इलेक्टोरल बाण्ड - चुनाव आयुक्त और न्यायपालिका

भारत की शीर्ष न्यायपालिका के करतब उस पर न्याय की आस लगाये लोगों की समझ से परे होते जा रहे हैं। तमाम पूंजीवादी उदारवादी-वाम उदारवादी सुप्रीम कोर्ट से आस लगाते रहे हैं कि वह संघ-भाजपा की फासीवादी करतूतों पर नकेल सकेगी। खासकर चंद्रचूड़ सिंह के मुख्य न्यायाधीश बनने के बाद से ये उम्मीदें काफी बढ़ गयीं थीं। पर शीर्ष अदालत एक दिन अपने सरकार परस्त निर्णय से उनकी आस तोड़ती है तो दूसरे दिन सरकार के खिलाफ कोई फैसला दे उनकी आस फिर से जगा देती है। सुप्रीम कोर्ट के करतब उनकी समझ से परे होते जाते हैं। वे समझ नहीं पाते कि शीर्ष अदालत को धिक्कारें या उस से आस लगायें। 
    
अभी धारा-370 पर सरकार समर्थित निर्णय आने से लोग शीर्ष अदालत से खफा ही थे कि इलेक्टोरल बाण्ड की सरकारी नीति को असंवैधानिक घोषित कर और फिर स्टेट बैंक को कड़ाई से इनकी सूची उजागर करने का निर्देश दे सुप्रीम कोर्ट फिर ऐसे लोगों की तारीफें बटोरने लगा। अब नये चुनाव आयुक्त नियुक्त करने की कमेटी से मुख्य न्यायाधीश को हटाने के सरकारी कदम के खिलाफ याचिका पर सुनवाई को तैयार हो शीर्ष अदालत ने और वाहवाही लूट ली है। 
    
इस सबके बीच मोदी सरकार इन सबसे बेपरवाह अपने द्वारा तय कमेटी के जरिये दो नये चुनाव आयुक्त नियुक्त कर उन्हें राष्ट्रपति से अधिसूचित भी करवा चुकी है। 
    
इलेक्टोरल बाण्ड चुनाव आयोग द्वारा सार्वजनिक कर दिये गये हैं इससे जनता के सामने यही तथ्य उजागर हुआ कि कब किस पूंजीपति ने कितना चन्दा विभिन्न राजनैतिक दलों को दिया। यह तथ्य पहले ही बताया जाता रहा है कि लगभग आघा चंदा इलेक्टोरल बाण्ड के जरिये भाजपा को जाता रहा है। हो सकता है कि खोजी पत्रकार चंदा देने वाले पूंजीपति व सरकार के उसके हित में किये कामों के सम्बन्ध को सामने ला दें। यह सम्बन्ध वैसे भी मोदी सरकार को अम्बानी-अडाणी की सरकार के तमगे के रूप में उजागर होता रहा है। ऐसे में इलेक्टोरल बाण्ड की लिस्ट सामने आने से केवल यही असलियत ही उजागर होगी कि मोदी सरकार को बड़े पूंजीपतियों का भारी समर्थन प्राप्त है। हालांकि ये पूंजीपति ही अन्य दलों को भी पाल पोष रहे हैं। जाहिर है इन तथ्यों से संघ-भाजपा थोड़े असहज तो होंगे पर इस असहजता की काट ये आसानी से कर लेंगे। 
    
एक बार चुनाव आयुक्त नियुक्त हो जाने के बाद इसकी कम संभावना है कि सुप्रीम कोर्ट कमेटी का संघटन बदलने पर भी पुरानी नियुक्ति रद्द कर दे। इस तरह आगामी चुनाव हेतु चुनाव आयोग मोदी सरकार के पसंदीदा लोगों का बना रहेगा, इसकी ही अधिक संभावना है। वैसे शीर्ष अदालत तत्काल सुनवाई कर नियुक्ति से पूर्व निर्णय दे सकती थी पर उसने नियुक्ति के बाद सुनवाई का निर्णय कर सरकार की राह ही आसान कर दी। 
    
शीर्ष अदालत की कदम ताल पर गौर करें तो यही संकेत मिलता है कि यह कोर मुद्दों पर संघ-भाजपा के साथ खड़ी है और कुछ कम महत्वपूर्ण मसलों पर सरकार के उलट निर्णय दे अपनी साख भी बचा रही है। इस तरह वह प्रकारान्तर से शीर्ष अदालत में आस्था कायम रख कर संघ-भाजपा के फासीवादी अभियान की महत्वपूर्ण सहयोगी बनी हुई है। 
    
वैसे भी न्यायपालिका पूंजीवादी मशीनरी का ही एक अंग है। जब पूंजीवादी व्यवस्था का नियंता भारत का एकाधिकारी पूंजीपति वर्ग ही संघ-भाजपा से गठजोड़ कर चुका हो तब उसी व्यवस्था के एक अंग न्यायपालिका की यह जुर्रत नहीं हो सकती कि वह संघ-भाजपा के कदमों में रोड़ा अटकाये। 
    
चंद्रचूड़ सिंह के नेतृत्व में न्यायपालिका बेहद सूक्ष्मता से संघ-भाजपा के कारनामों में मददगार बन रही है। वह खुद पर संविधान सम्मत होने का भरोसा बनाये रख सरकार के संविधान विरोधी निर्णयों के वक्त लोगों के मध्य शीर्ष अदालत से न्याय मिलने की उम्मीद बंधाये रखती है और फिर सरकार जब उक्त कदम उठा सालों बिता देती है, लोगों का आक्रोश कमजोर पड़ जाता है तो चुपके से शीर्ष अदालत सरकार के कदम को जायज ठहरा देती है। न्याय की आस लगाये लोग हैरान-परेशान होते हैं। एकाध छोटे मामलों में यह सरकार के विरोध में निर्णय दे फिर अपने पर भरोसा कायम कर लेती है ताकि फिर किसी बड़े मुद्दे पर सरकार को जायज ठहरा सके। यह सिलसिला चलता रहता है। राम मंदिर, धारा-370 के मसले देखे जा चुके हैं और भविष्य में सी ए ए से लेकर समान नागरिक संहिता के मसले भी देखे जायेंगे। 
    
वैसे भी इतिहास यही दिखाता है कि फासीवादी ताकतों को अगर बड़ी पूंजी का समर्थन मिल चुका हो तो कोई न्यायालय उनकी राह नहीं रोक सका है। हिटलर-मुसोलिनी की राह न्यायालयों ने नहीं रोकी तो संघ-भाजपा की राह भी न्यायालय नहीं रोकेंगे। इनकी राह क्रांतिकारी मजदूर-मेहनतकश अवाम ने अतीत में भी रोकी थी और भारत में भी रोकेंगे।  

* इलेक्टोरल बाण्ड से चंदा मिला
भाजपा- 6061 करोड़, तृणमूल कांग्रेस - 1610 करोड़, कांग्रेस - 1422 करोड़
* पाया गया कि कम्पनियों ने ईडी, सीबीआई, आईटी से बचने को भाजपा को चंदा दिया 
(30 कम्पनियां-335 करोड़)। कम्पनियों ने सरकारी ठेके पाने को चंदा दिया (मेघना इंजीनियरिंग)। सरकार को कुछ बेचने को चंदा दिया (सीरम इंस्टीट्यूट आफ इण्डिया- 52 करोड़)।
* पुलवामा की घटना के एक हफ्ते बाद भाजपा ने पाक कम्पनी हब पावर कम्पनी से भारी चंदा लिया। 

आलेख

मई दिवस पूंजीवादी शोषण के विरुद्ध मजदूरों के संघर्षों का प्रतीक दिवस है और 8 घंटे के कार्यदिवस का अधिकार इससे सीधे जुड़ा हुआ है। पहली मई को पूरी दुनिया के मजदूर त्यौहार की

सुनील कानुगोलू का नाम कम ही लोगों ने सुना होगा। कम से कम प्रशांत किशोर के मुकाबले तो जरूर ही कम सुना होगा। पर प्रशांत किशोर की तरह सुनील कानुगोलू भी ‘चुनावी रणनीतिकार’ है

रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले के दो वर्ष से ज्यादा का समय बीत गया है। यह युद्ध लम्बा खिंचता जा रहा है। इस युद्ध के साथ ही दुनिया में और भी युद्ध क्षेत्र बनते जा रहे हैं। इजरायली यहूदी नस्लवादी सत्ता द्वारा गाजापट्टी में फिलिस्तीनियों का नरसंहार जारी है। इस नरसंहार के विरुद्ध फिलिस्तीनियों का प्रतिरोध युद्ध भी तेज से तेजतर होता जा रहा है।

अल सल्वाडोर लातिन अमेरिका का एक छोटा सा देश है। इसके राष्ट्रपति हैं नाइब बुकेली। इनकी खासियत यह है कि ये स्वयं को दुनिया का ‘सबसे अच्छा तानाशाह’ (कूलेस्ट डिक्टेटर) कहते ह

इलेक्टोरल बाण्ड के आंकड़ों से जैसे-जैसे पर्दा हटता जा रहा है वैसे-वैसे पूंजीपति वर्ग और उसकी पाटियों के परस्पर संबंधों का स्वरूप उजागर होता जा रहा है। इसी के साथ विषय के प