें आगे बढ़ने से रोक दिया गया।

इस पर आक्रोशित भोजनमाताओं ने भारी विरोध प्रदर्शन के साथ उसी स्थान पर सभा की शुरुआत कर दी। प्रगतिशील भोजन माता संगठन की केंद्रीय अध्यक्ष हंसी देवी ने सभा को सम्बोधित करते हुये कहा कि सरकार प्रतिमाह 3000 रु मानदेय पर भोजनमाताओं से बेगारी करा रही है जिसे बर्दाश्त नहीं किया जायेगा, कि स्थायी होना सभी भोजनमाताओं का हक़ है और उन्हें चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी का न्यूनतम वेतन मिलना चाहिये। साथ ही प्रसूति अवकाश व अन्य सुविधायें भी मिलनी चाहिये। उन्होंने खुद शासन द्वारा प्रस्तावित प्रतिमाह 5000 रु के मानदेय को तत्काल लागू किये जाने की मांग की। इसके अलावा उन्होंने अक्षय पात्र फाउंडेशन नाम के एक एन.जी.ओ से भोजन बनवाये जाने पर तुरंत रोक लगाने की भी मांग की। उन्होंने कहा कि सरकार भोजनमाताओं को हटाने की साजिशें रचना बंद करे अन्यथा उग्र आंदोलन होगा।

सभा को सम्बोधित करते हुये प्रगतिशील भोजनमाता संगठन की केंद्रीय महामंत्री रजनी ने कहा कि सरकार निजीकरण की नीतियों को आगे बढ़ाते हुये स्थायी और सम्मानजनक रोजगार को ख़त्म कर रही है। मानदेय के नाम पर सभी स्कीम वर्कर्स - भोजनमाताओं, आशा वर्कर, आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों इत्यादि का भयंकर शोषण कर रही है। ऐसे में सभी को अपनी एकता को व्यापक बनाने और संघर्षों में एक दूसरे का सहयोग करने की जरुरत है।

इसके अलावा सभा को विभिन्न जगहों से आई भोजनमाताओं एवं भोजनमाताओं के संघर्ष का समर्थन कर रहे विभिन्न संगठनों - इंकलाबी मजदूर केंद्र, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, प्रगतिशील महिला एकता केंद्र, परिवर्तनकामी छात्र संगठन, भेल मजदूर ट्रेड यूनियन व संयुक्त संघर्षशील ट्रेड यूनियन मोर्चा, हरिद्वार के प्रतिनिधियों ने भी सम्बोधित किया। वक्ताओं ने मोदी और धामी सरकार को आड़े हाथ लेते हुये कहा कि महिलाओं को भोजनमाता की उपाधि देकर उनसे बेगारी कराई जा रही है तो अग्निपथ-अग्निवीर के नाम पर सैनिकों को भी अब ठेके पर भर्ती किया जा रहा है। मजदूरों के विरुद्ध लाये गये चार नये लेबर कोड्स के जरिये भी स्थायी रोजगार पाने के अधिकार पर भारी हमला किया गया है।

असल में केंद्र की मोदी और राज्य की धामी सरकार घोर मजदूर हैं। ये बड़े इजारेदार पूंजीपतियों- अडानी, अम्बानी, टाटा, बिड़ला इत्यादि के हितों के अनुरुप नीतियां और कानून बना रहे हैं और जनता को आपस में बांटने के लिये हिंदू-मुसलमान की खतरनाक राजनीति कर रहे हैं। इनके हिंदू राष्ट्र के उद्देश्य का असल मतलब देश की मजदूर-मेहनतकश जनता पर इन्हीं बड़े इजारेदार पूंजीपतियों की नंगी-आतंकी तानाशाही कायम करना है और जिसके विरुद्ध एकजुट होना बेहद जरूरी है।

सभा के उपरांत उपजिलाधिकारी के माध्यम से एक ज्ञापन सूबे के मुख्यमंत्री को प्रेषित किया गया जिसमें मांग की गई कि -

शासन द्वारा प्रस्तावित प्रतिमाह 5000 रु के मानदेय को तत्काल लागू किया जाये।

स्कूल विलयीकरण, बच्चे कम होने एवं पाल्य का स्कूल में ना पढ़ने के नाम पर भोजनमाताओं को हटाना बंद किया जाये।

अक्षय पात्र फाउंडेशन नाम के एन.जी.ओ को भोजन बनाने का काम सौंपना बंद किया जाये।

भोजनमाताओं को साल में पूरे 12 माह का मानदेय दिया जाये।

वेतन-बोनस समय पर दिया जाये।

स्कूलों में 26 वें छात्र पर दूसरी भोजनमाता रखी जाये।

भोजनमाताओं का स्कूलों में होने वाला उत्पीड़न बंद किया जाये।

भोजनमाताओं को धुयें से मुक्त किया जाये।

काम के दौरान होने वाली दुर्घटनाओं के लिये इलाज और मुआवजे की व्यवस्था की जाये।

जीवन बीमा, भविष्य निधि, पेंशन एवं प्रसूति अवकाश जैसी सभी सुविधायें भोजनमाताओं को दी जायें।

सभी भोजनमाताओं को स्थायी किया जाये और न्यूनतम वेतन प्रतिमाह 18,000 रु दिया जाये।

भोजनमाताओं ने अपने इस जबरदस्त विरोध-प्रदर्शन के उपरांत क्रांतिकारी गीतों एवं नारों के साथ अपने संघर्ष को जारी रखने का संकल्प लिया और सरकार द्वारा मांगे न माने जाने की सूरत में कहीं अधिक संख्या के साथ दोबारा राजधानी आने की चेतावनी भी दी।

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