‘‘अमीर या तो बदमाश होता है, या बदमाश का वारिस’’

यह एक पुरानी लैटिन कहावत है। पुरानी कहावतें जीवन के असली खजाने से निकल कर आती हैं। और ये कहावतें लम्बे समय तक और लम्बी-लम्बी दूरी तक चलती ही इसलिए हैं कि उनमें सच्चाई छुपी होती है। 
    
इस कहावत को भारत के इलेक्टोरल बाण्ड के खुलासे पर लागू कर दीजिए। आप पायेंगे यह कहावत सोलह आने सच है। एक भी अमीर ऐसा नहीं है जो बदमाश नहीं है। और बदमाशी भी ऐसी कि इस बात की कोई परवाह नहीं है कि वे जो पुल, सुरंग, इमारत, दवा बना रहे हैं वे किसी की जान भी ले सकती हैं। और ये बदमाश सैंया भये कोतवाल की तर्ज पर निर्द्वन्द्व घूमते हैं। और कोतवाल बना सैंया बदमाशों से बड़ा बदमाश है। वह इन बदमाशों से खुलेआम घूमने की अपनी कीमत वसूलता है। 
    
और जो अमीर कोट-पैण्ट पहनकर सभ्य या सुसंस्कृत बनने की कोशिश कर रहे हैं उनके इतिहास को थोड़ा सा खंगालिये बस पता लग जायेगा कि वह बदमाश का वारिस है। या तो पुराना जमींदार या सूदखोर है या फिर अंग्रेजों का दलाल-एजेण्ट रहा है। और कुछ नहीं तो छोटी-मोटी चोरी-चकारी से यह सीख गया कि कैसे अमीर बनना है। 

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अमरीकी सरगना ट्रम्प लगातार ईरान को धमकी दे रहे हैं। ट्रम्प इस बात पर जोर दे रहे हैं कि ईरान को किसी भी कीमत पर परमाणु बम नहीं बनाने देंगे। ईरान की हुकूमत का कहना है कि वह

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संघ और भाजपाइयों का यह दुष्प्रचार भी है कि अतीत में सरकार ने (आजादी के बाद) हिंदू मंदिरों को नियंत्रित किया; कि सरकार ने मंदिरों को नियंत्रित करने के लिए बोर्ड या ट्रस्ट बनाए और उसकी कमाई को हड़प लिया। जबकि अन्य धर्मों विशेषकर मुसलमानों के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। मुसलमानों को छूट दी गई। इसलिए अब हिंदू राष्ट्रवादी सरकार एक देश में दो कानून नहीं की तर्ज पर मुसलमानों को भी इस दायरे में लाकर समानता स्थापित कर रही है।

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आजादी के दौरान कांग्रेस पार्टी ने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह उग्र भूमि सुधार करेगी और जमीन किसानों को बांटेगी। आजादी से पहले ज्यादातर जमीनें राजे-रजवाड़ों और जमींदारों के पास थीं। खेती के तेज विकास के लिये इनको जमीन जोतने वाले किसानों में बांटना जरूरी था। साथ ही इनका उन भूमिहीनों के बीच बंटवारा जरूरी था जो ज्यादातर दलित और अति पिछड़ी जातियों से आते थे। यानी जमीन का बंटवारा न केवल उग्र आर्थिक सुधार करता बल्कि उग्र सामाजिक परिवर्तन की राह भी खोलता। 

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अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं।