साझे संघर्ष की ओर बढ़ती मजदूर यूनियनें

रुद्रपुर/ मजदूर नेताओं पर गुंडा एक्ट की कार्यवाही के विरोध में 7 जुलाई की मजदूर महापंचायत की जबरदस्त सफलता, सिडकुल (रुद्रपुर-पंतनगर) में मजदूरों की व्यापक एकजुटता और आंदोलन को उत्तराखंड व्यापी एवं अन्य औद्योगिक क्षेत्रों से भी समर्थन मिलने के कारण उधमसिंह नगर जिला प्रशासन को अब पीछे हटने पर मजबूर होना पड़ रहा है। 
    
प्रशासन की ओर से बातचीत की पेशकश के बाद 28 जुलाई को श्रमिक संयुक्त मोर्चा के नेताओं ने प्रेस कांफ्रेंस को सम्बोधित करते हुये कहा कि स्थानीय भाजपा विधायक की सकारात्मक पहल और इस आश्वासन पर, कि सभी 6 मजदूर नेताओं को भेजे गये गुंडा एक्ट के नोटिस और कायम वाद को 31 जुलाई को निरस्त कर दिया जायेगा एवं लुकास टी वी एस, डालफिन, करोलिया, इंटरार्क, नेस्ले सहित सभी कंपनियों में चल रहे विवादों को जिला स्तरीय कमेटी का गठन कर हल किया जायेगा, 28 जुलाई को विधायक आवास के घेराव की कार्यवाही को दो सप्ताह के लिये स्थगित किया जाता है। यदि श्रमिकों का दमन बंद न हुआ एवं श्रमिकों की समस्याओं का समाधान न हुआ तो अब 11 अगस्त को विधायक आवास का घेराव किया जायेगा।
    
ताजा जानकारी मिलने तक एसएसपी कार्यालय से पुलिस अधीक्षक क्राइम ने 29 जुलाई को मोर्चा के पदाधिकारियों को आश्वासन दिया है कि  31 जुलाई को ए डी एम कोर्ट में गुंडा एक्ट की सुनवाई के दौरान पुलिस अपनी गलती मानते हुये एक पूरक रिपोर्ट लगाकर ए डी एम से गुंडा एक्ट की कार्यवाही निरस्त करने को कहेगी। तदुपरान्त गुंडा एक्ट की कार्यवाही निरस्त हो जायेगी।
    
फिलहाल उत्साह से भरे मजदूर 31 जुलाई को उधमसिंह के शहीदी दिवस को जोर-शोर से मनाने की तैयारी कर रहे हैं।
    
इस दौरान श्रमिक संयुक्त मोर्चा के मार्गदर्शन में लुकास टी वी एस के मजदूरों की कार्य बहाली और मांग पत्र पर समझौते हेतु गांधी पार्क में दिन-रात का धरना जारी है। न्यूनतम वेतन दिये जाने की मांग के साथ एवं गैर कानूनी गेट बंदी और स्थायी श्रमिकों को ठेके के तहत नियोजित किये जाने के विरोध में डालफिन मजदूरों का आंदोलन भी जारी है। इसके अलावा अजय मैनी सिस्टम्स के मजदूर भी वेतन एवं पी एफ की समस्या को लेकर आंदोलनरत हैं। साथ ही, इंटरार्क एवं करोलिया के मजदूर भी प्रबंधन द्वारा समझौते के उल्लंघन के विरोध में संघर्ष के मैदान में हैं। आवश्यकता है कि सिडकुल के सभी मजदूर एक वर्ग के रूप में एकजुट हों।      -रुद्रपुर संवाददाता

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भारत और पाकिस्तान के इन चार दिनों के युद्ध की कीमत भारत और पाकिस्तान के आम मजदूरों-मेहनतकशों को चुकानी पड़ी। कई निर्दोष नागरिक पहले पहलगाम के आतंकी हमले में मारे गये और फिर इस युद्ध के कारण मारे गये। कई सिपाही-अफसर भी दोनों ओर से मारे गये। ये भी आम मेहनतकशों के ही बेटे होते हैं। दोनों ही देशों के नेताओं, पूंजीपतियों, व्यापारियों आदि के बेटे-बेटियां या तो देश के भीतर या फिर विदेशों में मौज मारते हैं। वहां आम मजदूरों-मेहनतकशों के बेटे फौज में भर्ती होकर इस तरह की लड़ाईयों में मारे जाते हैं।

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आज आम लोगों द्वारा आतंकवाद को जिस रूप में देखा जाता है वह मुख्यतः बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध की परिघटना है यानी आतंकवादियों द्वारा आम जनता को निशाना बनाया जाना। आतंकवाद का मूल चरित्र वही रहता है यानी आतंक के जरिए अपना राजनीतिक लक्ष्य हासिल करना। पर अब राज्य सत्ता के लोगों के बदले आम जनता को निशाना बनाया जाने लगता है जिससे समाज में दहशत कायम हो और राज्यसत्ता पर दबाव बने। राज्यसत्ता के बदले आम जनता को निशाना बनाना हमेशा ज्यादा आसान होता है।

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युद्ध विराम के बाद अब भारत और पाकिस्तान दोनों के शासक अपनी-अपनी सफलता के और दूसरे को नुकसान पहुंचाने के दावे करने लगे। यही नहीं, सर्वदलीय बैठकों से गायब रहे मोदी, फिर राष्ट्र के संबोधन के जरिए अपनी साख को वापस कायम करने की मुहिम में जुट गए। भाजपाई-संघी अब भगवा झंडे को बगल में छुपाकर, तिरंगे झंडे के तले अपनी असफलताओं पर पर्दा डालने के लिए ‘पाकिस्तान को सबक सिखा दिया’ का अभियान चलाएंगे।

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