
आंध्र प्रदेश की चंद्र बाबू नायडू सरकार प्रदेश में निवेश जुटाने और पूंजीपतियों को खुश करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है। इसी कड़ी में उसने प्राइवेट सेक्टर में मजदूरों के कार्य दिवस को 9 घण्टे से बढ़ाकर 10 घण्टे करने का एलान किया है। इसी के साथ उसने प्रति तिमाही अधिकतम ओवरटाइम की सीमा 75 घंटे से बढ़ाकर 144 घण्टे कर दी है। साथ ही साथ महिलाओं से रात की पाली में काम कराने की छूट पूंजीपतियों को दे दी है।
चंद्रबाबू नायडू सरकार ने आंध्र प्रदेश के कारखाना अधिनियम में संशोधन कर उक्त बदलाव किये हैं। सरकार का दावा है कि इससे प्रदेश में पूंजी निवेश बढ़ेगा और अन्य राज्यों से प्रतियोगिता में राज्य टिक पायेगा।
वहीं मजदूर संगठनों व यूनियनों ने इसे मजदूरों को दासता की स्थिति में धकेलने वाला कदम बताया। मजदूरों का कहना है कि इन बदलावों से नायडू सरकार 10 घण्टे सामान्य कार्यदिवस व 2 घण्टे ओवरटाइम के जरिये दरअसल 12 घण्टे का कार्यदिवस व्यवहार में लागू करना चाहती है। 12 घण्टे के कार्यदिवस से 2 शिफ्ट में ही काम कराकर मालिक अपनी फैक्टरी 24 घंटे चला सकेंगे। पहले उन्हें 3 शिफ्टों में काम कराना पड़ता था।
ओवरटाइम की वृद्धि व महिलाओं से रात की पाली में काम कराने की छूट को जहां नायडू सरकार मजदूर व महिला हितों से जोड़ रही है वहीं मजदूर संगठन इसका विरोध कर रहे हैं। नायडू सरकार का तर्क है कि इससे मजदूर ज्यादा कमाई कर अपनी आर्थिक स्थिति सुधार पायेंगे वहीं महिला मजदूरों को पुरुषों के समान अधिकार मिलेंगे।
वास्तविकता यही है कि सरकारें-मालिक मजदूरों का वेतन न बढ़ाकर व दबाव डालकर मजदूरों से ज्यादा वक्त तक ओवरटाइम कराने का प्रयास करती रही है। अब इसी चीज को कानून सम्मत बना दिया गया है। दरअसल 12 घंटे कार्य कराने से मजदूर के स्वास्थ्य के साथ उसकी कार्यक्षमता भी प्रभावित होगी। वहीं महिलायें जो दिन में भी सुरक्षित नहीं हैं, उनसे रात की पाली में काम कराना उनकी सुरक्षा को खतरे में डालने के इंतजाम के अलावा कुछ नहीं है। यह महिला सशक्तिकरण के नाम पर महिलाओं से हिंसा बढ़ाने का इंतजाम करना है।
केन्द्र में मोदी सरकार को समर्थन दे रहे नायडू दरअसल पूंजीपतियों के चहेते बने रहना चाहते हैं। इसीलिए वे केन्द्र सरकार द्वारा लागू की जाने वाली 4 श्रम संहिताओं से भी एक कदम आगे बढ़कर पूंजीपतियों को खुश करने पर उतारू हैं। भले ही उनके इस कदम से मजदूर वर्ग का जीवन और कठिन हो जाये उन्हें इसकी चिंता नहीं है।
मजदूर वर्ग ने अतीत में लड़कर 8 घंटे का कार्यदिवस हासिल किया था। अब तकनीकी उन्नति के साथ जहां कार्यदिवस और कम किये जाने की जरूरत थी वहां सरकारें उसे किसी भी बहाने से बढ़ाने पर उतारू हैं
सरकारें मजदूर वर्ग से उनकी अतीत की उपलब्धियों को इसीलिए छीन पा रही हैं क्योंकि मजदूर वर्ग आज संगठित नहीं है और अपनी क्रांतिकारी विचारधारा से लैस नहीं है। क्रांतिकारी विचारधारा पर संगठित होकर और पूंजी के शासन को चुनौती देकर ही मजदूर वर्ग अपने ऊपर हो रहे नित नये हमलों को रोक सकता है।