साहित्य

बीजों के रखवाले -फवाज तुर्की

जला डालो हमारे खेत खलिहान
जला डालो हमारे सपने
छिड़क दो तेजाब हमारे गीतों पर
कत्ल किए गये हमारे लोगों के
लहू के ऊपर चाहे तो फैला दो
बुरादों की मोटी परत

मशक्कत -बच्चा लाल ‘उन्मेष’

मैं मजदूर हूं!
कभी मौका मिला तो
बनाकर मजदूर भेजूंगा
कहूंगा खुद ही बना लो
अपने मन्दिर और मस्जिद
शायद समझ पाओ
दुनिया बनाना आसान है

जबसे मुझे काल कोठरी में फेंका गया है- नाजिम हिकमत

पृथ्वी सूर्य के दस चक्कर लगा चुकी है।
अगर आप पृथ्वी से पूछेंगे तो वह कहेगी कि
‘यह इतना कम वक्फा था कि जिक्र करने के लायक भी नहीं’
मगर आप मुझसे पूछेंगे तो मैं कहूंगा

एक ‘राष्ट्रवादी’ कविता -कल्लोल चक्रवर्ती

हाँ, कोरोना के बाद से दिख नहीं रहा है एक लाचार परिवार
जो हर जाड़े में कम्बल और रजाई के लिए आवाज़ लगाता था
नुक्कड़ में पुराने कपड़े सिलने वाला दर्जी महीनों से नजर नहीं आता

मैं एक मुस्लिम औरत हूं -मोमीता आलम

(यह कविता मोमिता आलम ने हिन्दू फासीवादी तत्वों द्वारा बनाये गये बुल्ली बाई व सुल्ली डील्स एप के खिलाफ लिखी थी। इन एपों पर मुस्लिम महिलाओं की तस्वीरें डाल उनकी नीलामी की बातें की गयी थीं)

आलेख

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