
बरेली के परसा खेड़ा औद्योगिक क्षेत्र में स्थित एक इलेक्ट्रिकल फैक्टरी के मजदूरों से बातचीत करने पर पता चलता है कि मालिक मजदूरों के खिलाफ क्या-क्या तिकड़में करता है।
इस फैक्टरी में 18 मजदूर काम करने वाले व 8 महिला खाना बनाने वाली हैं। कुल मिलाकर इस फैक्टरी में 22-24 मजदूर काम करते हैं। लेकिन इसी के साथ मालिक ने इस फैक्टरी में दो फर्म बना रखी हैं। 9-9 मजदूर उसकी दोनों फैक्टरियों में हो गये हैं। ऐसा करने से मालिक काफी प्रक्रिया से बच जाता है। अतः फैक्टरी में कारखाना कानून लागू नहीं होता। इसी तरह वह एक तरीका और अपनाता है वह यह कि वह मजदूरों को संगठित नहीं होने देता है। उदाहरण के तौर पर मालिक किसी मजदूर को 18,000 रुपये देता है तो वह उसी को अलग से एक हजार रु. और देता है। ये इसलिए देता है कि अब दूसरे मजदूर को नहीं बताओगे कि मालिक मुझे कितने रुपये देता है। तो इस तरह मजदूर अपनी-अपनी सैलरी किसी को नहीं बताते हैं और एकजुट होने की कहो तो वह एकजुट नहीं होते हैं। क्योंकि वह अपने आप में सोचते हैं कि मेरे पैसे तो मालिक ने पहले ही बढ़ा दिये हैं तो मैं क्यों यूनियन में शामिल होऊं। इस तरह से मालिक मजदूरों को इकट्ठा नहीं होने देता है।
जब मजदूर कुछ मजदूर नेताओं से मिलते हैं जो मजदूरों को एकजुट करते हैं तब मजदूरों को एक दूसरे पर भरोसा होना शुरू होता है। तब वह मालिकों के खिलाफ लड़ पाते हैं तब मालिकों द्वारा कानूनों को लागू करवा पाते हैं। अगर मजदूर राजनीति को नहीं समझेंगे तो मालिक से कभी भी अपना वेतन-सुविधायें नहीं बढ़वा पायेंगे।
-रामसेवक, बरेली