फ्रीडन वर्ग में ठेका मजदूरों की यूनियन गठित

दो साल के लम्बे संघर्ष के बाद अंततः मोहाली, चंडीगढ़ स्थित फैक्टरी फ्रीडन वर्ग में ठेका मजदूरों ने अपनी यूनियन गठित करने में सफलता हासिल कर ली। उनकी यूनियन ‘‘F n i (कान्ट्रैक्टर) मजदूर एकता यूनियन’’ के नाम से रजिस्टर्ड हो गई है। अभी तक भारत में यही प्रचारित है कि ठेका मजदूर अपनी यूनियन नहीं बना सकते, उनकी कोई यूनियन नहीं होती आदि। फैक्टरियों में मौजूद ट्रेड यूनियनें भी ठेका मज़दूरों को यूनियन की सदस्यता नहीं देती हैँ। जब मानेसर, गुडगांव में स्थित बेलसोनिका यूनियन ने अपनी फैक्टरी में ठेका मजदूरों को यूनियन की सदस्यता देनी शुरू की तो फैक्टरी प्रबंधन इसी मामले के आधार पर यूनियन का पंजीकरण निरस्त करवाने के लिए श्रम विभाग चला गया। आज फ्रीडन वर्ग के मजदूरों ने अपने लगभग 2 सालों के संघर्ष के बाद ये सब भ्रातियां दूर कर दीं और मजदूरों के लिए खासकर ठेका श्रमिकों के लिए आगे के रास्ते खोल दिए। फ्रीडन वर्ग की इस यूनियन में ठेका और स्थाई दोनों सदस्य हो सकते हैं।
    
ज्ञात हो कि फैक्टरी में 100 स्थाई और 900 के लगभग ठेका मज़दूर थे। स्थाई श्रमिकों की यूनियन पहले से मौजूद थी। जब यूनियन ने ठेका मजदूरों की मांग नहीं उठाई और उनको यूनियन सदस्यता नहीं दी तब उन्हें नई यूनियन बनाने को मजबूर होना पड़ा।
    
आज देश में फैक्टरियों में स्थायी मज़दूरों को रखना बंद हो चुका है। मोदी सरकार द्वारा चार लेबर कोड़ बनाने के बाद तो पूंजीपति वर्ग जिन फैक्टरियों में स्थायी मजदूर मौजूद भी हैं और उनकी यूनियन भी है, उन स्थायी मजदूरों को निकालना और उनकी यूनियन को खत्म करने में लगा हुआ है। अभी हाल में बिजनेस स्टैण्डर्ड की रिपोर्ट में भी इस बात को दिखाया गया है कि अब फैक्टरियां ठेके पर ही मजदूरों को रख रही हैं ताकि मजदूरों को कम से कम वेतन देना पड़े और अन्य जिम्मेदारियों से मुक्ति पायी जा सके।
    
ऐसे में फ्रीडन वर्ग के ठेका मजदूरों द्वारा अपनी यूनियन गठित करना ठेका मजदूरों के संघर्षों को कानूनी रास्ता मुहैय्या करा देगा। 
        -मोहाली संवाददाता

आलेख

/ameriki-dhamakiyon-ke-sath-iran-amerika-varta

अमरीकी सरगना ट्रम्प लगातार ईरान को धमकी दे रहे हैं। ट्रम्प इस बात पर जोर दे रहे हैं कि ईरान को किसी भी कीमत पर परमाणु बम नहीं बनाने देंगे। ईरान की हुकूमत का कहना है कि वह

/modi-sarakar-waqf-aur-waqf-adhiniyam

संघ और भाजपाइयों का यह दुष्प्रचार भी है कि अतीत में सरकार ने (आजादी के बाद) हिंदू मंदिरों को नियंत्रित किया; कि सरकार ने मंदिरों को नियंत्रित करने के लिए बोर्ड या ट्रस्ट बनाए और उसकी कमाई को हड़प लिया। जबकि अन्य धर्मों विशेषकर मुसलमानों के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। मुसलमानों को छूट दी गई। इसलिए अब हिंदू राष्ट्रवादी सरकार एक देश में दो कानून नहीं की तर्ज पर मुसलमानों को भी इस दायरे में लाकर समानता स्थापित कर रही है।

/china-banam-india-capitalist-dovelopment

आजादी के दौरान कांग्रेस पार्टी ने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह उग्र भूमि सुधार करेगी और जमीन किसानों को बांटेगी। आजादी से पहले ज्यादातर जमीनें राजे-रजवाड़ों और जमींदारों के पास थीं। खेती के तेज विकास के लिये इनको जमीन जोतने वाले किसानों में बांटना जरूरी था। साथ ही इनका उन भूमिहीनों के बीच बंटवारा जरूरी था जो ज्यादातर दलित और अति पिछड़ी जातियों से आते थे। यानी जमीन का बंटवारा न केवल उग्र आर्थिक सुधार करता बल्कि उग्र सामाजिक परिवर्तन की राह भी खोलता। 

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं।