नई तकनीक और मजदूर वर्ग

आजकल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की चर्चा जोरों पर है। पूंजीपतियों से लेकर चोर तक इस तकनीकी विकास में अपना फायदा तलाश रहे हैं। पूंजीवादी दुनिया में इसे क्रांति की संज्ञा दी जा रही है। इस तकनीक के तहत चैट जीपीटी एप आने से पत्रकारों-लेखकों की नौकरियों पर खतरा पहले से मंडराने लगा है। चर्चा यहां तक पहुंचने लगी है कि रोबोट मानव श्रम को बड़ी मात्रा में स्थानांतरित कर देंगे। 
    
स्पष्ट ही है कि यह तकनीक उत्पादन प्रणाली से लेकर युद्ध तक सब पर प्रभाव डालेगी। यह आम जनजीवन को भी गहरे तक प्रभावित करेगी। इसी के साथ अपराध व निगरानी तंत्र को नई ऊंचाईयों पर पहुंचायेगी। साथ ही मालिक-मजदूर सम्बन्धों पर भी प्रभाव डालेगी। 
    
अपराध के संदर्भ में किसी की भी आवाज को कापी कर बदली आवाज से फोन पर किसी को लूट लेने की घटनायें सामने भी आने लगी हैं। इसी तरह कर्मचारियों की लोकेशन पता लगाने में इसका इस्तेमाल भारत में भी होने लगा है। हरियाणा सरकार सैनीटेशन मजदूरों को जीपीएस ट्रैकर व माइक्रोफोन युक्त स्मार्ट घड़ी बांट चुकी है। इसके जरिये सुपरवाइजर मजदूरों की कभी भी निगरानी कर सकते हैं। आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों को मोबाइल में पोषण ट्रैकर एप डालकर बांटे जा रहे हैं ताकि उनकी निगरानी की जा सके। इस एप के जरिए कार्यकत्रियों पर काम का बोझ बढ़ा दिया गया है जिसका वे विरोध भी कर रही हैं। 
    
इसी तरह की निगरानी से आगे बढ़कर भावनायें पढ़ने वाली तकनीक भी सामने आ चुकी है जो चेहरा स्कैन कर व्यक्ति की खुशी, दुख, गुस्से संदर्भी भावनायें बता सकती है। 2021 में उ.प्र. पुलिस ने सुरक्षित शहर के लिए ऐसे ए आई तंत्र के लिए टेण्डर आमंत्रित किये जो भीड़ में से परेशान-दुखी महिलाओं को पहचान सकें ताकि समय रहते उनकी मदद की जा सके। अब इस भावनायें पढ़ने वाली तकनीक के कार्यस्थलों पर मजदूरों-कर्मचारियों की भावनायें पढ़ने में प्रबंधन द्वारा इस्तेमाल की बातें होने लगी हैं। 
    
पूंजीवाद में जैसा कि किसी भी नई तकनीक साथ होता है कि सर्वप्रथम वह पूंजी के हितों में इस्तेमाल होती है वैसे ही इस नई तकनीक के साथ भी हो रहा है। मजदूरों की भावनायें तकनीक की मदद से जान कर प्रबंधन न केवल उन पर अपना शिकंजा बढ़ा सकता है बल्कि आक्रोशित मजदूरों को भी चिन्हित कर सकता है। यह सब श्रम की तुलना में पूंजी को लूट बढ़ाने के लिए नये हथियार दे देने सरीखा है। 
    
जो काम मालिक अपने संस्थान के तौर पर कर सकता है वही काम राज्य देशव्यापी पैमाने पर नई तकनीक के जरिये कर सकता है यानी जनता की निगरानी बढ़ा अपने लिए दिक्कततलब तत्वों को छांट सकता है। संघर्षों की राह में तरह-तरह से रोड़े अटका सकता है। 
    
पर जैसा कि हमेशा होता है कि जब नई  तकनीक आम जनजीवन का हिस्सा बन जाती है तब जनता भी अपने हितों में उसका इस्तेमाल करना सीख जाती है। पूंजीपति वर्ग के हथियारों को मजदूर वर्ग उन्हीं पर तानने में सक्षम हो जाता है। इस नई तकनीक के साथ भी यही होगा। किसी भी तकनीक को ईजाद कर, कितनी भी निगरानी कर पूंजीपति वर्ग अपने लूट के साम्राज्य को ध्वस्त होने से नहीं बचा सकता। पूंजीपति वर्ग की हार व मजदूर वर्ग की जीत दोनों निश्चित हैं। 

आलेख

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