संघ का उर्ध्वपातन

यह एक वैज्ञानिक सच है कि कई पदार्थों को जब ठोस अवस्था में गर्म किया जाता है तो वह सीधे गैस में बदल जाते हैं। भौतिक परिवर्तन की इस प्रक्रिया को उर्ध्वपातन (Sublimation) कहा जाता है। कपूर, आयोडीन, नेप्थेलिन की गोलियां इसके कुछ उदाहरण हैं। 
    
उर्ध्वपातन यद्यपि एक भौतिक प्रक्रिया है परन्तु यह प्रक्रिया कई बार सामाजिक-राजनैतिक जगत में घटती है। सामाजिक-राजनैतिक जीवन में इसके उदाहरण के रूप में समय-समय पर विभिन्न किस्म के तानाशाह दिखायी देते हैं तो हिटलर, मुसोलिनी फासीवादी-नाजीवादी भी इसके उदाहरण रहे हैं। इनका सीधे उर्ध्वपातन होता है। 1933 में सत्ता में काबिज हिटलर ठोस व शक्तिशाली दिखायी देता है। चंद वर्षों में उसका उर्ध्वपातन हो जाता है। एकदम से गायब हो जाता है। उसके ही देश में उसका कोई नामलेवा नहीं बचता है। 
    
हमारे देश में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ एक ऐसा ही पदार्थ है जो आज बहुत ठोस, बहुत मजबूत, बहुत शक्तिशाली दिखायी देता है। परन्तु यह हिन्दू फासीवादी संगठन जिस पदार्थ से बना है वह उर्ध्वपातन का ही गुण रखता है। इसे गर्म किया नहीं कि गैस बनकर तुरंत उड़ने लगेगा इसका अस्तित्व ही मिट जायेगा। 
    
संघ का कोई भविष्य नहीं है। उसका सिर्फ एक अतीत है। और यह अगले वर्ष अपने उम्र की अंतिम अवस्था में सौंवे वर्ष पूरे करने जा रहा है। संघ को उर्ध्वपातन में पहुंचाने में कई कारक काम कर रहे हैं। सबसे बड़ा कारक खुद इस संघ की विचारधारा, सामाजिक संरचना और मानवद्रोही चरित्र में है। रही-सही कसर इसके उर्ध्वपातन में इसकी सत्ता और पूंजी (पैसे) में बढ़ती पहुंच ने पूरी कर दी है। चाल, चरित्र की बात करने वाले संघ के कार्यकर्ता-नेता सत्ता और पूंजी के दलाल बनते गये हैं। संघ के पूर्णकालिक कार्यकर्ता आरामतलबी और अय्याशी के आदी होते गये हैं। भाजपा जो कभी संघ की एक शाखा या मोर्चा होती थी आज संघ भाजपा का पिछलग्गू हो चुका है। बेचारे संघ प्रमुख की हैसियत, भाजपा के एक नेता सुब्रहमण्यम स्वामी के शब्दों में तीसरे नम्बर की हो चुकी है। मोहन भागवत का स्थान आज मोदी और शाह के बाद कहीं जाकर आता है। संघ के पुराने बूढ़े यह देखकर दुःखी और खिन्न हैं कि उनका संघ क्या से क्या हो गया है। 
    
हिन्दू फासीवादी संघ से जो लोग डरते-घबराते हैं वे यह नहीं देख पा रहे हैं कि वह अपने उर्ध्वपातन की अवस्था में ही जा पहुंचा है। 

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