कुश्ती संघ चुनाव : जिसका अंदेशा था वही हुआ

भारतीय कुश्ती संघ (WFI) के चुनाव लंबे समय से टलते-टलते 21 दिसंबर को सम्पन्न हुए। चुनाव में बृजभूषण शरण सिंह के बेहद करीबी संजय सिंह को जीत मिली। संजय सिंह की जीत के बाद बृजभूषण शरण सिंह के समर्थकों ने पोस्टर जारी करते हुये पोस्टरों में लिखा ‘दबदबा तो है, दबदबा तो रहेगा’। इससे स्पष्ट है बृजभूषण शरण सिंह के कुश्ती संघ के चुनाव लड़ने से रोक लगने के बावजूद कुश्ती संघ में चलती उनकी ही है। उनके पीछे मोदी सरकार व खेल मंत्रालय खड़ा है।
    
चुनाव की प्रक्रिया बृजभूषण पर यौन उत्पीड़न के लगे आरोपों के बाद जुलाई 2023 में शुरू की गई थी। पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में केस पहुंचने के कारण चुनाव टल गया था। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट की ओर से लगाई गई रोक को हटा दिया। तब जाकर 21 दिसंबर को चुनाव कराए गए।
    
भारतीय कुश्ती संघ में बृजभूषण शरण सिंह का दबदबा पिछले 12 साल से बना हुआ है। वह 2011 से लगातार तीन बार कुश्ती संघ के अध्यक्ष चुने गये। गौरतलब है कि बृजभूषण के अध्यक्ष रहते हुए कई महिला पहलवानों, पहलवानों ने उनके खिलाफ आंदोलन किया था। इन्होंने बृजभूषण पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे। इन आरोपों पर निष्पक्ष जांच कराने के लिए इस्तीफा देने के बजाय वह निर्लज्जता से अपने पद पर बना रहा और महिला पहलवानों, खिलाड़ियों पर ही झूठे आरोप लगाता रहा। जंतर-मंतर पर हुए प्रदर्शन, महिला पहलवानों के साथ बढ़ते जन समर्थन के बाद भी वह टस से मस नहीं हुआ। बृजभूषण पर FIR के लिए भी खिलाड़ियों को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा तब जाकर FIR दर्ज हो सकी। इन्हीं आरोप लगाने वाले खिलाड़ियों को प्रधानमंत्री ओलंपिक आदि जगह मेडल जीतने पर सम्मानित कर चुके थे। प्रधानमंत्री ने इनके फ़ोटो को अपने पोस्टरों में लगवाकर जगह-जगह महिला उत्थान का प्रचार अपने चुनावी फायदे के लिए किया। बेटियां आगे बढ़ रही हैं, देश का नाम रोशन हो रहा है, कह कर इनका अपने चुनावी फायदे के लिए इस्तेमाल किया।
    
यही पहलवान खिलाड़ी भाजपा सांसद, कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण द्वारा यौन उत्पीड़न के खिलाफ न्याय मांगने गए तो सरकार ने उन्हें दुत्कार कर अपने चिर परिचित अंदाज में चुप्पी साध ली। मोदी जी व मोदी सरकार सभी महत्वपूर्ण मामलों पर जिन पर वह फंसते नजर आते हैं, चुप्पी साध लेते हैं। महिला उत्थान, महिलाओं के साथ बराबरी, न्याय का दिखावा करने वाले मोदी जी की हकीकत इस मामले में खुलकर सामने आ गई। ‘बहुत हुआ नारी का अपमान-अबकी बार मोदी सरकार’, ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ जैसे इनके नारे खोखले हैं। ये महिलाओं को बराबरी व सम्मान से नहीं देखते हैं। केवल अपने फायदे के लिए इनको इन नारों व महिलाओं के साथ न्याय, बराबरी का ढोंग करना पड़ता है।
    
कुश्ती संघ के इन चुनाव में बृजभूषण शरण सिंह, उसके परिवार और रिश्तेदार जनों के चुनाव लड़ने पर रोक लगी थी। परंतु उसने दिखा दिया कि कुश्ती संघ में चलेगी तो उसकी ही। अपने सहयोगी, बेहद करीबी संजय सिंह के पूरे पैनल को जिताकर उसने अपना दबदबा बना कर रखा। संजय सिंह बृजभूषण शरण सिंह पर लगे गंभीर आरोपों में बृजभूषण का साथ देते रहे। बदले में संजय सिंह को बृजभूषण शरण से कुश्ती संघ का अध्यक्ष पद तोहफे में मिला है।
    
बृजभूषण अपने दबदबे, कुश्ती संघ में पकड़ से अपने चहेते को अध्यक्ष बनाने के लिए स्वयं संजय सिंह के प्रचार में लगे रहे। संजय सिंह स्वयं बताते हैं कि ‘बृजभूषण के साथ उनके पारिवारिक संबंध हैं। लगभग पिछले दो-तीन दशकों से उनके आपसी गहरे संबंध हैं’। यह गहरा संबंध इन चुनावों में और इससे पूर्व भी दिखाई दिया। बृजभूषण जब उत्तर प्रदेश से कुश्ती संघ के अध्यक्ष बने थे उसके कुछ समय बाद ही संजय सिंह को उपाध्यक्ष बना दिया गया। बृजभूषण उसके बाद भारतीय कुश्ती संघ में आगे बढ़ते रहे, अपना दबदबा बनाकर अध्यक्ष पद तक पहुंचे। उनके पीछे-पीछे संजय सिंह भी कुश्ती संघ के महत्वपूर्ण पदों में रहे और बृजभूषण के सहारे कुश्ती संघ में मजबूत बने रहे। इन दोनों का यह आपसी गहरा संबंध, पारिवारिक संबंध इन चुनावों में बृजभूषण के असल उत्तराधिकारी संजय सिंह के रूप में देखने को मिला। जिससे यह चुनाव पारदर्शिता की जगह दिखावा भर बनकर रह गए।
    
रेसलर खिलाड़ी इस बात से दुखी और गमगीन हैं कि अपने 40 दिनों के लंबे संघर्ष के बाद खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा था बृजभूषण का कोई भी करीबी कुश्ती संघ में पदों पर नहीं रहेगा। किसी महिला को कुश्ती संघ का अध्यक्ष बनाया जाएगा। ‘उन्होंने भी हमारे साथ धोखा किया है’ यह कहकर साक्षी मलिक ने प्रेस वार्ता में कुश्ती छोड़ने का ऐलान कर दिया। बजरंग पूनिया ने अपना पुरस्कार पद्मश्री सम्मान लौटा दिया। विनेश फोगाट ने मेजर ध्यानचंद खेल रत्न और अर्जुन अवार्ड लौटा दिए।
    
भारतीय कुश्ती संघ की देश में 25 इकाइयां हैं। हर इकाई के दो वोट हैं। भाजपा के प्रिय सांसद के लिए कुश्ती संघ में सालों की अपनी पकड़ से 50 वोटों में अपनी जीत सुनिश्चित करने में भला क्या परेशानी हो सकती थी। हर इकाई के वोटकर्ता सालों से किसी न किसी रूप से उनसे जुड़े हुए ही होंगे। जुड़ाव के लिए भाई-भतीजावाद, भ्रष्टाचार, दबाव-प्रभाव, सरकार में पकड़ होने पर फंड रोक देना आदि कई तरीके हो सकते हैं। 
    
भाजपा सरकार के लिए बृजभूषण शुरू से ही चहेता रहा है। यह बाबरी मस्जिद विध्वंस के समय से ही भाजपा के साथ मजबूती से रहे। अपने लोकसभा क्षेत्र कैसरगंज व आस-पास के इलाके में यह भाजपा की राजनीति के लिए मजबूत व प्रमुख व्यक्ति हैं। सवर्ण होने के कारण भी संघ-भाजपा इनको पालती-पोषती रही है। यौन हिंसा के आरोप में दिल्ली पुलिस और सरकारी वकील ने बृजभूषण को जमानत मिलने की याचिका पर कोई आपत्ति नहीं की और जमानत आसानी से होने दी। संघर्ष करने वाली महिला पहलवान खिलाड़ी उनकी आंखों में हमेशा चुभते रहे हैं। संघर्ष के दौरान भी डरा-धमका कर, दमन कर, झूठे वादे और आश्वासन से इनका आंदोलन समाप्त करवा दिया गया था। 
    
चौतरफा दबाव में घिरने के बाद सरकार ने अभी नये चुने गये कुश्ती संघ को निलंबित कर दिया है। इसका कारण सरकार का मानना है कि भारतीय कुश्ती संघ के नवनिर्वाचित सदस्यों ने निर्णय लेते समय नियमों का उल्लंघन किया है। लेकिन इस सरकार में देर-सबेर बृजभूषण शरण सिंह जैसे अपराधी, सरकार में बैठे हुए लोग अपनी मनमानी करने में सफल ही होंगे।

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