हलाल प्रमाणीकरण पर प्रतिबंध के पीछे की राजनीतिक मंशा क्या है?

बहुसंख्यक हिंदू समाज ने भी ‘नमक हलाल’ फिल्म के नाम को सहज ही स्वीकार लिया था। बढ़ती महंगाई सभी गरीबों और निम्न मध्य वर्ग की नींद हराम करती रही है।
    
हलाल और हराम विलोम शब्द हैं। ये उस ही उर्दू भाषा के शब्द हैं, जिसमें मुंशी प्रेमचंद ने अपना शुरुआती लेखन किया था। उर्दू भारतीय संस्कृति का कितना आवश्यक अंग है, यह इस बात से स्पष्ट है कि पिछले वाक्य के ‘मुंशी’ और ‘शुरुआती’ शब्द भी उर्दू भाषा के ही हैं।
    
पर भारतीय संस्कृति की स्वनामधन्य पोषक भारतीय जनता पार्टी के महत्वाकांक्षी और सख्त हिंदुत्ववादी योगी आदित्यनाथ की उत्तर प्रदेश सरकार ने हलाल प्रमाणीकरण में ऐसा राष्ट्र विरोध और समाज विरोध खोज निकाला कि उत्तर प्रदेश में उसे प्रतिबंधित कर दिया। इस फरमान को इतनी शिद्दत के साथ लागू किया गया कि इसके लिए एस टी एफ का गठन किया गया, जिसका सामान्यतः गठन किसी बड़े आपराधिक नेटवर्क या आतंकवाद का सामना करने या बगावत से निपटने जैसी स्थितियों में किया जाता है। योगी सरकार का इस मामले में जोर स्पष्ट है। कुछ राजनीतिक विश्लेषक इसे योगी के मोदी के बरक्स ज्यादा कट्टर हिंदुत्ववादी दिखने और 2024 लोकसभा चुनाव के मद्देनजर सबसे अव्वल रहने की कोशिश के रूप में देखते हैं। (गौरतलब है कि हलाल प्रमाणीकरण पर ऐसा कोई प्रतिबंध किसी और राज्य में नहीं है।)
    
हलाल प्रमाणीकरण क्या है?
    
आपने शुद्ध शाकाहारी होटल के साथ-साथ शुद्ध वैष्णव भोजनालय भी देखे होंगे। कोई भी शुद्ध शाकाहारी व्यक्ति उक्त होटलों को किसी ऐसे मिश्रित होटल के ऊपर वरीयता दे सकता है जहां शाकाहारी और मांसाहारी दोनों भोजन उपलब्ध हैं। अब यदि आप किसी वैष्णव होटल वाले से पूछें, तो वह बता सकता है कि उसके होटल में भोजन पूर्णतः शाकाहारी है और वैष्णवी तरीकों और रीतियों के अनुसार बनता है। अब वैष्णवी रीतियों को लेकर चाहे जितने भी मत मतांतर हों, यह संभावना व्यक्त की जा सकती है कि शाकाहारी हिंदू वैष्णवी होटल को वरीयता देंगे। (ऐसा हो भी क्यों न? यदि भोजन करने मात्र से कुछ धर्म कर्म भी हो जाय, तो इससे आसान क्या हो सकता है!)
    
जैसे किन्हीं हिंदू सम्प्रदायों में मांस वर्जित है, किन्हीं में लहसुन-प्याज को तामसिक माना जाता है, वैसे ही इस्लाम धर्म में मदिरा और सूअर का मांस वर्जित है।
    
तो क्या इसका अर्थ यह है कि वैष्णव होटल की तरह हलाल होटल भी होते हैं? हां, लेकिन मात्र मीट (मांस) की दुकानें दो तरह की होती हैं हलाल और झटका। व्यापक बहुसंख्यक या अल्पसंख्यक समाज हलाल उत्पाद में सिर्फ कच्चे मांस को ही जानता है।
    
परंतु जैसे बाबा रामदेव ने योग शिक्षा से शुरू करके अब मुनाफे के भोग के लिए साबुन, टूथपेस्ट से लेकर आटा, चावल, दाल सबका ही योगकरण कर, सबकी शुद्धता का दावा कर मार्केट पर कब्जा किया है, वैसे ही इस्लामी विधि से सूअर के मांस या मदिरा यानी एल्कोहल या इनके उपोत्पादों से मुक्त उत्पाद या प्रक्रिया का दावा करने का भी बहुत ही सीमित स्तर पर प्रचलन है जिसमें किसी उत्पाद को हलाल कहा जाता है। कतिपय संस्थाएं ऐसे उत्पादकों की उत्पादन प्रक्रिया के आधार पर उत्पादों का हलाल होना प्रमाणित करती हैं।
    
समझने के लिए कल्पना कीजिए कि बाबा रामदेव सरीखे कोई बाबा वैष्णव होटलों से कोई फीस लेकर यह प्रमाणित करें कि उन होटलों में वाकई वैष्णव सम्मत विधि से भोजन पकाया जाता है और वे होटल अपने बोर्ड पर और अपने पैकिंग पन्नियों और डिब्बों पर ‘‘.....द्वारा वैष्णव-प्रमाणित’’ लिख दें, तो यह कुछ-कुछ हलाल प्रमाणीकृत जैसा हो जाएगा। अब कल्पना कीजिए कि सरकार कहे कि हम ऐसे किसी प्रमाणीकरण को नहीं मानते, कि यह गैरकानूनी है, कि इससे हिंदू होटल वालों को अतिरिक्त लाभ हो रहा है और शेष धर्म के अनुयाइयों के प्रति भेदभाव और अन्याय हो रहा है, कि यह समाज में धार्मिक-सांप्रदायिक विद्वेष फैलाने वाली समाज विरोधी, राष्ट्र विरोधी कार्यवाही है। और साथ ही सरकार ऐसा कहते हुए इन सभी होटलों को या तो अपने बोर्ड और पैकेजिंग सामग्रियों से ‘‘.....द्वारा वैष्णव-प्रमाणित’’ शब्दों को हटाने या फिर होटल बंद करने का अल्टीमेटम दे दे, तो सारा मामला हलाल प्रतिबंध जैसा हो जाएगा।
    
योगी आदित्यनाथ सरकार ने 18 नवंबर के अपने आदेश में सभी हलाल प्रमाणित खाद्य उत्पादों के उत्पादन, भंडारण, वितरण और बिक्री पर रोक लगा दी है। निर्यात के लिए उत्पादन इस रोक के दायरे से बाहर रहेगा।
    
एक अधिकारी ने बताया कि निर्यातकों से इस मुहिम का कोई लेना-देना नहीं है, पर यह अनावश्यक हैः जब सूरजमुखी के तेल में मांस नहीं होता तो फिर इसके हलाल प्रमाणीकरण की क्या आवश्यकता है? दूसरी बात यह है कि जो संस्थाएं हलाल प्रमाणित करती हैं, वे भारत सरकार के प्रमाणन बोर्ड राष्ट्रीय प्रमाणन निकाय प्रमाणन बोर्ड (एनएबीसीबी) में रजिस्टर्ड नहीं हैं। ये संस्थाएं दाल, चावल से लेकर दवाओं, कास्मेटिक्स और कुछ मेडिकल उपकरणों को भी हलाल प्रमाणित करती हैं और इनको लेकर सरकार और मीडिया ने विभिन्न कानूनों का हवाला देते हुए खास आपत्ति जताई है। ये कुछ ऐसा ही है जैसे बाबा रामदेव की पतंजलि टूथब्रश बनाने में कौन से योगी या आयुर्वेद की पद्धति का प्रयोग करेगी, यह रोचक है, पर अधेड़ मध्यवर्गीय हो सकता है कि पतंजलि का टूथब्रश भी श्रद्धाभाव से खरीदते हों।
    
यहां कुछ बातें गौरतलब हैं। हलाल सर्टिफिकेट देने वाली संस्थाएं भारतीय प्रमाणन बोर्ड में सूचीबद्ध नहीं हैं और इसके चलते उनका प्रमाणन उत्तर प्रदेश के लिए गैरकानूनी हो जाता है, तो फिर निर्यात के लिए वह गैरकानूनी क्यों नहीं होता? यदि गैर सूचीबद्ध संस्था का प्रमाणन देशवासियों के खिलाफ साजिश है तो हमारे देश से निर्यात माल़ के संदर्भ में वह कैसे जायज है? इसकी एक व्याख्या यह है कि संबंधित इस्लामी देशों में हलाल प्रमाणन की स्वीकार्यता है। तो फिर तो यह अवसरवाद हुआ कि जहां बिक्री बढ़ने (निर्यात बढ़ने) की संभावना है, वहां यह जायज है और देश के भीतर हिंदुओं या हिंदू व्यवसायियों के खिलाफ यह साजिश है। क्या यह दोहरा मानदंड विदेशों में भारत की छवि खराब नहीं करेगा? और यदि इसे न्यायसंगत ठहराया जाता है तो क्या विश्वगुरू भारत आज कलयुग में विश्व को वाणिज्य में अवसरवादी पैंतरेबाजी सिखाएगा? वसुधैव कुटुंबकम् में कुटुंब के दो देशों के नागरिकों के लिए दो मानदंड क्यों?
    
इस संदर्भ में सिद्धांतविहीन पाखंड स्पष्ट है। उससे भी ज्यादा स्पष्ट है भाजपा की सांप्रदायिक राजनीति। बाबा रामदेव आयुर्वेद के महिमामंडन के क्रम में फर्जी कोविड की दवा बना देते हैं, अंग्रेजी चिकित्सा पद्धति की आलोचना में चार कदम आगे बढ़कर कोर्ट की फटकार खाते हैं, पर सरकार को उनसे शिकायत नहीं होती। हलाल प्रमाणकर्ताओं (जो कि सन 1970 के दशक से सक्रिय हैं) में सरकार को राष्ट्र विरोधी और धार्मिक विद्वेषकारी नजर आते हैं।
    
दरअसल यह फैसला सर्वोपरि योगी की अपनी सांप्रदायिक छवि को मजबूत करने का प्रयास है। इसमें चतुराई यह है कि इसमें कानून का तड़का है, हालांकि वह भी संप्रदाय विशेष के पक्ष में और संप्रदाय विशेष के खिलाफ कानून का एकतरफा तड़का है। दूसरे अल्पसंख्यकों की बड़ी आबादी इससे प्रभावित नहीं होगी, क्योंकि हलाल प्रमाणित उत्पादों का दायरा सीमित है। अतः यह आर्थिक से ज्यादा राजनीतिक ध्रुवीकरण का अस्त्र बनकर योगी के अस्सी-बीस के फार्मूले को आगे बढ़ाएगा और योगी को मोदी से भी बड़ा फासीवादी साबित करेगा। ऐसा उस स्थिति में भी होगा जब कोर्ट में मामला जाने पर सरकार का फैसला रोक दिया जाय या पलट दिया जाय। 
    
सरकार के बयान में यह भी कहा गया है कि हलाल प्रमाणन और उत्पादों से ‘‘समाज विरोधी’’ और ‘‘राष्ट्र विरोधी तत्वों’’ को ‘‘अनुचित लाभ’’ पहुंचने का भय है। भाजपा की राजनीति हलाल है, बाकी सब हराम।

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