विज्ञान को निगलने पर उतारू आरएसएस का ग्रहण

भारतीय विज्ञान कांग्रेस प्रति वर्ष जनवरी पहले सप्ताह में आयोजित की जाती है। इसे विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग आर्थिक सहयोग (फण्ड) कर आयोजन में मदद करता रहा था। इस साल 3 से 5 जनवरी को होने वाली विज्ञान कांग्रेस को विभाग ने फण्ड जारी करने से मना कर दिया। इसके बजाय सरकार ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) की विज्ञान शाखा विजनन भारती द्वारा आयोजित भारत अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान महोत्सव (आईआईएफएस) के लिए ही फण्ड जारी किया। इसके अलावा विभिन्न सरकारी विभागों को आईआईएफएस की प्रदर्शनी के लिए स्थान (स्टॉल के लिए स्पाट) खरीदने के निर्देश भी दिए। विगत वर्षों में सरकार ने आईआईएफएस को 20-25 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया वहीं विज्ञान कांग्रेस को मात्र 5 करोड़ रुपये ही जारी किये।
    
ऐसा नहीं है कि सिर्फ फण्ड जारी न करके ही विज्ञान कांग्रेस को हतोत्साहित किया गया। बल्कि विज्ञान कांग्रेस में भी प्राचीन भारतीय विज्ञान के नाम पर कई अनर्गल अवैज्ञानिक बातों को प्रचारित किया गया। 2016 में एक अधिकारी ने विज्ञान कांग्रेस के मंच से कहा- ‘‘शंख बजाने से स्वास्थ्य अच्छा रहता है।’’ इसी तरह 2018 में तत्कालीन केन्द्रीय विज्ञान मंत्री हर्षवर्धन ने दावा किया कि ‘‘स्वर्गीय स्टीफन हाकिंग ने कहा था कि वेदों में आइंस्टीन के सापेक्षिकता सिद्धान्त से भी महान सिद्धान्त हैं।’’ मृत स्टीफन हाकिंग तो इस बारे में कोई सफाई दे नहीं सकते थे हालांकि विज्ञान जगत में इस बयान की काफी खिल्ली उड़ी। ये ऐसी बेतुकी बातें हैं जिन्हें अपने सहज ज्ञान से विज्ञान का कोई भी छात्र आसानी से समझ जाएगा।
    
विजनन भारती अपना उद्देश्य भौतिक और आध्यात्मिक विज्ञान के सामंजस्यपूर्ण संश्लेषण के स्वदेशी आन्दोलन को फिर से जीवंत करना बताता है। साथ ही आधुनिक विज्ञान के विकास में प्राचीन भारत के अद्वितीय योगदान के बारे में जागरुकता फैलाना चाहता है। इसके लिए यह सभी पाठ्य पुस्तकों और पाठ्यक्रमों में वैज्ञानिक विरासत के बारे में जानकारी को शामिल करने के लिए शैक्षिक अधिकारियों से भी सम्पर्क करने का लक्ष्य रखता है। विज्ञान के साथ छेड़छाड़ के लिए प्राचीन विज्ञान की आड़ लेने का आरएसएस का यह पुराना राग है।
    
आधुनिक विज्ञान में होने वाली हर नयी खोज का श्रेय वेदों को देने में संघ और संघी मोदी सरकार के नुमाइंदे कभी पीछे नहीं रहते हैं। परन्तु संघी कारकून वेदों में विज्ञान और उस पर आधारित किसी तकनीक का कभी कोई आधार पेश नहीं करते हैं। बल्कि कहा जाना चाहिए कि मोदी सरकार इस मामले में इतनी नालायक है कि पिछले दस सालों में प्राचीन ग्रंथों का अध्ययन कर कोई नया वैज्ञानिक सिद्धान्त ही नहीं ढूंढ सकी।
    
विज्ञान कांग्रेसों में होने वाली आधुनिक विज्ञान पर चर्चाओं से संघी मोदी सरकार को दिक्कत क्या है? आधुनिक विज्ञान पर निशाना साध कर संघ और संघी मोदी सरकार अपने फासीवादी एजेंडे को आगे बढ़ाते हैं। हिटलर-मुसोलिनी जैसे फासीवादियों की तरह संघ और संघी सरकार अतीत का महिमामण्डन कर दंभ भरते हैं। हालांकि ये आधुनिक विज्ञान और तकनीक पर आधारित वस्तुओं और सेवाओं का उपभोग करने में कहीं से पीछे नहीं हैं।
    
विज्ञान कांग्रेस के आयोजक वैज्ञानिकों ने सरकार द्वारा फण्ड जारी न कर विज्ञान कांग्रेसों को हतोत्साहित करने पर चिंता जताई है। साथ ही विजनन भारती द्वारा मेलों जैसे आयोजित कार्यक्रमों को विज्ञान कांग्रेसों के स्तर को गिराने वाला बताया।
    
पूंजीवादी व्यवस्था में विज्ञान या वैज्ञानिक खोजें पूंजी के हितों को ही साधती हैं। वैज्ञानिक आविष्कारों से पूंजीपति अपना मुनाफा बढ़ाते हैं। मजदूरों-मेहनतकशों पर शोषण-उत्पीड़न का शिकंजा और कसा जाता है। पर साथ ही विज्ञान की प्रगति के साथ वैज्ञानिक चिंतन-वैज्ञानिक दृष्टि-तर्कपरकता आदि भी समाज में धीमे-धीमे स्थापित होती जाती है। कूपमंडूकता-अंधविश्वासों-धार्मिक पोंगापंथ का असर घटता चला जाता है। जब तक पूंजीपति वर्ग इतिहास में प्रगतिशील भूमिका में था उसने खुद समाज को तर्कपरकता, वैज्ञानिक दृष्टिकोण की ओर धकेला। पर मजदूर क्रांतियों की संभावना में पूंजीपति वर्ग शीघ्र ही प्रतिक्रियावादी वर्ग में तब्दील हो गया। अब वह वैज्ञानिक प्रगति से पैदा होने वाले वैज्ञानिक चिंतन-तर्कपरकता को सचेत तरीके से रोकने लगा। खुद तरह-तरह के अंधविश्वासों-धार्मिक पोंगापंथ को बढ़ावा देने लगा। अपनी लुटेरी व्यवस्था को बचाने के लिए ही पूंजीपति वर्ग फासीवाद की शरण लेता है। फासीवादी घोषित तौर पर कूपमंडूकता-अंधविश्वास-पोंगापंथ को बढ़ावा दे सारी तर्कपरकता की जगह आस्था को स्थापित करते हैं। ये आधुनिक विज्ञान को भी अतीत के महिमामण्डन का जरिया बना देते हैं। विज्ञान की खुद के लिए असुविधाजनक बातों को ये वैज्ञानिकों के मुंह से बुलवा अपनी धारणा को ही विज्ञान घोषित करवा देते हैं। अतीत में हिटलर-मुसोलिनी ने भी यह किया था। तब हिटलर ने आर्य नस्ल की श्रेष्ठता साबित करने में जीन विज्ञान को लगा दिया था। आज हिन्दू फासीवादी भी विज्ञान के साथ यही खिलवाड़ कर रहे हैं। इनकी साजिशों को बेनकाब करने के लिए वैज्ञानिकों को इनके भण्डाफोड़ के साथ मैदान में उतरना पड़ेगा। 

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