मृत्यु नहीं हत्या, दोषी कौन

अंतिम चरण के चुनाव में अकेले उत्तर प्रदेश में 33 चुनाव कर्मचारी और एक मतदाता भीषण गर्मी की वजह से मारे गये। जबकि पूरे देश में चुनाव ड्यूटी के दौरान मारे जाने वालों की संख्या 58 है। उत्तर प्रदेश के अलावा अन्य मौतें बिहार (14), उड़ीसा (9) व मध्य प्रदेश (2) में हुयी। मरने वाले कर्मचारियों में होमगार्ड, सफाई कर्मचारी आदि थे। 
    
ये सभी कर्मचारी बेहद कम वेतन पाते हैं और इनके काम के घण्टे काफी अधिक होते हैं। चुनाव ड््यूटी के दौरान पड़ रही भीषण गर्मी के ये आसानी से शिकार बन गये। 
    
इन सभी की जान बचायी जा सकती थी यदि भीषण गर्मी के समय चुनाव न कराये जाते। मोदी को चुनावी लाभ मिल सके इसके लिए मोदी की चाहत को पूरा करने के लिए सात लम्बे चरणों में चुनाव कराये गये। साफ तौर पर यदि सभी चुनाव अप्रैल माह में करा लिये जाते तो गर्मी के कारण इन कर्मचारियों की मौत नहीं हुयी होती। 
    
गौर से देखा जाये तो ये साधारण मृत्यु नहीं हैं बल्कि एक तरह से क्रूर ढंग से की गई अप्रत्यक्ष हत्यायें हैं। ये प्रायोजित हत्यायें हैं। 
    
चुनाव आयोग बाद में कहता है कि भीषण गर्मी में चुनाव नहीं कराने चाहिए थे। जिन परिवारों के सदस्य मारे जा चुके हैं उनको चुनाव आयोग का पांच लाख मुआवजा देना जले में नमक छिड़कना सरीखा है। 

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