नदी से समुद्र तक, आजाद होगा फिलिस्तीन !

फिलिस्तीन के समर्थन में 4 नवम्बर 2023 को वाशिंगटन में रैली

गाजा पट्टी पर इजरायली फौजों द्वारा खूंखार हमले को एक महीने से ज्यादा समय हो गया है। अभी तक लगभग 11,000 फिलिस्तीनी लोगों का नरसंहार हो चुका है। इनमें से आधे से ज्यादा बच्चे और महिलायें हैं। गाजापट्टी के आधे से ज्यादा मकानों को जमींदोज किया जा चुका है। सभी अस्पतालों पर हमले किये जा रहे हैं। एक बड़े अस्पताल पर एक दिन में ही चार बार बमबारी की जा चुकी है। इसके अतिरिक्त पश्चिम किनारे में भी इजरायली सशस्त्र बलों और हथियारबंद कब्जाकारियों द्वारा चुन-चुन कर फिलिस्तीनियों को हमलों का निशाना बनाया जा रहा है। इन सबके बावजूद फिलिस्तीनी प्रतिरोध को रोकने में यहूदी नस्लवादी सरकार कामयाब नहीं हो पा रही है। बेंजामिन नेतन्याहू की सरकार की गाजापट्टी को मटियामेट करने की योजना लागू करने की तमाम कोशिशों के बावजूद प्रतिरोध जारी है। अमरीकी साम्राज्यवादियों तथा उनके यूरोपीय सहयोगियों द्वारा इजरायल के आपराधिक नरसंहार को खुला सहयोग और समर्थन जारी है। इसके बावजूद फिलिस्तीनियों के प्रतिरोध को कुचलने में ये नरसंहारक ताकतें सफल नहीं हो पा रही हैं। 
    
अभी तक इजरायली फौजों द्वारा नरसंहार जारी है। लेकिन इजरायल के अंदर तक फिलिस्तीनी प्रतिरोध के लड़ाकू मार कर रहे हैं। एक तरफ, इजरायल ने गाजापट्टी को दो हिस्सों में बांट दिया है। गाजापट्टी के उत्तर के लोगों को दक्षिण में जाने की, अपनी जान बचाने की धमकी दी जा रही है। 10 लाख से ज्यादा लोग अपनी जान बचाने के लिए दक्षिण में चले गये हैं। वे शरणार्थी शिविरों में, स्कूलों में रहने के लिए विवश हुए हैं। बिना बिजली, बिना पानी, बिना दवाओं और भोजन के भीषण बमबारी के बीच रहने को विवश हुए हैं। 
    
जिस तरह से यह नरसंहार गाजापट्टी में चल रहा है, इजरायली फौज और टैंक गाजापट्टी के अंदर घुसकर तबाही मचा रहे हैं, उससे यह जाहिर होता है कि फिलिस्तीनी लोगों के मुक्ति संघर्ष को कुचलने की तमाम कोशिशों के बावजूद इसका विस्तार होता जा रहा है। यह संघर्ष अपने दायरे में न सिर्फ अरब देशों की अवाम को समेट रहा है बल्कि इसके समर्थन में दुनिया भर के लोग बड़ी संख्या में आ रहे हैं। एक तरफ यमन के हौथी विद्रोही इजरायली ठिकानों पर राकेटों और मिसाइलों से हमले कर रहे हैं तो दूसरी तरफ, लेबनान के हिजबुल्ला मिलिशिया के लोग उत्तर से इजरायल पर हमला कर रहे हैं। इजरायल ने लेबनान सीमा पर अपनी तीन लाख की फौज तैनात कर रखी है। इजरायल ने लेबनान सीमा पर जबरन बसायी गयी यहूदी बस्तियों की आबादी को वहां से हटाने का आदेश जारी कर दिया है। अभी तक इजरायल ने हिजबुल्ला के 60 से ज्यादा लोगों की हत्यायें की हैं। हिजबुल्ला ने भी कई इजरायली सैनिकों को मार गिराया है। यमन के हौथी विद्रोहियों ने अमरीकी ड्रोन को मार गिराया है। फिलिस्तीनी मुक्ति संग्राम के समर्थन में न सिर्फ यमन के हौथी विद्रोही और लेबनान के हिजबुल्ला आ गये हैं, बल्कि इराक और सीरिया में भी अमरीकी फौजी अड्डों को वहां के लड़ाकू हमलों का निशाना बना रहे हैं। अभी तक इराक में अमरीकी फौजी अड्डों पर इराकी लड़ाकुओं ने 40 बार हमले किये हैं। उन्होंने कहा है कि ये हमले तब तक जारी रहेंगे जब तक अमरीकी साम्राज्यवादी इजरायल के अपराधों में, नरसंहारों में सहयोगी बने रहेंगे। 
    
गाजापट्टी पर इजरायली नरसंहार के दुनिया भर में व्यापक विरोध के चलते अब अमरीकी साम्राज्यवादियों का स्वर बदलने लगा है। अमरीकी साम्राज्यवादी यह घोषणा कर रहे हैं कि उन्होंने इजरायल की हुकूमत को इस पर राजी कर लिया है कि प्रत्येक दिन चार घण्टे के लिए वह हमलों को रोक देगा। इस दौरान, जो लोग उत्तर से दक्षिण की ओर जाना चाहेंगे, उन्हें इलाका खाली करते समय हमले का निशाना नहीं बनाया जायेगा। उन्होंने इकतरफा यह घोषणा की है। इस घोषणा को गाजापट्टी के लड़ाकुओं ने रद्द कर दिया है। उन्होंने गाजापट्टी के निवासियों से कहा है कि ऐसा कोई समझौता नहीं हुआ है। इजरायल के यहूदी नस्लवादी शासक भी अपना सुर, ऊपरी तौर पर ही सही, बदलने के लिए मजबूर हो गये हैं। वे अब यह कहने लगे हैं कि वे गाजापट्टी पर कब्जा नहीं करना चाहते। वे तो सिर्फ हमास का सफाया करना चाहते हैं। हमास का सफाया तो सिर्फ उनके लिए बहाना है। उनकी निगाह में गाजापट्टी पर अपना पूरा नियंत्रण स्थापित करना है। गाजापट्टी के किनारे भूमध्य सागर में तेल और गैस का भण्डार है। इस पर कब्जा करने के लिए इजरायली शासकों सहित अमरीकी और यूरोपीय तेल कम्पनियों की निगाहें हैं। इसमें हमास और अन्य प्रतिरोध संगठन बाधा बने हुए हैं। इसलिए गाजापट्टी को फिलिस्तीनियों से खाली कराना इजरायली यहूदी नस्लवादी शासकों के साथ-साथ अमरीकी साम्राज्यवादी शासकों के लिए जरूरी है। 
    
अमरीकी-ब्रिटिश साम्राज्यवादी और इजरायली यहूदी नस्लवादी चाहते हैं कि गाजापट्टी को फिलिस्तीनी आबादी से खाली करा लिया जाये। ये समूची आबादी को खतम नहीं कर सकते। इसलिए ये चाहते हैं कि गाजापट्टी की फिलिस्तीनी आबादी को मिश्र के सिनाई रेगिस्तान में धकेल दिया जाये। इससे मिश्र के शासक सहमत नहीं हैं। अमरीकी साम्राज्यवादी मिश्र के शासकों को इस पर दबाव और लालच दे रहे हैं। मिश्र के शासक अपनी अवाम के व्यापक विरोध से चिंतित हैं। इसके अतिरिक्त, शरणार्थियों के बढ़ते बोझ से भी उन्हें परेशानी है। मिश्र के अंदर फिलिस्तीन मुक्ति संघर्ष के व्यापक समर्थन से भी वहां के शासक परेशान हैं। अभी कुछ महीने पहले दो इजरायली पर्यटकों को मिश्र के सुरक्षा कर्मचारियों ने मार दिया था। इजरायल के विरुद्ध घृणा और आक्रोश मिश्र के अवाम में बढ़ता गया है। मिश्र के शासकों द्वारा फिलिस्तीनी मुक्ति संघर्ष के समर्थन और इजरायली नरसंहार के विरोध में प्रदर्शनों को आपराधिक कृत्य घोषित करने के बावजूद बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए हैं। मिश्र के फौजी तानाशाह अल-सीसी अमरीकी साम्राज्यवादियों के दबाव में होने के बावजूद राफा नाके को फिलिस्तीनियों के आने के लिए खोलने के लिए तैयार नहीं हैं। न तो फिलिस्तीनी लोग अपने घरों को गाजापट्टी से हमेशा को त्यागने के लिए तैयार हैं और न ही मिश्र उन्हें सिनाई क्षेत्र में बसाने के लिए तैयार है। ऐसी स्थिति में गाजापट्टी को फिलिस्तीनी आबादी से मुक्त करने की इजरायली यहूदी नस्लवादी शासकों की योजना कारगर नहीं हो पा रही है। 
    
इसके अतिरिक्त, इजरायली यहूदी नस्लवादी शासक चाहते हैं कि स्वेज नहर के नौपरिवहन के रास्ते के विकल्प के तौर पर एक नौपरिवहन का रास्ता बेन गुरियन नहर को भूमध्य सागर से जोड़ कर बनाया जाये। इसमें भी गाजापट्टी की फिलिस्तीनी आबादी बाधा के तौर पर दिखाई पड़ती है। इस नौपरिवहन का रास्ता बनाने के लिए भी गाजापट्टी को फिलिस्तीनी आबादी से खाली कराने में उसका स्वार्थ है। 
    
इजरायली यहूदी नस्लवादी शासक वृहत्तर इजरायल की योजना अपनी स्थापना के समय से ही रखते रहे हैं। अमरीकी साम्राज्यवादी भी 1948 से ही, इजरायल की स्थापना के समय से ही फिलिस्तीन से फिलिस्तीनी आबादी को बाहर करने की योजना रखते रहे हैं। इसलिए 1948 में नक्बा (महाविनाश) के दौरान 7 लाख से ज्यादा फिलिस्तीनियों को अपनी जमीन से उखाड़कर उन्हें बेघर शरणार्थी बनने के लिए मजबूर किया गया था। तब से इजरायली शासक लगातार फिलिस्तीनी अरब आबादी को जबरन उजाड़कर, उनकी जमीनों पर कब्जा करके उन पर यहूदी बस्तियां बसाते रहे हैं। ओस्लो समझौते के समय दो स्वतंत्र राज्यों- फिलिस्तीन राज्य और यहूदी नस्लवादी इजरायली राज्य- का सपना दिखाया गया था। यह एक छलावा था। फिलिस्तीन को तीन अलग-अलग हिस्सों में बांट दिया गया था। ये एक दूसरे से अलग-थलग थे। इनके ऊपर इजरायली यहूदी नस्लवादी राज्य था। ओस्लो समझौते की स्याही अभी सूखी भी नहीं थी, कि यहूदी नस्लवादी राज्य ने यहूदी बस्तियों को पश्चिम किनारे में बसाना तेज कर दिया। रोज ब रोज फिलिस्तीनियों को उजाड़ना जारी रखा। उनको वियतनाम के ‘रणनीतिक मांगें’ या दक्षिण अफ्रीका के बंतुतिस्तानों में बदल दिया गया। इसके विरुद्ध फिलिस्तीनियों का प्रतिरोध संघर्ष निरंतर जारी रहा। फिलिस्तीन प्राधिकार नामक जो सरकार बनायी गयी, वह पूर्णतया इजरायल पर निर्भर थी। आज फिलिस्तीन प्राधिकार का शासक मोहम्मद अब्बास पूर्णतया बदनाम है और उसे इजरायल का पिट्ठू समझा जाता है। पश्चिम किनारे में प्रतिरोध संघर्ष को जारी रखने वाले कई संगठन अस्तित्व में हैं। पूर्वी येरूशलम पर इजरायली यहूदी नस्लवादी शासकों ने अपना नियंत्रण और मजबूत कर लिया है। इन्होंने अल-अश्क मस्जिद पर हमला किया, नमाजी फिलिस्तीनियों को अपमानित किया। यह ज्ञात हो कि अल-अश्क मस्जिद मुस्लिम आबादी की दुनिया की सबसे पवित्र तीसरी मस्जिद है। इस अपमान से फिलिस्तीनी आबादी गुस्से और बेचैनी से खौल रही थी। बेंजामिन नेतन्याहू ने अभी हाल ही में न्यूयार्क में इजरायल का जो नक्शा दिखाया उसमें फिलिस्तीन कहीं नहीं था। गाजापट्टी, पश्चिम किनारा, येरूशलम सभी इजरायल का हिस्सा थे। इजरायली यहूदी नस्लवादी शासक वृहत्तर इजरायल को पूरा करने का इरादा पेश कर चुके थे। 
    
एक तरफ, दो स्वतंत्र राज्यों- फिलिस्तीन राज्य व इजरायली राज्य का ओस्लो समझौते की जो योजना पेश की गयी थी, वह पूर्णतया अर्थहीन सिद्ध हो चुकी है। यह और कुछ नहीं बल्कि इजरायली यहूदी नस्लवादी शासकों के अंतर्गत अधीनता की स्थिति में फिलिस्तीन प्राधिकार और खुली जेल में तब्दील गाजापट्टी की सरकार रही है। ये सभी फिलिस्तीनी इलाके इजरायल की संगीनों के नीचे और उसके रहमोकरम पर निर्भर हैं। इसी का और वीभत्स व कुत्सित रूप वृहत्तर इजरायल है, जो यहूदी नस्लवाद पर आधारित एक राज्य की योजना है। इसमें फिलिस्तीनी लोगों मुसलमानों व इसाइयों- को द्वितीय दरजे का नागरिक बनाया जाना है, उन्हें अधीनता में रहना है, वे ‘मानवीय पशु’ हैं, उनके बच्चे अंधेरे के बच्चे हैं। ऐसे राज्य में फिलिस्तीनी आबादी को गुलामों की तरह रहना पड़ेगा। ऐसे एक राज्य के लिए अमरीकी साम्राज्यवादी और इजरायली यहूदी नस्लवादी 1948 से ही प्रयास करते रहे हैं। कोई भी फिलिस्तीनी स्वाभिमानी नागरिक इन दोनों तरह के राज्यों को किसी भी हालत में स्वीकार नहीं कर सकता। 
    
तब फिर आखिरकार इस समस्या का क्या न्यायसंगत समाधान हो सकता है?
    
यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर फिलिस्तीन मुक्ति संघर्ष के योद्धाओं सहित दुनिया के न्यायप्रिय और शांतिप्रिय लोग तलाश रहे हैं। 
    
मुक्ति संघर्ष के लोगों की मांग इस दौरान समूची दुनिया में इस नारे के जरिए व्यक्त की गयी : नदी से समुद्र तक, आजाद होगा फिलिस्तीन। यह भी एक राज्य, फिलिस्तीन राज्य की मांग पेश करता है। यह एक राज्य कैसा होगा? इसके बारे में मुक्ति संघर्ष में लगे लोगों की राय अलग-अलग हो सकती है। इसमें इस्लामपंथी ताकतों की चाहत एक इस्लामी राज्य की होगी। यह भी उतनी ही गलत मांग होगी जितनी कि यहूदी नस्लवादी इजरायल की चाहत है। क्योंकि इस इस्लामी राज्य में यहूदी और अन्य धर्मावलंबियों की स्थिति द्वितीय दर्जे के नागरिक की हो जायेगी। चाहे वह औपचारिक तौर पर बराबरी की ही बात क्यों न करे, वास्तविकता में एक धर्माधारित राज्य दूसरे धर्मावलम्बियों के प्रति भेदभाव भरा रुख रखेगा। इसके अतिरिक्त, यह आधुनिक समाज को पीछे की ओर ले जाने जैसा होगा। 
    
इनमें सबसे बेहतर समाधान एक ऐसे राज्य का निर्माण है जो जनतंत्र और धर्मनिरपेक्षता पर आधारित हो, जो यहूदी, इस्लाम, इसाई, नास्तिक सभी लोगों को समानता के आधार पर मान्यता देता हो। लेकिन यह पूंजीवादी दायरे में वर्तमान समय में संभव नहीं प्रतीत होता। क्योंकि आज का पूंजीवाद समाज को कुछ भी सकारात्मक मूल्य देने में असमर्थ है। पूंजीवाद के लिए जनतंत्र और धर्मनिरपेक्षता महज एक ऊपरी आवरण है। इसका जनतंत्र पाखण्ड से भरा है। इसकी धर्मनिरपेक्षता अब दिखावा हो चुकी है। यह व्यापक आबादी को तरह-तरह की पहचानों के आधार पर बांटकर अपने आधार को विस्तृत करने की कोशिश करता है। इसलिए पूंजीवाद ऐसे सकल राज्य की स्थापना करने में अक्षम है। यह इसलिए भी असमर्थ है क्योंकि साम्राज्यवादी ताकतें अपने स्वार्थों को बचाये रखने या उन्हें बढ़ाने के लिए हर तरह की तिकड़मों और साजिशों का सहारा लेंगी। 
    
नदी से समुद्र तक, आजाद होगा फिलिस्तीन के नारे को सही अर्थों में तभी अमल में लाया जा सकता है जब पूंजीवाद-साम्राज्यवाद के विरुद्ध संघर्ष करके उसे पराजित करके आगे बढ़ा जाये। यह कार्य सिर्फ मजदूर वर्ग को अगुवायी में व्यापक मेहनतकश आबादी को गोलबंद और संगठित करके अंजाम दिया जा सकता है। इस कार्य में न सिर्फ फिलिस्तीनी मुसलमान मजदूर-मेहनतकश लोग बल्कि यहूदी व इसाई मजदूर-मेहनतकश लोग समानता के आधार पर एकजुट होकर पूंजीवाद-साम्राज्यवाद के विरुद्ध संघर्ष करें और उसे पराजित करें। 
    
फौरी तौर पर यहूदी नस्लवादी सत्ता का विरोध करने वाली ताकतें अगर इस दिशा में आगे बढ़ती हैं तो सही मायने में एक राज्य के रूप में इस समस्या के समाधान का रास्ता खुलता है। 
    
लेकिन मौजूदा भू-राजनीतिक परिदृश्य में इजरायली यहूदी नस्लवादी सत्ता के विरोध में जो क्षेत्रीय अरब देशों की सत्तायें हैं, उनके वर्ग स्वार्थ ऐसे समाधान की ओर नहीं ले जाते। इसलिए इन क्षेत्रीय अरब देशों की मजदूर-मेहनतकश आबादी को भी अपने-अपने शासकों के विरुद्ध कदम उठाकर ही सही अर्थों में यहूदी नस्लवादी सत्ता के विरुद्ध ही नहीं, पूंजीवाद-साम्राज्यवाद के विरुद्ध संघर्ष को आगे बढ़ाना होगा। 

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