चण्डीगढ़-गांधीनगर-सूरत रचोगे तो नागालैण्ड भी झेलोगे!

लोकसभा चुनाव इस वक्त देश में चल रहे हैं। इन चुनावों में संघ-भाजपा मण्डली द्वारा अपने पक्ष में मतदान कराने के हर हथकंडे अपनाये जा रहे हैं। कहीं पुलिस-प्रशासन लोगों को भाजपा को वोट डालने के लिए धमका रहा है तो कहीं भाजपा को वोट न देने पर लोगों के घरों पर बुलडोजर चलाने की धमकी दी जा रही है। सूरत में तो संघी कारकूनों ने विपक्षी इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी का नामांकन रद्द करा व अन्य उम्मीदवारों से नाम वापस करा निर्विरोध भाजपाई प्रत्याशी विजयी घोषित करवा लिया। संघ-भाजपा की इन तिकड़मों के जवाब में अपनी समस्याओं से जूझ रही जनता जगह-जगह पर चुनावों का बहिष्कार कर रही है। सबसे संगठित बहिष्कार नागालैण्ड के 6 जिलों में हुआ जहां पहले चरण के चुनाव में एक भी वोट नहीं पड़ा। 
    
चण्डीगढ़ के मेयर चुनाव में चुनाव अधिकारी द्वारा भाजपा के पक्ष में की गयी धांधली आज वीडियो के जरिये सबके सामने है। इसी कड़ी में आगे बढ़ते हुए गृहमंत्री अमित शाह जो कि गांधीनगर सीट से भाजपा के प्रत्याशी हैं वहां उन्हें रिकार्ड जीत दिलाने में मानो पूरा गृह मंत्रालय ही जुट गया है। यहां पुलिस अधिकारी संघी कार्यकर्ता की तरह विपक्षी छुटभैय्ये नेताओं से लेकर गुण्डा तत्वों तक सबको धमकाने में जुटे हैं। इन्होंने अमित शाह को देश में सर्वाधिक मार्जिन से जिताने का लक्ष्य ले लिया है। किसी को फर्जी मुकदमे ठोंकने का डर दिखाया जा रहा है तो किसी बस्ती को भाजपा को वोट न देने पर कोई काम न होने का डर दिखा धमकाया जा रहा है। सहकारी बैंक, खरीद संघ से लेकर दुग्ध सहकारी समितियों के अध्यक्षों को भाजपा के पक्ष में प्रचार के निर्देश दिये गये हैं। कालेज के छात्रों को वाइवा में फेल होने का भय दिखा अमित शाह के रोड शो में शामिल कराया गया। गांधीनगर से दो कदम आगे की कार्यवाही संघी कारकूनों ने सूरत सीट पर अंजाम दी। यहां भाजपा प्रत्याशी को निर्विरोध जिताने के लिए सारी शर्म-हया त्याग दी गयी। सबसे पहले इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार नीलेश कुम्भानी व उनके डमी उम्मीदवार सुरेश पाडसाला का नामांकन रद्द करवाया गया। नामांकन रद्द करने के लिए इन दोनों के 4 प्रस्तावकों को न सिर्फ गायब करवा दिया गया बल्कि उनसे शपथ पत्र भी दिला दिया गया कि प्रस्तावक के रूप में किये गये हस्ताक्षर उनके नहीं हैं। परिणामतः इन दोनों का नामांकन रद्द हो गया। हालांकि बाद में पता चला कि विपक्षी प्रत्याशी नीलेश ही पहले से मैनेज कर लिये गये थे। अब शेष बचे 8 प्रत्याशी थे जिनसे छुटकारा पाना था। इनमें सबसे प्रमुख बसपा प्रत्याशी प्यारेलाल भारती थे जिन्हें इस स्थिति में इंडिया गठबंधन ने भी समर्थन दे दिया था। बसपा प्रत्याशी भूमिगत हो गये। पर गुजरात पुलिस की क्राइम ब्रांच अंततः उनके छुपने के स्थान पर जा पहुंची और उनसे ‘समझा-बुझाकर’ नाम वापस करवा लिया गया। बाकी बचे 7 प्रत्याशियों से नाम वापस कराना संघी मशीनरी-पुलिस प्रशासन के लिए कठिन नहीं था। अंततः नाम वापसी का वक्त समाप्त होते-होते भाजपा प्रत्याशी ही इकलौते उम्मीदवार बचे। मुकेश दलाल नामक इस भाजपाई उम्मीदवार को निर्विरोध चुन लिया गया। 
    
चुनाव का मखौल बनाती चंडीगढ़-गांधीनगर-सूरत की तस्वीर संघी वाहिनी को सब कुछ मन का कर लेने के घमण्ड से भर रही थी। पर 19 अप्रैल को जब पहले चरण का मतदान हुआ तो तकरीबन 5 प्रतिशत कम मतदान के साथ-साथ जगह-जगह मतदान बहिष्कार की तस्वीरों ने संघी वाहिनी को उनकी करतूतों का मानो उन्हीं की भाषा में जवाब दे दिया। 
    
कहीं ग्रामीणों ने सड़क को लेकर, कहीं पेयजल को लेकर, कहीं जंगली जानवरों से सुरक्षा को लेकर मतदान का बहिष्कार किया। सबसे व्यापक बहिष्कार नागालैण्ड के 6 जिलों में हुआ जहां एक भी वोट नहीं पड़़ा। कई भाजपाई नेता-विधायक भी यहां अपना वोट डालने की हिम्मत नहीं कर पाये। 
    
पूर्वी नागालैण्ड की जनता पूर्वी नागालैण्ड पीपुल्स आर्गेनाइजेशन के बैनर तले लम्बे समय से अपने लिए अधिक वित्तीय स्वायत्तता के साथ अलग प्रशासनिक इकाई की मांग कर रही है। पिछले विधानसभा चुनाव के वक्त भी यहां के लोगों ने चुनाव बहिष्कार का नारा दिया था जिसे गृहमंत्री अमित शाह के आश्वासन के बाद वापस ले लिया गया था। पर इस बार अपनी मांग पूरे देश के सामने पेश करने के लिए उक्त संगठन ने पहले यहां आपातकाल की व फिर मतदान बहिष्कार की घोषणा कर दी। जब चुनाव आयोग ने मतदान बाधित करने के लिए इस संगठन को नोटिस जारी किया तो उसका जवाब देते हुए संगठन ने कहा कि बहिष्कार की कार्यवाही लोगों की ओर से स्वैच्छिक कार्यवाही है। 19 अप्रैल को चुनाव वाले दिन लगभग शून्य मतदान ने दिखा दिया कि यहां के लोग अपनी मांगों के लिए किस हद तक एकजुट हैं। अमित शाह की वादाखिलाफी का जवाब नागालैण्ड के इन 6 जिलों की जनता ने दे दिया। 4 लाख लोगों का यह बहिष्कार राष्ट्रीय सुर्खी नहीं बना।   
    
दरअसल पूर्वी नागालैण्ड की जनता की यह मांग न्यायपूर्ण मांग है। केन्द्र सरकार स्वायत्तता की इनकी मांग पर झूठे आश्वासन देती रही है। अब यहां के 4 लाख लोगों ने केन्द्र सरकार को अपने बहिष्कार के कदम से तीखा प्रत्युत्तर दिया है। 
    
दरअसल जनता जिस तरह देहातों-गांवों से लेकर स्थानीय पैमाने पर अपनी मांगें उठाने के लिए बहिष्कार की ओर बढ़ रही है वह दिखाता है कि चुनावी तामझाम पर उसका भरोसा कमजोर पड़ रहा है। वह किसी संगठित देशव्यापी विकल्प के अभाव में स्थानीय स्तर पर पहल ले रही है। हालांकि महज अपनी मांग को स्वर देने हेतु वे यह रूप अपना रहे हैं वे अभी पूंजीवादी व्यवस्था के विरोध में नहीं खड़े हैं। 
    
दरअसल ये पहले संघ-भाजपा द्वारा रचे जा रहे चण्डीगढ़-गांधीनगर-सूरत का जवाब है। साथ ही साथ यह संघ-भाजपा द्वारा लोगों से किये झूठे वायदों का भी जनता की ओर से जवाब है। क्रांतिकारी विचारधारा व तेवरों के साथ संगठित हो ये पहले भविष्य में संघ-भाजपा के फासीवादी आंदोलन को पटखनी भी दे सकती है। साथ ही शासक वर्ग को पीछे हटने को मजबूर भी कर सकती है। 

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