
6-7 जून से अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प ने अप्रवासी विरोध के बहाने अपनी ही जनता के खिलाफ एक तरह की जंग छेड़ दी है। इस जंग का केन्द्र कैलीफोर्निया प्रांत का लॉस एंजिल्स शहर बना हुआ है। हालांकि अन्य शहर भी इसमें खिंचते चले आ रहे हैं। ट्रम्प ने सत्ता में आने के कुछ समय बाद ही अमेरिका में रह रहे अवैध अप्रवासियों के खिलाफ कार्यवाही का ऐलान कर दिया था। शुरूआत में विश्वविद्यालयों के छात्रां का वीजा रद्द कर उन्हें उनके देश वापस भेजा गया। ट्रम्प के निशाने पर फिलिस्तीन के समर्थन में प्रदर्शन कर रहे छात्र विशेष तौर पर थे।
इसके बाद ट्रम्प ने अपना रुख मजदूर-मेहनतकश आबादी पर किया। कैलीफोर्निया प्रांत जहां लगभग एक तिहाई आबादी अप्रवासी है, ट्रम्प के निशाने का स्वाभाविक रूप से पहला बड़ा केन्द्र बना। लॉस एंजिल्स व शिकागो में बड़े पैमाने पर आव्रजन अधिकारियों की छापेमारी शुरू हो गयी। छापेमारी के केन्द्र मांस उद्योग व प्रवासी बस्तियां व कृषि श्रमिकों के रिहाइशी इलाके बने। यहां बड़े पैमाने पर अप्रवासी रहते व कार्य करते हैं। स्वाभाविक रूप से श्रमिकों व आम जनों ने इस छापेमारी का एकजुट होकर विरोध किया।
एक खबर के मुताबिक ट्रम्प ने हर दिन 3000 अवैध अप्रवासियों की धर पकड़ का आदेश आव्रजन अधिकारियों को दे रखा है। जब छापेमारी का विरोध तेज हुआ तब ट्रम्प ने अमेरिकी कानूनों का इस्तेमाल करते हुए राष्ट्रीय गार्ड््स को संघीय सरकार के अधीन लाने का ऐलान कर दिया। अमेरिका में राष्ट्रीय गार्ड आम तौर पर प्रांतीय सरकारों के अधीन होते हैं। पर राष्ट्रीय आपदा-तख्तापलट आदि की स्थिति में संघीय सरकार अपने आदेश से इन्हें अपने अधीन कर सकती है।
कैलीफोर्निया प्रांत में चूंकि डेमोक्रेटिक पार्टी का शासन है और वहां के गवर्नर ने अप्रवासियों की धर पकड़ में राष्ट्रीय गाड््र्स को लगाने से इंकार कर दिया तब ट्रम्प ने संघीय आदेश से कुल 4000 राष्ट्रीय गार्ड्स अपने अधीन कर उन्हें छापेमारी के खिलाफ संघर्षरत लोगों के दमन हेतु तैनात कर दिया। इसी के साथ मरीन के 700 सैनिक भी तैनात कर दिये गये।
कैलीफोर्निया प्रांत के डेमोक्रेटिक पार्टी के गवर्नर ने ट्रम्प के इस आदेश को यद्यपि कोर्ट में चुनौती दी पर डेमोक्रेटिक पार्टी ने अपने नागरिकों के खिलाफ ट्रम्प द्वारा छेड़ी गयी जंग के खिलाफ किसी गोलबंदी का प्रयास नहीं किया। कोर्ट ने ट्रम्प के आदेश को जब गलत ठहरा कर रद्द कर दिया तो ट्रम्प सरकार ऊपरी कोर्ट में अपील में चली गयी और उसे निचली कोर्ट के आदेश पर स्टे भी प्राप्त हो गया।
अगले कुछ दिन ट्रम्प के राष्ट्रीय गार्ड्स के दमन और अप्रवासी मजदूरों के प्रतिरोध के गवाह बने। इस प्रतिरोध में एक हद तक लूटपाट-पत्थरबाजी भी हुई, जिसने ट्रम्प शासन को और दमन की ओर धकेला। ढेरों लोगों को अब तक गिरफ्तार किया जा चुका है। फिर भी कहना होगा कि लोगों की भारी संख्या ने राष्ट्रीय गार्ड्स व आव्रजन अधिकारियों को मनमर्जी से छापेमारी नहीं करने दी। खबर लिखे जाने तक लास एंजिल्स शहर में यह टकराव जारी था।
उधर शिकागो शहर में मांस फैक्टरियों में जहां बड़े पैमाने पर अप्रवासी कार्यरत हैं, छापेमारी की गयी। ढेरों मजदूर हिरासत में ले लिये गये। अमेरिका के अन्य शहर भी इस छापेमारी का सामना कर रहे हैं।
रिपब्लिकन पार्टी शासित राज्यों के गवर्नर खुद इस छापेमारी का नेतृत्व कर ट्रम्प शासन को खुश करने में जुटे हैं। वहीं बड़े पैमाने पर अवैध अप्रवासी मजदूरों वाला कृषि क्षेत्र हमले का अगला निशाना बन सकता है। जाहिर है यहां और तीखा प्रतिरोध होने की संभावना है।
मजदूरों-मेहनतकशों पर ट्रम्प शासन के इस हमले के वक्त डेमोक्रेटिक पार्टी और अमेरिका की आटो व अन्य क्षेत्र की बड़ी यूनियनों का रुख निष्क्रिय प्रतिरोध का रहा है। ये बड़ी यूनियनें ही वो क्षमता रखती हैं जो देशव्यापी आह्वान कर ट्रम्प की छापेमारी को रुकवा सकती हैं। डेमोक्रेटिक पार्टी भी इस आह्वान को कर सकती थी पर इनका रुख ट्रम्प के हमलों के प्रति समर्पणवादी रहा है।
ऐसे में अप्रवासी मजदूर स्वतः स्फूर्त ढंग से एकजुट हो ट्रम्प के हमलों का मुकाबला कर रहे हैं। वे गिरफ्तारी-पिटाई-देश निकाले का खतरा झेलते हुए संघर्षरत हैं। अमेरिकी मूल के मजदूरों को इन अप्रवासियों के साथ खड़े होने की जरूरत है क्योंकि अप्रवासियों पर हमले के बाद ट्रम्प के हमले का वो भी शिकार बनेंगे।
14 जून को अपने जन्म दिवस और सेना के स्थापना दिवस पर ट्रम्प सैन्य जमावड़े का वाशिंगटन में बड़ा प्रदर्शन कर अपने हमले को तेज करने पर उतारू हैं। अमेरिकी मजदूर वर्ग ही इस हमले को रोकने की ताकत रखता है। आज नहीं तो कल वो ट्रम्प के हमलों को रोकने को जरूर आगे आयेगा।