ये भला कहां मानने वाले हैं..

अभी राम मंदिर का निर्माण पूरा भी नहीं हुआ है और उसके जरिये राजनैतिक-धार्मिक उन्माद का ज्वार अभी उतरा भी नहीं है कि भाजपा-संघ के नेता नया राग काशी और मथुरा को लेकर अलापने लगे हैं। पहले राम मंदिर ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष बोले कि ‘अगर 3 मंदिर मुक्त हो गए तो हम अन्य की तरफ देखेंगे भी नहीं’। और फिर यूपी के मुख्यमंत्री ने भरी विधानसभा में फरमाया कि ‘‘श्री कृष्ण ने मांगे थे 5 गांव हमने तो केवल 3 मांगें हैं’’। फिर इसके बाद उन्होंने अपने आग लगाऊ अंदाज में कहा ‘‘कृश्न कन्हैया कहां मानने वाले हैं’’।
    
साफ है कि अब देश के संविधान-कानून को फिर एक बार धता बताकर खास किस्म के राजनैतिक-कानूनी षड्यंत्र के जरिये हिन्दू फासीवादी आंदोलन काशी विश्वनाथ को ज्ञानव्यापी मस्जिद और कृष्ण जन्म भूमि को शाही ईदगाह भी जबरदस्ती दिला देगा। राम, शिव, कृष्ण के नाम पर देश में बार-बार धार्मिक उन्माद व धार्मिक ध्रुवीकरण पैदा कर ये राजनैतिक सत्ता को अपने हाथ में कायम रखकर, अपने घृणित फासीवादी मंसूबे हिन्दू राष्ट्र को किसी भी कीमत पर हासिल करना चाहते हैं। चुनावी वर्ष में मोदी, योगी, अमित शाह, मोहन भागवत आदि सभी की जुबान हिन्दू फासीवादी जहर उगल रही है। 
    
फासीवाद की हमेशा से खासियत रही है कि वह जनता को धर्म, नस्ल आदि के आधार पर बांटता व संगठित करता है। और इस दौरान जनता खासकर मजदूर-मेहनतकश वर्गों को एक उन्माद की अवस्था में धकेल देश के सबसे बड़े अमीरों की सेवा करता रहा है। और देश के सबसे बड़े अमीर जब अकूत मुनाफे बटोर रहे हों तो फासीवादी धर्म, नस्ल आदि के आधार पर मजदूरों-मेहनतकशों के बीच बंटवारा पैदा करते हैं। हिटलर एक तरफ आर्य नस्ल का खेल खेलता था और दूसरी तरफ जर्मनी व दुनिया के सबसे बड़े घरानों (गुस्तोव क्रुप्प- यूरोप का सबसे बड़ा हथियार निर्माता; श्रयोडर- जर्मन बैंकर; फ्रिट्ज थाईसीन- स्टील निर्माता, सीमेन्स, जे.पी. मार्गन, हेनरी फोर्ड..) के मुनाफे को पंख लगाते थे। ठीक यही कुछ भारत में होता है। भारत के हिन्दू फासीवादियों के सबसे बड़े समर्थकों में अडाणी-अम्बानी-टाटा-मित्तल हैं और इन्हें दुनिया के सबसे बड़े पूंजीपतियों से भी समर्थन मिल रहा है। धर्म, राष्ट्रवाद की पट्टी मेहनतकशों के आंखों में बांध दी जाती है और देश-दुनिया के पूंजीपति दोनों हाथों से देश के संसाधनों से लेकर मजदूर-किसानों को लूटते हैं। 

आलेख

अमरीकी साम्राज्यवादी यूक्रेन में अपनी पराजय को देखते हुए रूस-यूक्रेन युद्ध का विस्तार करना चाहते हैं। इसमें वे पोलैण्ड, रूमानिया, हंगरी, चेक गणराज्य, स्लोवाकिया और अन्य पूर्वी यूरोपीय देशों के सैनिकों को रूस के विरुद्ध सैन्य अभियानों में बलि का बकरा बनाना चाहते हैं। इन देशों के शासक भी रूसी साम्राज्यवादियों के विरुद्ध नाटो के साथ खड़े हैं।

किसी को इस बात पर अचरज हो सकता है कि देश की वर्तमान सरकार इतने शान के साथ सारी दुनिया को कैसे बता सकती है कि वह देश के अस्सी करोड़ लोगों (करीब साठ प्रतिशत आबादी) को पांच किलो राशन मुफ्त हर महीने दे रही है। सरकार के मंत्री विदेश में जाकर इसे शान से दोहराते हैं। 

आखिरकार संघियों ने संविधान में भी अपने रामराज की प्रेरणा खोज ली। जनवरी माह के अंत में ‘मन की बात’ कार्यक्रम में मोदी ने एक रहस्य का उद्घाटन करते हुए कहा कि मूल संविधान में राम, लक्ष्मण, सीता के चित्र हैं। संविधान निर्माताओं को राम से प्रेरणा मिली है इसीलिए संविधान निर्माताओं ने राम को संविधान में उचित जगह दी है।
    

मई दिवस पूंजीवादी शोषण के विरुद्ध मजदूरों के संघर्षों का प्रतीक दिवस है और 8 घंटे के कार्यदिवस का अधिकार इससे सीधे जुड़ा हुआ है। पहली मई को पूरी दुनिया के मजदूर त्यौहार की

सुनील कानुगोलू का नाम कम ही लोगों ने सुना होगा। कम से कम प्रशांत किशोर के मुकाबले तो जरूर ही कम सुना होगा। पर प्रशांत किशोर की तरह सुनील कानुगोलू भी ‘चुनावी रणनीतिकार’ है