देशभक्त -राम प्रसाद यादव
देश में
देशभक्तों की
बहुत कमी है
कमल छाप छोड़
अब कौन है
जो देश में
देशभक्त है
देश में
देशभक्तों की
बहुत कमी है
कमल छाप छोड़
अब कौन है
जो देश में
देशभक्त है
जला डालो हमारे खेत खलिहान
जला डालो हमारे सपने
छिड़क दो तेजाब हमारे गीतों पर
कत्ल किए गये हमारे लोगों के
लहू के ऊपर चाहे तो फैला दो
बुरादों की मोटी परत
जब जंगी जहाज ओझल हो जाते हैं, फाख्ता उड़ती हैं
उजली, उजली आसमान के गालों को पोंछते हुए
अपने आजाद डैनों से, वापस हासिल करते हुए वैभव और प्रभुसत्ता
जब तक
मेरी एक बालिश्त जमीन भी शेष है
एक जैतून का पेड़ है मेरे पास
एक नीम्बू का पेड़
एक कुआं
और एक कैक्टस का पौधा
मैं मजदूर हूं!
कभी मौका मिला तो
बनाकर मजदूर भेजूंगा
कहूंगा खुद ही बना लो
अपने मन्दिर और मस्जिद
शायद समझ पाओ
दुनिया बनाना आसान है
पृथ्वी सूर्य के दस चक्कर लगा चुकी है।
अगर आप पृथ्वी से पूछेंगे तो वह कहेगी कि
‘यह इतना कम वक्फा था कि जिक्र करने के लायक भी नहीं’
मगर आप मुझसे पूछेंगे तो मैं कहूंगा
हाँ, कोरोना के बाद से दिख नहीं रहा है एक लाचार परिवार
जो हर जाड़े में कम्बल और रजाई के लिए आवाज़ लगाता था
नुक्कड़ में पुराने कपड़े सिलने वाला दर्जी महीनों से नजर नहीं आता
(यह कविता मोमिता आलम ने हिन्दू फासीवादी तत्वों द्वारा बनाये गये बुल्ली बाई व सुल्ली डील्स एप के खिलाफ लिखी थी। इन एपों पर मुस्लिम महिलाओं की तस्वीरें डाल उनकी नीलामी की बातें की गयी थीं)
एक तस्वीर अटक गई है
हटती ही नहीं, चिपक गई है
आंखों के कार्निया और रेटिना पर
लटकी हुई है एक निर्वस्त्र कर दी गई स्त्री!
कौन है वह ...?
अखबर बेचती लड़की
अखबार बेच रही है या खबर बेच रही है
यह मैं नहीं जानती
लेकिन मुझे पता है कि वह
रोटी के लिए अपनी आवाज बेच रही है
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