
आधुनिक जमाने में यह आम परिघटना रही है कि युद्धों से यदि आम जनता की तबाही हुई है तो इससे पूंजीपतियों ने खूब मुनाफा भी कमाया है। यह सभी देशों में होता रहा है। भारत में देशी पूंजीपति वर्ग का सबसे तेजी से विकास पहले और दूसरे विश्व युद्ध के दौरान हुआ जिनसे भारतीय जनता ने भारी कष्ट झेला। 1943 का बंगाल का अकाल इनमें से एक था।
इस परिघटना का एक छोटा सा नजारा हालिया भारत-पाकिस्तान झड़प के दौरान देखने को मिला। हुआ यह कि 7 मई की रात की झड़प के बाद ही खबर आई कि पाकिस्तानी वायु सेना ने भारत के कुछ विमानों को मार गिराया है। पाकिस्तान सरकार ने अधिकारिक तौर पर पांच भारतीय विमानों को मार गिराने का दावा किया। भारत सरकार ने इस दावे का अधिकारिक खंडन नहीं किया। बस इतना कहा कि इस मामले में उचित समय और अवसर पर बताया जायेगा। भारतीय रक्षा विशेषज्ञ परवीन साहनी ने देश के अंदरूनी स्रोतों के आधार पर चार विमानों के गिरने की बात कही- तीन कश्मीर में और एक भटिण्डा में। अंतर्राष्ट्रीय समाचार माध्यमों से तीन या कम से कम एक राफेल विमान गिरने की बात की गयी।
पाकिस्तान सरकार ने अपने दावे में तीन राफेल, एम मिग-29 तथा एक सुखोई विमान मार गिराने की बात की। कम से कम एक राफेल विमान गिरने की अंतर्राष्ट्रीय खबर का एक अजीब असर हुआ। इस खबर के प्रचारित होते ही अंतर्राष्ट्रीय शेयर बाजार में राफेल बनाने वाली फ्रांसीसी कंपनी के शेयर गिरने लगे जबकि इसे मार गिराने वाले चीनी विमान J-10 बनाने वाली चीनी कंपनी के शेयर उठने लगे।
असल में दुनिया भर के हथियार बाजार तथा सरकारों (हथियार बनाने व खरीदने वाली दोनों सरकारों) की नजर इस बात पर थी कि भारत-पाकिस्तान की इस झड़प में कौन से विमान कैसा प्रदर्शन करते हैं। खासकर चीनी युद्धक विमानों पर सबकी नजर थी। पिछले सालों में पाकिस्तान ने अपने ज्यादातर हथियार चीन से खरीदे थे जिनमें J-10 युद्धक विमान तथा इन पर लगने वाली PL-15 मिसाइलें भी थीं। इन हथियारों का वास्तविक युद्ध में परीक्षण पहली बार हो रहा था और हर कोई जानता चाहता था कि ये कैसा प्रदर्शन करते हैं। और कम से कम अंतर्राष्ट्रीय समाचार जगत और अंतर्राष्ट्रीय शेयर बाजार की नजर में चीनी हथियार उम्दा साबित हुए।
करीब पचास साल पहले चीन-वियतनाम युद्ध के बाद से चीन ने कोई युद्ध नहीं लड़ा है। इस बीच पिछले कुछ सालों में चीन ने अति-आधुनिक तकनीक वाले भांति-भांति के युद्ध सामानों का विकास और निर्माण किया है। कहा जा रहा है कि कुछ मामलों में चीन अमेरिका व रूस से भी आगे निकल गया है। लेकिन हथियार निर्यात के मामले में चीन अभी भी पांचवें स्थान पर है। ऐसे में स्वाभाविक तौर पर हथियार बेचने और खरीदने वाली सभी सरकारें जानना चाहेंगी कि चीनी हथियार मैदाने-जंग में कैसे साबित हो रहे हैं। उम्दा साबित होने पर हथियार बाजार में उनकी मांग बढ़ जायेगी। इसका सीधा असर अमेरिका, रूस व फ्रांस पर पड़ेगा जो अभी सबसे बड़े हथियार विक्रेता हैं।
भारत-पाकिस्तान झड़प ने दिखाया कि चीनी J-10 फ्रांसीसी राफेल से बेहतर हैं या कम से कम बराबर हैं। वे सस्ते भी हैं। ऐसे में J-10 बनाने वाली चीनी कंपनी के शेयरों का चढ़ना तथा राफेल बनाने वाली फ्रांसीसी कंपनी के शेयरों का गिरना स्वाभाविक था।
अंधराष्ट्रवाद के उन्माद में धकेल दी गयी मजदूर-मेहनतकश जनता ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि दुनिया का हथियार बाजार और दुनिया भर की सरकारें भारत-पाक झड़प को इस नजर से भी देख रही हैं। युद्ध के मामले में आम जनता तथा पूंजीपति वर्ग व उसकी सरकारों की नजर में यही फर्क है। यही पहले का भयंकर नुकसान और दूसरे का भरपूर फायदा कराती है।