किसान आंदोलन : दिल्ली कूच के दमन पर उतारू भाजपा सरकारें

किसान आंदोलन दो वर्ष बाद फिर से नये सिरे से खड़ा हो रहा है। 13 फरवरी को संयुक्त किसान मोर्चा (अराजनीतिक) व किसान मजदूर मोर्चा ने दिल्ली कूच का आह्वान किया था। हजारों किसानों के जत्थे इस आह्वान पर पंजाब से दिल्ली की ओर कूच कर गये। इन किसानों की राह में कीलें-बैरीकेड लगाते हुए हरियाणा की भाजपा सरकार ने इन्हें पंजाब-हरियाणा बार्डर पर रोक लिया। किसानों को रोकने के लिए रबड़ की गोलियां, आंसू गैस के गोलों, द्रोण कैमरों का इस्तेमाल किया गया। जगह-जगह पुलिस बल और किसानों का टकराव हुआ। ढेरों किसान गिरफ्तार कर लिए गये। 
    
किसानों के जत्थे पंजाब के अलावा म.प्र, राजस्थान, कर्नाटक से भी दिल्ली की ओर बढ़े जिन्हें भाजपा सरकारों ने जगह-जगह रोक लिया। तमिलनाडु व बंगाल के किसानों ने अपने यहां प्रदर्शन कर किसान आंदोलन से एकजुटता जाहिर की। फिलहाल किसान दिल्ली की ओर बढ़ने के तेवरों के साथ डटे हुए हैं तो भाजपा सरकारें किसी भी कीमत पर उन्हें आगे बढ़ने से रोकने पर तुली हैं। 
    
12 फरवरी की रात 5 घण्टे चली वार्ता में सरकार ने किसानों की मुख्य मांग न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी व कर्ज माफी को मानने से इंकार कर दिया। इसके बाद किसान नेताओं ने दिल्ली कूच का एलान कर दिया। 
    
इधर 16 फरवरी को पिछले किसान आंदोलन का नेतृत्वकारी मोर्चा संयुक्त किसान मोर्चा और केन्द्रीय ट्रेड यूनियन फेडरेशनों ने आम हड़ताल व ग्रामीण भारत बंद का आह्वान किया है। जगह-जगह इस बंद की तैयारी की जा रही है। 
    
किसान आंदोलन यद्यपि पहले की तरह संगठित नहीं है पर 13 फरवरी के दिल्ली कूच के मौके पर सभी नेताओं ने जिस तरह इसका समर्थन किया और दमनकारी कदमों की निंदा की, उससे स्पष्ट है कि किसान संगठन फिर से एक होकर मोदी सरकार के होश फाख्ता कर सकते हैं। 
    
किसान मोदी सरकार की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर वादा खिलाफी, कर्ज माफी पर चुप्पी, बिजली बिल लागू करने पर उतारू सरकार से नाराज हैं। मोदी सरकार ने 2 वर्ष पूर्व किये वायदों में किसी को पूरा नहीं किया। किसान अब की बार अपनी सारी मांगें पूरी कराने के जज्बे से मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं।
    
भारतीय कृषि को बड़े पूंजीपतियों अम्बानी-अडाणी के हवाले करने की मोदी सरकार की योजनाओं को 2 वर्ष पूर्व किसान आंदोलन ने तब भारी धक्का लगा दिया था जब सरकार को किसान विरोधी 3 काले कानून वापस लेने के लिए मजबूर कर दिया गया था। पर पूंजीपतियों के हित में कार्यरत मोदी सरकार चोर दरवाजे से इन कानूनों के प्रावधानों को लागू करने में जुट गयी। उसने किसानों से किये सारे वायदे रद््दी की टोकरी में डाल दिये।  
    
ऐसे में भयंकर तबाही-बर्बादी झेल रहे किसान एक बार फिर बड़ी पूंजी की मार से खेती-किसानी को बचाने के लिए कमर कस रहे हैं। किसानों की यह लड़ाई जहां छोटी-मझोली खेती का अस्तित्व बचाने की लड़ाई है वहीं धनी किसानों की गिरती आमदनी बचाने की लड़ाई है। उनका सामना देश की सत्ता के मालिक बड़े पूंजीपतियों और उनकी चाकर मोदी सरकार व दमन की मशीनरी से है। किसान अपने जुझारू तेवरों से एक बार मोदी सरकार को झुका चुके हैं, इस बार भी वे बुलंद हौंसले लिए हैं। 
    
इस बीच पूंजीवादी मीडिया किसानों को ‘उपद्रवी’, ‘आफत’ के बतौर प्रस्तुत कर मोदी सरकार की चाकरी में जुटा है। वह दिल्ली की जनता को जाम का भय दिखा किसानों के खिलाफ खड़ा करने में जुटा है। मीडिया भले ही किसानां का दर्द न समझे दिल्ली की मेहनतकश जनता किसानों का दर्द समझती है और पिछली बार की तरह वह किसानों का स्वागत ही करेगी। 

आलेख

अमरीकी साम्राज्यवादी यूक्रेन में अपनी पराजय को देखते हुए रूस-यूक्रेन युद्ध का विस्तार करना चाहते हैं। इसमें वे पोलैण्ड, रूमानिया, हंगरी, चेक गणराज्य, स्लोवाकिया और अन्य पूर्वी यूरोपीय देशों के सैनिकों को रूस के विरुद्ध सैन्य अभियानों में बलि का बकरा बनाना चाहते हैं। इन देशों के शासक भी रूसी साम्राज्यवादियों के विरुद्ध नाटो के साथ खड़े हैं।

किसी को इस बात पर अचरज हो सकता है कि देश की वर्तमान सरकार इतने शान के साथ सारी दुनिया को कैसे बता सकती है कि वह देश के अस्सी करोड़ लोगों (करीब साठ प्रतिशत आबादी) को पांच किलो राशन मुफ्त हर महीने दे रही है। सरकार के मंत्री विदेश में जाकर इसे शान से दोहराते हैं। 

आखिरकार संघियों ने संविधान में भी अपने रामराज की प्रेरणा खोज ली। जनवरी माह के अंत में ‘मन की बात’ कार्यक्रम में मोदी ने एक रहस्य का उद्घाटन करते हुए कहा कि मूल संविधान में राम, लक्ष्मण, सीता के चित्र हैं। संविधान निर्माताओं को राम से प्रेरणा मिली है इसीलिए संविधान निर्माताओं ने राम को संविधान में उचित जगह दी है।
    

मई दिवस पूंजीवादी शोषण के विरुद्ध मजदूरों के संघर्षों का प्रतीक दिवस है और 8 घंटे के कार्यदिवस का अधिकार इससे सीधे जुड़ा हुआ है। पहली मई को पूरी दुनिया के मजदूर त्यौहार की

सुनील कानुगोलू का नाम कम ही लोगों ने सुना होगा। कम से कम प्रशांत किशोर के मुकाबले तो जरूर ही कम सुना होगा। पर प्रशांत किशोर की तरह सुनील कानुगोलू भी ‘चुनावी रणनीतिकार’ है