चीन से प्रमाण पत्र

पिछले दिनों चीन के एक अखबार ‘ग्लोबल टाइम्स’ में एक लेख ‘भारत आख्यान के बारे में मैंने क्या महसूस किया’ (व्हाट आई फील अबाउट दि ‘भारत नरेटिव’ इन इण्डिया) छपा। इस लेख को झांग जिदेंग ने लिखा था जो कि फूदान विश्वविद्यालय में दक्षिण एशियाई केन्द्र के निदेशक हैं। इस लेख में झांग ने भारत को एक उभरती वैश्विक शक्ति के रूप में मानने और एक भू राजनैतिक शक्ति के रूप में दुनिया भर के लोगों को चिन्हित करने का आग्रह किया। 
    
बस ये लेख क्या छपा। भारत के सत्ताधारियों ने इसे लपक लिया। देश के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह जो कि लंदन गये हुए थे, लगे इस लेख के आधार पर कहने कि अब तो चीन ने मान लिया है कि भारत एक ताकत है। उन्हें लेखक का नाम तो याद नहीं था पर यह याद था उसने क्या कहा है। 
    
चीन से मिले प्रमाणपत्र से जितने गदगद राजनाथ सिंह थे उससे कम भारत के मोदी भक्त मीडिया भी नहीं थे। वे भी लगे एक सुर में कहने कि देखो हम अब एक ताकत हैं। 
    
भारत के बारे में अगर कोई प्रशंसात्मक लेख कहीं से भी छप जाते हैं तो भारत के शासक कूदने लगते हैं और गर कोई भारत की गरीबी, बढ़ते साम्प्रदायिक तनाव आदि की आलोचना कर दे तो भारत के वर्तमान शासक उसे विदेशी साजिश-षडयंत्र की संज्ञा देने लगते हैं। फिलहाल तो चीन से मिले प्रमाणपत्र के साथ राजनाथ सिंह ही नहीं अन्य भी खूब कूद रहे हैं। 

आलेख

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सुनील कानुगोलू का नाम कम ही लोगों ने सुना होगा। कम से कम प्रशांत किशोर के मुकाबले तो जरूर ही कम सुना होगा। पर प्रशांत किशोर की तरह सुनील कानुगोलू भी ‘चुनावी रणनीतिकार’ है