निर्वस्त्र कर दी गई स्त्रियां -आदित्य कमल

एक तस्वीर अटक गई है
हटती ही नहीं, चिपक गई है
आंखों के कार्निया और रेटिना पर
लटकी हुई है एक निर्वस्त्र कर दी गई स्त्री!
कौन है वह ...?
वह चीखती है, चीखती जा रही है -
छोड़ दो मुझे - मैं मां हूं
मैं बहन हूं तुम्हारी, बेटी हूं
पत्नी हूं तुम्हारी, प्रेयसी हूं
छोड़ दो मुझे - एक स्त्री हूं मैं !
वह बार-बार चीखती है
न जाने कब से चीखती जा रही है !!
उसकी चीख बहुत-बहुत-बहुत 
पीछे से सुनाई दे रही है
और तुम, बहुत-बहुत-बहुत 
नीचे गिरते जा रहे हो
गिरते-गिरते तो तुम
बहुत-बहुत पीछे से भी बहुत पीछे जा चुके हो !!
तुम्हारी पीछे जाने की फितरत रही है
तो चलो, पीछे से ही शुरू करते हैं -
कहां से शुरू करें, क्या उस मिथक से
जब हत्या करता है ओरेस्टस अपनी मां का
और देवताओं की बहसों के बाद
स्थापित होती है - पितृसत्ता ?
सार तो यही है कि जमा हो रही थी निजी संपत्ति
और बढ़ रहा था तुम्हारा जागीर ...
घर के साथ तुमने बनाए दास-दासियों के बाड़े भी
भोगते रहे घर में पत्नियों को
बाहर दासियों को निर्द्वन्द्व ...।
लड़ाइयों और युद्धों में लूटते रहे
स्त्रियां .. ज़र और ज़मीन की तरह ।
न तुम्हारे युद्ध खत्म हुए, न तुम्हारी लूट खत्म हुई 
तुम्हारे राजदरबारों में नचाई जाती रहीं
निर्वस्त्र की जाती रहीं
नोची-खसोटी जाती रहीं
मंदिरों और मठों में भोगी जाती रहीं
चिताओं पर जलाई जाती रहीं
जबरन बलात्कारों-सामूहिक बलात्कारों
संस्थागत बलात्कारों का शिकार होती रहीं-स्त्रियां
एकनिष्ठता की कितनी कीमतें चुकाईं - स्त्रियों ने!
तुम्हारे तथाकथित निजी परिवारों की दुनिया के समानांतर
भरी हुई है एक दुनिया चकलाखानों से आज तक!!
होटलों-रेस्तरां-बार-शादी-समारोह से लेकर
युद्ध के मैदान तक औरतों के जिस्म और आत्मा को
सिर्फ नोचा और लहूलुहान ही तो किया है
इतिहास से लेकर वर्तमान तक
मुंह ही तो मारती रही है तुम्हारी लिप्सा भरी जीभ!
लुटी हुई औरतें या तो मार दी गईं
या अनचाहे गर्भ ढोने को अभिशप्त रहीं
क्या मणिपुर, क्या यूक्रेन
क्या सीरिया, क्या अफगान
क्या कठुआ, क्या गोधरा
क्या मुजफ्फरनगर, क्या भागलपुर
गिन नहीं पाओगे और गिनकर होगा भी क्या ?
कितना विद्रूप है सब कुछ, कितना घिनौना
कि सड़े समाजों में ‘डायन’ से लेकर
‘कुलटा’ और ‘वेश्या’ होने तक के
तमाम लांछन सहे उसने और तुम रहे ‘पाक-साफ’!
मुगालते में मत रहो कि इतिहास में सिर्फ 
तुम ही तुम थे
इतिहास में जिंदा है स्पार्टकस
और ज़िंदा है वारीनिया1 ..भी
वारीनिया ज़िंदा है हर उस स्त्री के हृदय में
जो दासता और गुलामी की संत्रास में 
छटपटा रही है
जिंदा हैं इतिहास की तमाम विद्रोही स्त्रियां
गुलामी के अहसास को महसूस करती
तमाम स्त्रियों के दिलों में ...आज भी
वह सिर्फ चाहे-अनचाहे गर्भ ही नहीं धारण करती
उसी की गर्भ से पैदा लेती है मुक्तिकामी विद्रोही नस्लें
स्त्रियां जिनमें मुक्ति की चेतना के अंकुर फूट रहे हैं
सड़कों पर उतरीं हैं ...देखो,
अब चीखें तब्दील हो रहीं हैं विद्रोही स्वरों में
मेहनतकश जनसमूह में शामिल हैं स्त्रियां
साथ-साथ मुट्ठी उठाए, जनगीत गाते, परचम लहराते
वे साथ-साथ धावा बोलेंगी निजी संपत्ति के साम्राज्य पर
खबरदार ... !
आइंदा उन्हें फेंका हुआ लुटाऊ माल,
अपनी संपत्ति समझने की भूल मत करना !!
1 वरिनिया दृ स्पार्टकस की प्रेमिका जो प्रथम दास-विद्रोह में स्पार्टकस के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ी

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