विचित्र किन्तु सत्य

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भारत दो सौ वर्षों तक अंग्रेजों का गुलाम रहा। गुलामी के खिलाफ भारत की आजादी की लड़ाई में हजारों-हजार लोग शहीद हुए। हजारों-हजार लोगों का जीवन अंग्रेजों की जेलों में अत्याचार सहते हुए बीता। कई हजार लोग अंग्रेजों की सेना-पुलिस के कारण बेकसूर ही मारे गये। ऐसे में कई-कई लोग ऐसे थे जो मशहूर तो बहुत-बहुत हुए परन्तु वे एक दिन भी जेल में नहीं गये। ऐसे लोगों में हिन्दू पुनरुत्थानवादी भी थे तो मुस्लिम पुनरुत्थानवादी भी थे। ऐसे लोग भी थे जो अपने को गर्व से हिन्दू या मुस्लिम राष्ट्रवादी कहते थे। कई तो अपने को समाज सुधारक भी कहते थे। 
    
ऐसे मशहूर लोग जो कभी जेल नहीं गये उनकी एक लम्बी फेहरिस्त है। स्वामी दयानंद, स्वामी विवेकानंद, सर सैयद अहमद खां, स्वामी रामतीर्थ, मोहम्मद अली जिन्नाह, गोलवलकर, बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर कभी भी जेल नहीं गये। इन लोगों पर अंग्रेज सरकार क्यों मेहरबान थी जबकि बिरसा मुण्डा, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, भगतसिंह, राजगुरू, सुखदेव, चन्द्रशेखर आजाद जैसे अनेकों लोगों को या तो फांसी के फंदे पर लटका दिया या फिर निर्ममतापूर्वक गोलियों से भून डाला गया। 
    
जेल न जाने वालों में मशहूर भारतीय पूंजीपति-उद्योगपति भी थे जिन्होंने आजाद भारत में खूब चांदी काटी। सिंधिया जैसे राजे-महाराजाओं की तो क्या बात की जाये जो अंग्रेजों की रात-दिन जी-हजूरी करते थे। जेआरडी टाटा और घनश्याम दास बिड़ला जैसे भारत के सबसे बड़े पूंजीपति एक दिन के लिए भी जेल नहीं गये। इन्होंने अंग्रेजों के जमाने में भी दोनों हाथों से दौलत बटोरी तो आजाद भारत में इनकी पांचों अंगुलियां घी में थीं। 

आलेख

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अमरीकी सरगना ट्रम्प लगातार ईरान को धमकी दे रहे हैं। ट्रम्प इस बात पर जोर दे रहे हैं कि ईरान को किसी भी कीमत पर परमाणु बम नहीं बनाने देंगे। ईरान की हुकूमत का कहना है कि वह

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संघ और भाजपाइयों का यह दुष्प्रचार भी है कि अतीत में सरकार ने (आजादी के बाद) हिंदू मंदिरों को नियंत्रित किया; कि सरकार ने मंदिरों को नियंत्रित करने के लिए बोर्ड या ट्रस्ट बनाए और उसकी कमाई को हड़प लिया। जबकि अन्य धर्मों विशेषकर मुसलमानों के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। मुसलमानों को छूट दी गई। इसलिए अब हिंदू राष्ट्रवादी सरकार एक देश में दो कानून नहीं की तर्ज पर मुसलमानों को भी इस दायरे में लाकर समानता स्थापित कर रही है।

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आजादी के दौरान कांग्रेस पार्टी ने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह उग्र भूमि सुधार करेगी और जमीन किसानों को बांटेगी। आजादी से पहले ज्यादातर जमीनें राजे-रजवाड़ों और जमींदारों के पास थीं। खेती के तेज विकास के लिये इनको जमीन जोतने वाले किसानों में बांटना जरूरी था। साथ ही इनका उन भूमिहीनों के बीच बंटवारा जरूरी था जो ज्यादातर दलित और अति पिछड़ी जातियों से आते थे। यानी जमीन का बंटवारा न केवल उग्र आर्थिक सुधार करता बल्कि उग्र सामाजिक परिवर्तन की राह भी खोलता। 

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अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं।