साहित्य

बर्खास्त -मनमोहन

फूल के खिलने का डर है
सो पहले फूल का खिलना बरखास्त,
फिर फूल बरखास्त

हवा के चलने का डर है
सो हवा का चलना बरखास्त, 
फिर हवा बरखास्त

यह किताबों को कंठस्थ करने का समय है -मनीष आज़ाद

यह किताबों को कंठस्थ करने का समय है
क्योंकि किताबों को जलाने का आदेश
कभी भी आ सकता है।
तानाशाह को पता है
भविष्य जलाने के लिए किताबें जलाना जरूरी है..

सच ज़िंदा है -गौहर रज़ा

जब सब ये कहें ख़ामोश रहो

जब सब ये कहें कुछ भी ना कहो

जब सब ये कहें, है वक़्त बुरा

जब सब ये कहें,

ये वक़्त नहीं, बेकार की बातें करने का

नक्शे में निशान -अलिंद उपाध्याय

दुनिया के नक्शे में

चौकोर-गोल-तिकोने निशानों से

दिखाए जाते हैं वन, मरुस्थल, नदियां, डेल्टा, पर्वत, पठार

दिखाया जाता है इन्हीं से

पायी जाती है कहां-कहां

हम लड़ेंगे साथी -पाश

क्रांतिकारी कवि पाश के शहादत दिवस (23 मार्च) के अवसर पर..

हम लड़ेंगे साथी, उदास मौसम के लिए

हम लड़ेंगे साथी, गुलाम इच्छाओं के लिए

आलेख

अमरीकी साम्राज्यवादी यूक्रेन में अपनी पराजय को देखते हुए रूस-यूक्रेन युद्ध का विस्तार करना चाहते हैं। इसमें वे पोलैण्ड, रूमानिया, हंगरी, चेक गणराज्य, स्लोवाकिया और अन्य पूर्वी यूरोपीय देशों के सैनिकों को रूस के विरुद्ध सैन्य अभियानों में बलि का बकरा बनाना चाहते हैं। इन देशों के शासक भी रूसी साम्राज्यवादियों के विरुद्ध नाटो के साथ खड़े हैं।

किसी को इस बात पर अचरज हो सकता है कि देश की वर्तमान सरकार इतने शान के साथ सारी दुनिया को कैसे बता सकती है कि वह देश के अस्सी करोड़ लोगों (करीब साठ प्रतिशत आबादी) को पांच किलो राशन मुफ्त हर महीने दे रही है। सरकार के मंत्री विदेश में जाकर इसे शान से दोहराते हैं। 

आखिरकार संघियों ने संविधान में भी अपने रामराज की प्रेरणा खोज ली। जनवरी माह के अंत में ‘मन की बात’ कार्यक्रम में मोदी ने एक रहस्य का उद्घाटन करते हुए कहा कि मूल संविधान में राम, लक्ष्मण, सीता के चित्र हैं। संविधान निर्माताओं को राम से प्रेरणा मिली है इसीलिए संविधान निर्माताओं ने राम को संविधान में उचित जगह दी है।
    

मई दिवस पूंजीवादी शोषण के विरुद्ध मजदूरों के संघर्षों का प्रतीक दिवस है और 8 घंटे के कार्यदिवस का अधिकार इससे सीधे जुड़ा हुआ है। पहली मई को पूरी दुनिया के मजदूर त्यौहार की

सुनील कानुगोलू का नाम कम ही लोगों ने सुना होगा। कम से कम प्रशांत किशोर के मुकाबले तो जरूर ही कम सुना होगा। पर प्रशांत किशोर की तरह सुनील कानुगोलू भी ‘चुनावी रणनीतिकार’ है