अमरीकी व्हाट्सप्प पर सवार हिन्दू राष्ट्रवाद

हाल ही में वाशिंगटन डी सी से प्रकाशित अमरीकी दैनिक द वाशिंगटन पोस्ट में लेखों की एक श्रृंखला छपी है, जो भारत की भाजपा सरकार और उसकी समर्थक हिन्दू राष्ट्रवादी शक्तियों द्वारा अपनी हिन्दू फासीवादी विचारधारा के आक्रामक प्रचार-प्रसार के लिए सोशल मीडिया मंचों के व्यापक और निर्बाध उपयोग पर प्रकाश डालती है। जहां एक तरफ अमरीका स्थित ये सोशल मीडिया कंपनियां भारत में एक विशाल बाजार देखती हैं और इसके चलते भारत सरकार की नजरें इनायत बरकरार रखने के लिए गंभीर समझौते करती हैं, वहीं हिन्दू फासीवादियों द्वारा चुनावों की तैयारी की पृष्ठभूमि में झूठा और भड़काऊ प्रचार किया जाता है। भाजपा के एक पार्टी के रूप में मुस्लिम विरोध और हिन्दू राष्ट्र के एजेंडे में आने वाली संवैधानिक बाधाओं को एक स्याह समानान्तर व्यवस्था दूर करती है, जिसमें भाजपा और सरकार पिछले दरवाजे से उन ‘थर्ड पार्टियों’ को आर्थिक मदद, राजनीतिक प्रश्रय और कानूनी सुरक्षा देते हैं जो न सिर्फ सोशल मीडिया पर छिछली से लेकर घृणित और अमानवीय पोस्ट्स डालते हैं बल्कि जिनकी तामीर अधिकतर ही नौजवानों से सम्पन्न ये ‘थर्ड पार्टीज’ जमीन पर अल्पसंख्यकों पर हिंसक, संगठित हमलों द्वारा करते हैं। यहां प्रस्तुत है उक्त शृंखला के लेखों के कुछ अंश। अनुवाद हमारा है। (बाक्स में दी गयी सामग्री अनुवाद नहीं है, पर इनमें से एक लेख पर आधारित है)
    
‘‘प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा और उससे सम्बद्ध हिन्दू राष्ट्रवादी समूह राजनीतिक उद्देश्यों के लिए सोशल मीडिया के इस्तेमाल के वैश्विक कर्णधारों में हैं। वे इससे अपनी विचारधारा को आगे बढ़ा रहे हैं और विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र पर अपनी पकड़ मजबूत कर रहे हैं। प्रायः झूठी और धार्मिक कट्टरता से भरपूर उत्तेजक सामग्री को फैलाने में इन्होंने निपुणता हासिल कर ली है और भारतीय सीमा से परे इससे इन्होंने ईर्ष्या और निंदा दोनों कमाई हैं। 
    
18 करोड़ सदस्यों वाली पार्टी भाजपा की सफलता के केंद्र में है अमरीकी सोशल मीडिया मंचों के ऊपर निर्मित एक विशालकाय मैसेजिंग तंत्र। यह मोदी समर्थक दक्षिणपंथी शक्तियों के प्रोद्यौगिकी के हथियार को विविध तरीकों से इस्तेमाल करने और विरोधियों द्वारा इसके इस्तेमाल को सीमित करने के व्यापक प्रयासों का एक हिस्सा है, जो उस हिन्दू राष्ट्रवादी एजेंडे की तरफ लक्षित है जो धार्मिक अल्पसंख्यकों को हाशिये पर डालना और आलोचना को दबा देना चाहता है। 
    
जब हालिया वर्षों में भारत में हेट स्पीच और झूठी सूचनाएं बढ़ी हैं,  तब सूचना प्रोद्यौगिकी की भीमकाय अमरीकी ताकतों ने कभी तो इन प्रज्वलक सामग्रियों को रोकने का प्रयास किया है। पर अक्सर ही ये इन्हें रोक नहीं पाई हैं या इन्होंने जानबूझकर इनसे आंखें मूंद ली हैं।  
    
इस बीच बाइडेन प्रशासन चीन के बरखिलाफ भारत को बढ़-चढ़ कर खुश करने में इसके बावजूद लगा रहा है कि मोदी ने अपने देश के एक निरंकुश तंत्र में पतन को तीव्र कर दिया है।’’  
    
‘‘इस साल बसंत में वाशिंगटन पोस्ट के पत्रकारों ने कर्नाटक में तब कई हफ्ते बिताये जब यह चुनावों के लिए तैयार हो रहा था। इन पत्रकारों को इस विशाल मैसेजिंग मशीनरी और उसको संचालित करने वाले कार्यकर्ताओं तक पहुंचने का दुर्लभ मौका मिला। विस्तृत साक्षात्कारों में भाजपा के कर्मचारियों और पार्टी के सहयोगियों ने उद्घाटित किया कि कैसे भारत के बहुसंख्यक हिन्दुओं के भय का इस्तेमाल करने वाले सोशल मीडिया पोस्ट्स का जन्म और निर्माण होता है। उन्होंने यह भी समझाया कि कैसे उन्होंने 1,50,000 सोशल मीडिया वर्कर्स का विस्तृत तंत्र जुटा लिया है ताकि इस सामग्री को व्हाट्सप्प ग्रुपों के विशाल नेटवर्क में संचारित किया जा सके।  
    
इस तंत्र का इस्तेमाल करके भाजपा अपनी सरकार की उपलब्धियों का प्रचार और अपनी विपक्षी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की छवि धूमिल करने का काम सीधे दसियों करोड़ लोगों तक कर पायी। 
    
पर भाजपा के कर्मचारी, अभियान के सलाहकार और पार्टी समर्थकों के अनुसार, पार्टी के आधिकारिक आनलाइन प्रयासों से आगे एक स्याह समानान्तर अभियान भी था। दुर्लभ और विस्तृत साक्षात्कारों में उन्होंने बताया कि पार्टी गुपचुप ‘‘थर्ड पार्टी’’ या ‘‘ट्रोल’’ पेजों के नाम से जानी जाने वाली सामग्रियों के सृजकों से तालमेल बैठाती है। इनको ऐसे विस्फोटक पोस्ट्स को डिजाइन करने में विशेषज्ञता होती है जो वायरल हो जाते हैं और पार्टी के आधार में चिंगारी लगा देते हैं। अक्सर ही वे भारत की एक भयावह और झूठी तस्वीर पेश करते हैं जिसमें 14 प्रतिशत मुस्लिम अल्पसंख्यक, ‘धर्मनिरपेक्ष और उदार’ कांग्रेस पार्टी के उकसावे पर हिन्दू बहुसंख्यकों को गाली देते और उनकी हत्या करते दिखाए जाते हैं, और जिससे न्याय और सुरक्षा को मात्र भाजपा को वोट देकर ही सुनिश्चित किया जा सकता है।  
    
आज 50 करोड़ उपयोगकर्ताओं के साथ भारत व्हाट्सएप्प का सबसे बड़ा बाजार है। सोशल मीडिया अनुसंधानकर्ताओं, सरकारी अधिकारियों और स्वयं व्हाट्सएप्प ने यह स्वीकार किया है कि प्रशंसकों के ध्रुवीकरण और हिंसा भड़काने के उपकरण के तौर पर यह मंच संभावनाओं से भरा पड़ा है। पर भाजपा के व्हाट्सएप्प इकोसिस्टम में ठीक-ठीक क्या होता है, यह लम्बे समय से राजनीतिक वैज्ञानिकों और विपक्षी दलों के लिए एक रहस्य बना रहा है, जिन्होंने पार्टी की डिजिटल सफलता की नक़ल करने का पुरजोर प्रयास किया है।  

‘‘इस श्रंखला में शामिल हैं :

* नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी और उसके राष्ट्रवादी सहयोगियों ने एक व्यापक प्रचार मशीन का निर्माण किया है, जिसमें दसियों हजार कार्यकर्त्ता झूठी खबरें और धार्मिक रूप से विभाजक पोस्ट्स व्हाट्सएप्प के माध्यम से फैलाते हैं। जनक कंपनी मेटा कहती है कि व्हाट्सएप्प सामग्रियों की चौकसी नहीं कर सकती भले ही वे कितनी ही भड़काऊ क्यों न हों। 
    
* बड़े-बड़े सोशल मीडिया मंच उनकी सेवा की शर्तों का उल्लंघन करने वाली सामग्रियों को रोकने के प्रति उदासीन रहे हैं। जब फेसबुक को पता चला कि भारतीय सेना द्वारा गुप्त रूप से संचालित फर्जी एकाउंट्स के माध्यम से एक व्यापक प्रचार अभियान चल रहा है, तब कंपनी के कुछ कर्मचारी इसे बंद करने की तरफ बढ़े, पर कंपनी के नयी दिल्ली में बैठे अधिकारियों ने इस कदम को रोक दिया। 
    
* हिन्दू सजग प्रहरियों की एक नयी पीढ़ी यूट्यूब और फेसबुक सरीखे मंचों पर बार-बार मुस्लिमों पर अपने सशस्त्र हमलों का प्रसारण करती है, जिससे उन्हें व्यापक फॉलोवर्स के साथ-साथ भाजपा प्रदत्त सुरक्षा मिलती है। जबकि मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने बार-बार ऐसे घृणापूर्ण प्रभावशालियों (प्रचारकर्ताओं) पर सोशल मीडिया कंपनियों से आपत्ति दर्ज कराई है, तो भी उनके एकाउंट्स नहीं हटाए गए हैं। 
    
* भारत सरकार आनलाइन आलोचना और असहमति के खिलाफ अधिकाधिक आक्रामक हो चुकी है। अब वह बार-बार सोशल मीडिया कंपनियों को पोस्ट्स को हटाने का आदेश देती है और थोड़ी ज्यादा असहमति होने पर पूरे इंटरनेट को ही बंद कर देती है। 

 

मोनू मानेसर कौन है?

28 जनवरी की सुबह एक हुंडई कार में तीन मुसलमान युवक बहुत तेजी से जा रहे थे। वे बचना चाहते थे एक भारी भरकम कार में सवार मोनू मानेसर के गैंग से। इस गैंग को गौरक्षकों के एक हिंसक गैंग के रूप में जाना जाता है। 
    
मोनू मानेसर से बचने के चक्कर में युवकों की गाड़ी सब्जियों से भरे एक ट्रक से टकरा गयी। अब वे मोनू गैंग के चंगुल में थे। उन्हें कार से निकाल कर भारी भरकम कार में बिठाया गया। फिर शुरू हुआ उनका इंटेरोगेशन और पिटाई। 
घटना के कोई 90 मिनट बाद पुलिस आयी। सीसीटीवी कैमरा के हिसाब से पुलिस ने कोई बचाव नहीं किया। इस बीच गौरक्षकों का भारी समूह फोन करके या व्हाट्सएप्प मैसेज से बुला लिया गया। मोनू उनका हीरो था।
    
मुसलमान युवकों में एक का नाम था वारिस। वारिस ने हास्पिटल में पेट में दर्द की बात बताई, ऐसा हस्पताल के रिकार्ड में दर्ज है। उसे सर्जन को रेफर किया गया। बड़े अस्पताल पहुंचने पर वह मृत पाया गया।
    
वारिस हुंडई कंपनी की कारों का मैकेनिक था। शोरूम से काम छोड़ने के बाद भी वह मैकेनिक का काम करता था। दिन-रात काम करके वह जो पैसे कमाता था, उन्हें वह अपनी पत्नी और एक महीने की बच्ची पर खर्च करता था। घरवालों के अनुसार उस दिन भी वह कार बनाने गया था, पर सुबह तक नहीं लौटा। सुबह उसके भाई के पास एक काल आयी, जिसमें उसे छोड़ने के लिए एक लाख रुपये मांगे गए। भाई  ने मना कर दिया। उसे नहीं मालूम था कि उसका भाई अब नहीं लौटेगा। 
पोस्टमार्टम रिपोर्ट में नसीर के लिवर में अंदरूनी चोटों से उसकी मौत हुई। उसके घुटने पर कई कटे के निशान पाए गए। 
    
पुलिस की रिपोर्ट में ये चोटें कार ट्रक एक्सीडेंट में लगी चोटें थीं, मोनू मानेसर और उसके साथियों ने उसे बचाने का प्रयास किया था। कार दुर्घटनाओं में चेहरे और छाती पर चोटें आती हैं, ये एक तर्क है पुलिस की रिपोर्ट के खिलाफ। पर मोनू के सोशल मीडिया फॉलोवर्स को किसी तर्क की जरूरत नहीं। उन्होंने गोरक्षा के इस प्रयास का सीधा प्रसारण देखा था। 
    
कहते हैं कि इंटरनेट का जमाना है। अब आप वो भी जान सकते हो जो आपको आपकी सरकार भी नहीं बताना चाहती। पर शायद  इंटरनेट भी जय श्री राम वाली सरकार से पूछकर चलता है। 

आलेख

अमरीकी साम्राज्यवादी यूक्रेन में अपनी पराजय को देखते हुए रूस-यूक्रेन युद्ध का विस्तार करना चाहते हैं। इसमें वे पोलैण्ड, रूमानिया, हंगरी, चेक गणराज्य, स्लोवाकिया और अन्य पूर्वी यूरोपीय देशों के सैनिकों को रूस के विरुद्ध सैन्य अभियानों में बलि का बकरा बनाना चाहते हैं। इन देशों के शासक भी रूसी साम्राज्यवादियों के विरुद्ध नाटो के साथ खड़े हैं।

किसी को इस बात पर अचरज हो सकता है कि देश की वर्तमान सरकार इतने शान के साथ सारी दुनिया को कैसे बता सकती है कि वह देश के अस्सी करोड़ लोगों (करीब साठ प्रतिशत आबादी) को पांच किलो राशन मुफ्त हर महीने दे रही है। सरकार के मंत्री विदेश में जाकर इसे शान से दोहराते हैं। 

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सुनील कानुगोलू का नाम कम ही लोगों ने सुना होगा। कम से कम प्रशांत किशोर के मुकाबले तो जरूर ही कम सुना होगा। पर प्रशांत किशोर की तरह सुनील कानुगोलू भी ‘चुनावी रणनीतिकार’ है