ट्रम्प के दोबारा राष्ट्रपति बनने की राह में अड़चनें

अमेरिकी राष्ट्रपति पद के 2024 के चुनाव के लिए डोनाल्ड ट्रम्प को झटका लगा है। कॉलोराडो और मेन राज्य की सुप्रीम कोर्ट ने डोनाल्ड ट्रम्प के नाम को प्राथमिक मतपत्रों से रोक दिया है। ये मतपत्र राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के लिए रिपब्लिकन पार्टी के भीतर प्रत्याशी तय करने के लिए 5 जनवरी तक तैयार होने हैं व 21 मार्च तक सभी राज्यों में यह मतदान पूरा होना है। यह फैसला कोर्ट ने संविधान में 14 वें संशोधन की धारा 3 के तहत दिया है जिसके अनुसार कोई व्यक्ति संविधान की शपथ लेने के बाद विद्रोह में शामिल होता है तो उसे राष्ट्रपति पद के लिए अयोग्य माना जायेगा। 
    
डोनाल्ड ट्रम्प ने अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की फास्ट ट्रैक में मुकदमा चलाने की अपील की लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उनकी इस अपील को ठुकरा दिया। हालांकि ट्रम्प के लिए संतोष की बात यह है कि कई राज्यों ने प्राथमिक मतपत्र से उनका नाम हटाने की अपील खारिज कर दी है व कई राज्यों में मुकदमे की अभी सुनवाई चल रही है। अब अमेरिका का मुख्य सुप्रीम कोर्ट ही इन सभी मामलों में अंतिम निर्णय लेगा।
    
ज्ञात हो कि जब नवंबर 2020 में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव हुए थे तब डेमोक्रेटिक उम्मीदवार जो बाइडेन को 306 व रिपब्लिक पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प को 232 वोट मिले थे। डोनाल्ड ट्रम्प ने इन नतीज़ों को स्वीकार नहीं किया और चुनाव में धांधली का आरोप लगाते हुए कई राज्यों में अपील की। लेकिन सभी जगह उनकी अपील खारिज कर दी गयीं। 
    
बाद में जब 6 जनवरी 2021 को अमेरिकी संसद का सत्र चल रहा था जिसमें जो बाइडेन के राष्ट्रपति चुने जाने पर अंतिम मुहर लगनी थी तब ट्रम्प समर्थक सांसदों ने हंगामा खड़ा कर दिया। अमेरिकी संसद के बाहर भी ट्रम्प समर्थक भीड़ ने हंगामा मचाना शुरू किया और कैपिटल हिल पर चढ़ाई कर दी। इस घटना में गोलियां भी चलीं। अमेरिकी इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था।
    
सिटीजन्स फार रिस्पांसिबिलिटी एंड इथिक्स व फ्री स्पीच फार पीपल नामक संगठनों ने 30 राज्यों की सुप्रीम कोर्ट में ट्रम्प का नाम प्राथमिक मतपत्र से हटाने के मुकदमे दायर किये हैं। 
    
डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने कार्यकाल के दौरान फ़ासीवादी तत्वों को समाज में बढ़ावा दिया है और ऐसा नहीं है कि डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति चुनाव में खड़े न होने और फिर राष्ट्रपति न बनने से इनकी समाज में उपस्थिति घट जाएगी। समाज में व्याप्त आर्थिक संकट अमेरिकी समाज को आगे ले जाने में असमर्थ है। ऐसे में चाहे डेमोक्रेटिक पार्टी हो या रिपब्लिकन पार्टी सभी दक्षिणपंथ की ओर और अधिक ढुलकेंगे। ट्रम्प अभी भी अपनी पार्टी रिपब्लिकन पार्टी में राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी की रेस में आगे चल रहे हैं। यह दिखलाता है कि उनके 4 साल के मनमर्जी से चले शासन के बावजूद उनकी लोकप्रियता कम नहीं हुई है।
    
अमेरिकी चुनाव में पहले दोनों पार्टियों के भीतर राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी बनने के इच्छुक व्यक्तियों के बीच प्रत्याशी बनने का चुनाव होता है। इसके जरिये दोनों पार्टियों के आधिकारिक प्रत्याशी चुने जाते हैं। बाद में इन आधिकारिक प्रत्याशियों के बीच जनता के मत द्वारा चुनाव होता है। 
    
ट्रम्प की राह में दोबारा राष्ट्रपति बनने में मुश्किलें खड़ी होनी शुरू हो गयी हैं। हालांकि उनके जनसमर्थन को देखते हुए इसी बात की अधिक संभावना है कि मतपत्रों में उनका नाम शामिल कर उन्हें चुनाव लड़ने की छूट मिल जाये। 
    
ट्रम्प के दोबारा राष्ट्रपति बनने से अमेरिका के भीतर आम जनता के जनवादी हकों पर तेजी से कैंची चलाई जायेगी। अप्रवासियों-शरणार्थियों-अश्वेतों के प्रति नफरत-उत्पीड़न बढ़ जायेगा। जहां तक विदेश नीति का सम्बन्ध है तो ट्रम्प अमेरिकी साम्राज्यवाद के गिरते वर्चस्व को किसी भी हद तक जाकर बचाने की कोशिश करेंगे चाहे इसके लिए उन्हें कई देशों पर युद्ध थोप उन्हें तबाह ही क्यों न करना पड़े। वैसे डेमोक्रेटिक पार्टी भी यही सब करती रही है पर उसे बारम्बार लोकतंत्र, मानवाधिकारों की रक्षा की बातें करते हुए यह सब करना पड़ता है। ट्रम्प को ऐसे किसी दिखावे की जरूरत नहीं होगी।

आलेख

/ameriki-dhamakiyon-ke-sath-iran-amerika-varta

अमरीकी सरगना ट्रम्प लगातार ईरान को धमकी दे रहे हैं। ट्रम्प इस बात पर जोर दे रहे हैं कि ईरान को किसी भी कीमत पर परमाणु बम नहीं बनाने देंगे। ईरान की हुकूमत का कहना है कि वह

/modi-sarakar-waqf-aur-waqf-adhiniyam

संघ और भाजपाइयों का यह दुष्प्रचार भी है कि अतीत में सरकार ने (आजादी के बाद) हिंदू मंदिरों को नियंत्रित किया; कि सरकार ने मंदिरों को नियंत्रित करने के लिए बोर्ड या ट्रस्ट बनाए और उसकी कमाई को हड़प लिया। जबकि अन्य धर्मों विशेषकर मुसलमानों के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। मुसलमानों को छूट दी गई। इसलिए अब हिंदू राष्ट्रवादी सरकार एक देश में दो कानून नहीं की तर्ज पर मुसलमानों को भी इस दायरे में लाकर समानता स्थापित कर रही है।

/china-banam-india-capitalist-dovelopment

आजादी के दौरान कांग्रेस पार्टी ने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह उग्र भूमि सुधार करेगी और जमीन किसानों को बांटेगी। आजादी से पहले ज्यादातर जमीनें राजे-रजवाड़ों और जमींदारों के पास थीं। खेती के तेज विकास के लिये इनको जमीन जोतने वाले किसानों में बांटना जरूरी था। साथ ही इनका उन भूमिहीनों के बीच बंटवारा जरूरी था जो ज्यादातर दलित और अति पिछड़ी जातियों से आते थे। यानी जमीन का बंटवारा न केवल उग्र आर्थिक सुधार करता बल्कि उग्र सामाजिक परिवर्तन की राह भी खोलता। 

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं।