घाघरा नदी के कटान से आधा दर्जन गांवों का अस्तित्व संकट में

बलिया जिले के उत्तरी छोर पर बहने वाली घाघरा नदी के बहाव में अचानक आए बदलाव से जिले के लगभग आधा दर्जन गांवों का अस्तित्व संकट में आ गया है। गांववासियों की जीविका का मुख्य स्रोत खेती है। हजारों एकड़ खेती की जमीन घाघरा नदी के कटान में चली गयी है जिससे लोगों की जीविका की समस्या खड़ी हो गयी है और अब आबादी वाले इलाके में भी कटान का असर हो रहा है।
    
उत्तर प्रदेश की मुख्य नदियों में से एक घाघरा नदी भी है, जो दक्षिणी तिब्बत के ऊंचे पर्वत शिखरों से यानी हिमालय से निकलकर नेपाल होते हुए उत्तर प्रदेश के बहराइच, गौंडा, सीतापुर, बाराबंकी, टाड़ा अयोध्या, राजे सुल्तानपुर, आजमगढ़, दोहरी घाट, बलिया होते हुए उत्तर प्रदेश व बिहार की सीमा के बीच बलिया-छपरा के बीच माझी घाट के समीप  व सीवीलगंज के समीप गंगा नदी में विलीन हो जाती है। इसी नदी को अयोध्या के आस-पास सरयू नदी भी कहा जाता है। घाघरा नदी बलिया जिले की उत्तरी सीमा पर बहती है जिसके उस पार उत्तर प्रदेश का देवरिया जिला व बिहार का सिवान व छपरा जिले का बार्डर पड़ता है। 
    
बलिया जिले की सिकन्दरपुर तहसील के पूरब दिशा में एक मनिपर कस्बा है, मनिपर और सिकन्दपुर (जो दोनों कस्बे पुराने समय से टाउन एरिया हैं) के बीच फरीद व पुरुषोत्तम पट्टी गांव के ठीक सामने उत्तर तरफ नदी के उस पार सिवान जिले का दरौली बाजार है वह भी पुराना बाजार है। नदी को पार करने के लिए मुख्य रूप से नाव, स्टीमर व पीपों के पुल से लोग आते-जाते थे। प्रतिदिन सैकड़ों से हजारों लोगों का आना-जाना, निजी कार्य, दुकानदारी बाजार के अलावा दोनों प्रांतों के लोगों के बीच रिश्तेदारी-नातेदारी आदि कार्यों से आना-जाना लगा रहता है।     
    
सिवान के दरौली व बलिया के खरीद के बीच नदी पर पक्का पुल न होने से लोगों को परेशानी होती है। इस बीच 2012 से 2017 के बीच उत्तर प्रदेश सरकार ने वहां पर पक्का पुल बनाने का प्रस्ताव पास कर बजट भी मंजूर कर दिया। इससे दोनों प्रांतों के सीमान्चल के लोगों को खुशी हुई। लोगों को लगने लगा कि अब इस राह पर आवागमन आसान ही नहीं होगा बल्कि समय और धन की बचत भी होगी तथा बड़ी गाड़ियों जैसे बस, ट्रक आदि का भी आना-जाना शुरू हो जाएगा। किन्तु पुल निर्माण के शुरू से सेतु निगम तथा बाढ़ प्रखण्ड के इंजीनियरों की लापरवाही व अदूरदर्शिता के चलते कहां लोगों को खुशी होती उलटे उजड़ा चमन की कहावत चरितार्थ होने लगी। हुआ यूं कि पुल निर्माण के काम की शुरूआत बिहार की तरफ से हुई यानी नदी के उत्तरी छोर से। घाघरा नदी का मुख्य बहाव वहां पर पहले बिहार के तरफ ही था, उत्तर प्रदेश के बलिया जिले की तरफ ज्यादातर इलाका बाढ़ का मैदान (खाली रेतीला इलाका) पड़ता था (लेखक इस रास्ते से खुद कई बार नाव व पीपा के पुल से बिहार गया और आया है) सड़क से कम से कम 3 या 4 किलोमीटर का खाली रेतीला इलाका पार करने के पश्चात ही नदी का बहाव आता था। 
    
बिहार के तरफ से पुल के स्तम्भ पड़ने लगा। दर्जनों पाये पड़कर तैयार होने लगे। जितने क्षेत्र में पाये की गोलाई थी उतनी जगह तो घेरता ही था बल्कि पाये की गोलाई में चारों तरफ मिट्टी का ढेर भी लगने लगा। दर्जनों पायों में से लगभग 5 या 6 पाये नदी के मुख्य बहाव के बीच में बन गये और 5-6 पायों के चारों तरफ गोलाई में मिट्टी व अन्य जैसे मिट्टी मलवा आदि का ढेर लग गया जिससे नदी का मुख्य बहाव बाधित होने लगा। 
    
स्थानीय लोगों का कहना है कि चूंकि बिहार में उत्तर प्रदेश की अपेक्षा बाढ़ ज्यादा आती है इसलिए वहां की नदियों के किनारे बांध व ठोकर बनाने का काम उत्तर प्रदेश की अपेक्षा ठीक तरह से होता है। घाघरा नदी का बहाव पाया बन जाने व उसके बगल में मिट्टी व मलवा भर जाने से बाधित होने लगा व उत्तर की तरफ बिहार में पहले से ठोकर वगैरह ठीक होने के कारण नदी का बहाव नदी के दक्षिणी किनारे की तरफ यानी बलिया जिले की तरफ आने लगा। शुरू में लगा कि थोड़ा बहुत नदी की धारा इधर-उधर होती है कोई खास बात नहीं होगी, किन्तु देखते-देखते जो बलिया जिले से 3-4 किलोमीटर का खाली स्थान था उसका अधिकांश हिस्सा नदी के कटान से बह गया, खेती की हजारों एकड़ का क्षेत्र नदी के कटान में चला गया। जिससे बलिया जिले के कुछ गांव जैसे खरीद, पुरुषोत्तम पट्टी, निपनियां, बिजलीपुर, बहदुरा, दीपरा हरिजन बस्ती आदि गांवों के खेती के इलाके तो कटान में चले ही गये, उपरोक्त गांवों में रहने वाली आबादी के ऊपर भी तबाही का मंजर मंडराने लगा है। दीपरा हरिजन बस्ती में लगभग 500 की आबादी नदी के कटान के ठीक मुहाने पर है। कई लोग जेसीबी से अपने घरों के ईंट, गाटर, पटिया आदि उखाड़कर दूसरी जगह पर जाना प्रारम्भ कर चुके हैं। उपरोक्त सभी गांवों को मिलाकर लगभग आठ से दस हजार आबादी रहती है। कटान से सभी लोग डरे-सहमे हुए हैं। इस समस्या को लेकर गांव व क्षेत्र के लोगों ने अपने क्षेत्र के नेता, विधायक, पूर्व विधायक, सांसद के अलावा जिले के डीएम व एसडीएम जैसे अधिकारियों के यहां जाकर अपने ऊपर आयी आफत को बताया। इस संदर्भ में एसडीएम सिकन्दरपुर ने मौके पर जाकर निरीक्षण भी किया व क्षेत्रवासियों को आश्वासन दिया कि जल्द ही शासन से इस समस्या का हल कराया जाएगा। स्थानीय लोगों के अनुसार बीएचयू बनारस व रुड़की से इंजीनियर भी मौके पर आए हैं। उनका कहना है कि नदी के दक्षिणी छोर यानी बलिया के तरफ से कुछ और पुल का पाया बना दिया जाए व कुछ दूर बांध व ठोकर बना दिया जाये तो कटान आगे नहीं बढ़ेगा व उपरोक्त गांव बच जाएंगे। किन्तु इसके लिए शासन को अतिरिक्त पैसा पास करवाना पड़ेगा जो कई करोड़ का है।
    
अधिकारी, इंजीनियर, नेता, विधायक के दौरे व केवल आश्वासन मिलने से तथा जमीन पर कोई काम न होने से क्षेत्र की जनता ऊब चुकी है। क्षेत्रीय जनता अपनी तबाही से पहले जमीन पर काम देखना चाहती है। किन्तु इस व्यवस्था में आश्वासन के अनुसार यदि काम दिखाई देने लगा तो स्वर्ग बन जाए। क्षेत्र के लोग आश्वासन से ऊबकर अब प्रभावित गांवों में बैठकें कर रहे हैं। धीरे-धीरे एक बड़े जनांदोलन की तरफ क्षेत्रीय जनता अब मन बना रही है। दर्जनों जगहों पर लोगों की बैठकें हो चुकी हैं। गांव-गांव में जन जागरूकता अभियान के तहत लोगों को नेताओं व अधिकारियों पर केवल आश्रित होना छोड़कर संघर्ष की राह पर उतरने की कुछ सामाजिक लोग पहल करने लगे हैं। लोगों की पहलकदमी से लग रहा है कि जल्द ही आंदोलन की शुरूआत होने जा रही है। क्योंकि पिछले रविवार यानी 22 अक्टूबर को बैठक में लगभग 40-50 लोग थे जिनमें आंदोलन की रूपरेखा व आगे की संघर्ष हेतु एक कमेटी का गठन किया गया जिसका नाम ‘‘घाघरा नदी कटान भूमि एवं गांव बचाओ समिति’’ रखा गया है। ये तो आने वाला समय ही बताएगा कि इलाके के उजड़ रहे लोगों के लिए शासन-प्रशासन त्वरित रूप से क्या करता है। किन्तु यह सच्चाई है कि इस व्यवस्था में थोड़ा बहुत राहत के लिए भी लोगों को संघर्ष करना ही पड़ेगा बगैर लड़े कुछ भी मिलने वाला नहीं है। दो-दो विभाग (सेतु निगम व बाढ़ प्रखण्ड) के लाखों रुपये प्रतिमाह वेतन पाने वाले इंजीनियर यह अंदाजा नहीं लगा पाए कि पुल के पाया निर्माण से क्या प्रभाव पड़ सकता है। इस लुटेरी व भ्रष्ट व्यवस्था में ये इंजीनियर केवल कमीशन, लूट व अपनी निजी सम्पत्ति संसाधन बढ़ाने के अलावा कर क्या कर रहे हैं। आज नहीं तो कल जनता जागेगी व इस लुटेरी व्यवस्था के खिलाफ सड़क पर आएगी। तभी केवल संघर्ष करने वाले लोगों की ही नहीं बल्कि पूरे समाज की खुशहाली आएगी और वह समाजवादी व्यवस्था होगी जिसमें पूरे समाज के लिए हर काम होगा।   -बलिया संवाददाता

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