
इजरायल द्वारा फिलिस्तीनी जनता का क्रूर नरसंहार हर बीतते दिन के साथ ज्यादा भयावह होता जा रहा है। पहले इजरायल ने गाजा की धरती को बमों से पाट कर सारे ढांचे को नेस्तनाबूद कर दिया और अब गाजा में राहत सामग्री की आपूर्ति रोक कर वह 23 लाख गाजावासियों को भूखे मार रहा है। बच्चे दूध के अभाव में, महिलायें व वृद्ध इलाज के अभाव में दम तोड़ रहे हैं। इस पर भी इजरायली अत्याचारी शासकों को कोई शर्म तक नहीं आ रही है। दुनिया भर से भेजी जा रही राहत सामग्री को वह गाजा में घुसने ही नहीं दे रहा है।
इजरायली शासक और उनके कंधे पर हाथ रखे अमेरिकी साम्राज्यवादी किसी भी कीमत पर गाजापट्टी खाली करा कर उस पर अपना पूर्ण नियंत्रण चाहते हैं। पहले उन्होंने गाजापट्टी को बमों से पाट कर 60,000 से अधिक फिलिस्तीनियों की हत्या कर सोचा था कि लोग गाजा छोड़ कर चले जायेंगे। पर जब युद्ध विराम हुआ तो सारे गाजावासी वापस अपने टूटे-फूटे घरों-खेतों-अस्पतालों की ओर चल पड़े और तबाह हो चुकी अपनी भूमि को फिर से संवारने में जुट गये। इजरायली-अमेरिकी शासकों के मंसूबों को उन्होंने धता बताते हुए आधे पेट रहना, खुले आसमान के नीचे सोना मंजूर कर लिया पर अपनी धरती छोड़ने से इंकार कर दिया।
अब इजरायली शासकों ने खाद्य-दवा व अन्य राहत आपूर्ति रोक कर गाजावासियों पर अधिक क्रूर हमले की राह चुनी। उन्होंने लोगों-बच्चों को भूखे मारने की राह चुन कर उम्मीद पाली कि इससे गाजावासी गाजा छोड़ने को तैयार हो जायेंगे। पर फिलिस्तीन की बहादुर अवाम ने अब तक यही दिखाया है कि उन्हें भूखे मरना मंजूर है पर गाजापट्टी को इजरायल को सौंपना उन्हें मंजूर नहीं है।
इजरायल द्वारा फिलिस्तीनी अवाम को भूख से, इलाज के अभाव से मारने के इस कुत्सित कारनामे ने दुनिया भर में जनता को इजरायली शासकों के प्रति नफरत से भर दिया। ऐसे वक्त में फिलिस्तीनी मुक्ति के समर्थन का ढोंग करने वाले अरब मुल्कों के शासक जहां चुप्पी साधे इजरायल के इस नरसंहार को देख रहे हैं वहीं अरब जनता के साथ यूरोप-अमेरिका-एशिया सभी जगहों पर जनता के भीतर इजरायल के प्रति गुस्सा बढ़ता जा रहा है।
इसी गुस्से ने स्वीडिश पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग व 11 अन्य कार्यकर्ताओं को 2000 किमी. की समुद्री यात्रा करते हुए मैडलिन नौका से इजरायली घेरेबंदी को तोड़ने व राहत सामग्री पहुंचाने के अभियान की ओर धकेला। इजरायली सेना ने उनहें गाजा पहुंचने से पहले ही पकड़ लिया। ग्रेटा को वापस भेज दिया गया जबकि शेष को वापस भेजने के इजरायल प्रयास कर रहा है। इस नौका अभियान का नाम उस बहादुर फिलिस्तीनी मछुआरा महिला मैडलिन कुलाब के नाम पर रखा गया जिसने इजरायली प्रतिबंधों को धता बताते हुए अपनी नाव मछली मारने के लिए समुद्र में उतार दी थी।
ग्रेटा के अभियान के बाद अरब व यूरोप के जगह-जगह से हजारों की तादाद में अभियानों की घोषणायें होने लगीं। जगह-जगह से एनजीओ-वामपंथी व मानवाधिकार संगठन गाजा मार्च के अभियानों की घोषणा करने लगे। अरब के कई देशों में इस तरह के अभियानों की घोषणाओं ने उनके शासकों को परेशानी में डाल दिया है कि वे इन अभियानों के प्रति क्या रुख अपनायें।
उधर फ्रांस के पेरिस शहर में लाखों लोगों ने इजरायल के खिलाफ प्रदर्शन में हिस्सा लिया। भारत समेत कई अन्य देशों में भी लोग सड़कों पर उतरे। कई जगह पर फिर से 17 जून को इजरायल विरोधी प्रदर्शनों का आह्वान किया गया है।
इजरायल के क्रूरतम नरसंहार, भूखे मारने की नीति ने फासीवादी-अत्याचारों की यादें ताजा कर दी हैं। दुनिया भर की जनता में इस नरसंहार के खिलाफ जागरूकता बढ़ रही है। आज 21वीं सदी में किसी कौम को भूख से मारने की हरकत अत्याचारी शासक ही कर सकते हैं। दुनिया भर के शासकों की इस नरसंहार पर चुप्पी उन्हें भी जनता के आगे बेपर्दा कर रही है।