गिरती मजदूरी बढ़ता मुनाफा

ओ ई सी डी द्वारा हाल में रोजगार संदर्भी रिपोर्ट जारी की गयी। इस रिपोर्ट ने बढ़ती महंगाई के पीछे बढ़ती मजदूरी का तर्क देने वाले पूंजीवादी अर्थशास्त्रियों की बोलती बंद कर दी है। रिपोर्ट बताती है कि ओ ई सी डी देशों में वास्तविक मजदूरी बीते एक वर्ष में औसतन 3.8 प्रतिशत गिर गयी है। 

ओ ई सी डी विकसित देशों का समूह है।  रिपोर्ट ने पाया कि यद्यपि सभी देशों में मजदूरी बढ़ी है पर महंगाई से तुलना करने पर पाया जाता है कि अधिकतर देशों में वास्तविक मजदूरी गिर गई है। ओ ई सी डी के सभी देशों में बीते एक वर्ष में वास्तविक मजदूरी औसतन 3.8 प्रतिशत गिर गई है। यानी बढ़ती महंगाई के पीछे बढ़ती मजदूरी कहीं से भी कारण नहीं है। 
    
वास्तविक मजदूरी में सर्वाधिक गिरावट स्कैंडेनिवाई देशों में व पूर्वी यूरोप के देशों में हुई है। इन देशों में रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते ऊर्जा की कीमतें काफी बढ़़ गयी हैं। 
    
रिपोर्ट यह भी बताती है कि बढ़ती महंगाई के पीछे दरअसल मुख्य कारण पूंजीपतियों का बढ़ता मुनाफा है। रिपोर्ट बताती है कि ओ ई सी डी देशों में प्रति तैयार इकाई औसत मुनाफा 2019 के अंत से 2023 की पहली तिमाही के बीच 22 प्रतिशत बढ़ गया है जबकि मजदूरी प्रति इकाई मात्र 16 प्रतिशत बढ़ी है। स्वीडन में इसी कालखण्ड में प्रति तैयार इकाई मुनाफा 27 प्रतिशत व मजदूरी 9 प्रतिशत बढ़ी है। जर्मनी में प्रति तैयार इकाई मुनाफा 24 प्रतिशत व मजदूरी 10 प्रतिशत बढ़ी है। आस्ट्रिया के लिए ये दरें क्रमशः 23 व 10 प्रतिशत हैं। 
    
रिपोर्ट के अनुसार प्रति तैयार इकाई मुनाफा सर्वाधिक हंगरी में 60 प्रतिशत से ऊपर व पूर्वी यूरोप में 30 प्रतिशत के ऊपर बढ़ा है। अमेरिका में मुनाफे की वृद्धि व मजदूरी में वृद्धि दोनों लगभग 14 प्रतिशत हैं। केवल पुर्तगाल अकेला ऐसा देश है जहां प्रति इकाई मुनाफा 9 प्रतिशत व मजदूरी 18 प्रतिशत बढ़ी है। 
    
इस तरह रिपोर्ट बढ़ती महंगाई के पीछे बढ़ती मजदूरी के बजाय पूंजीपतियों के बढ़ते मनमाने मुनाफे की हकीकत को सामने लाती है। पर रिपोर्ट महंगाई गिराने के लिए मुनाफा गिराने की सलाह देने से बचती है। रिपोर्ट कहती है कि वास्तविक मुनाफा चूंकि कठोर मौद्रिक नीति व गिरती क्रय शक्ति से प्रभावित होता है। इसलिए बढ़ता मुनाफा इस गिरावट की भरपाई का एक तरीका हो सकता है। साथ ही रिपोर्ट मजदूरी बढ़ा मुनाफे का हिस्सा घटाने की बात यह कहकर खारिज करती है कि वेतन वृद्धि से मालिक रोजगार घटाने की ओर प्रवृत्त होंगे जो अपनी बारी में वेतन में गिरावट व बेरोजगारी पैदा करेंगे। 
    
इस तरह ओ ई सी डी जो कि साम्राज्यवादियों की संस्था है गिरती मजदूरी की सच्चाई उजागर करने के बाद भी मजदूरी बढ़ाने की सिफारिश नहीं करती। 
    
मजदूरी में गिरावट की ओर फिर से लौटें तो हंगरी में बीते एक वर्ष (2022 की पहली तिमाही से 2023 की पहली तिमाही के बीच) में मजदूरी औसतन 15.6 प्रतिशत गिरी है। लाटविया में 13.4 प्रतिशत, चेक गणराज्य में 10.4 प्रतिशत, स्वीडन में 8.4 प्रतिशत, फिनलैण्ड में 7.8 प्रतिशत, स्लोवाक रिपब्लिक में 7.6 प्रतिशत, इटली में 7.3 प्रतिशत, पोलैण्ड में 7 प्रतिशत, पुर्तगाल में 3.5 प्रतिशत, जर्मनी में 3.3 प्रतिशत, जापान में 3.1 प्रतिशत, यूके में 2.9 प्रतिशत, फ्रांस में 1.8 प्रतिशत, अमेरिका में 0.7 प्रतिशत, मजदूरी में गिरावट दर्ज हुई है। केवल बेल्जियम में 2.9 प्रतिशत, कोस्टारिका में 1.7 प्रतिशत, इजरायल में 0.6 प्रतिशत, नीदरलैण्ड में 0.4 प्रतिशत मजदूरी में वृद्धि हुई है। 
    
वास्तविक मजदूरी में गिरावट के चलते ही यूरोप से लेकर अमेरिका तक में ट्रेड यूनियन संघर्षों में बढ़ोत्तरी देखने को मिल रही है। जगह-जगह मजदूर वेतन बढ़ाये जाने की मांग कर रहे हैं पर लगभग सभी जगह महंगाई वृद्धि की तुलना में वे कम ही वेतन वृद्धि हासिल कर पा रहे हैं और इस तरह पहले से बुरा जीवन स्तर जीने को मजबूर हो रहे हैं। 
    
आज के एकाधिकारी पूंजीवाद में एकाधिकारी कम्पनियां परस्पर समझौते के जरिये कीमतें बढ़ा कर बेतहाशा मुनाफ पीट रही हैं और पूंजीवादी अर्थशास्त्री उनके बढ़ते मुनाफे से पैदा हो रही महंगाई के लिए मामूली सी वेतन वृद्धि को कोसने में जुटे हैं। छुट्टे पूंजीवाद के आज के दौर में जब पूंजी को श्रम पर हमले की खुली छूट हासिल है, तब मजदूरी में गिरावट व मुनाफे में बढ़़ोत्तरी आम परिघटना बन चुकी है। मजदूर वर्ग अपनी आर्थिक हैसियत में गिरती को केवल क्रांतिकारी एकजुटता व संघर्ष के जरिये ही रोक सकता है। 

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