कर्नाटक : भाजपा की हार

कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत के साथ जीत मिली है। प्रधानमंत्री मोदी के दिन-रात के प्रचार से लेकर बजरंग बली का मुद्दा तक भाजपा की हार को नहीं टाल पाया। जिस तरह से मोदी खुद ही भाजपा की ओर से प्रचार अभियान की कमान संभाले हुए थे उसे देखते हुए कांग्रेसी अपनी जीत को ठीक ही मोदी की हार के रूप में चिह्नित कर रहे हैं। 
    

कर्नाटक की इस जीत से उत्साहित हो कांग्रेसी नेता इसे नफरत की हार, मोहब्बत की जीत सरीखे तमगे दे रहे हैं। तो कुछ लोग इसे भाजपा मुक्त दक्षिण भारत की शुरूआत बता रहे हैं। कुछ लोग इसे 2024 के चुनावों के लिए संकेत मान भाजपा को हराने का दम भर रहे हैं। कुल मिलाकर इस जीत से कांग्रेसी तो उत्साहित हैं ही वे लोग भी उत्साहित हैं जो कांग्रेस के सहारे भाजपा को हराने का ख्वाब पालते हैं। 
    

जहां तक कर्नाटक में भाजपा की हार का प्रश्न है तो इसमें सत्ता विरोधी लहर, आम जन की बदहाली, कांग्रेस का टक्कर का प्रचार, मुस्लिम वोटों का कांग्रेस के पक्ष में ध्रुवीकरण, संघ-भाजपा के घटिया नफरती मुद्दों को जनता का नकार आदि कई कारकों की भूमिका रही। इसी तरह लिंगायत वोटों के भी एकतरफा तौर पर भाजपा के पक्ष में न पड़ने ने कांग्रेस की जीत को आसान बनाया। तटीय कर्नाटक व बंगलुरू शहर ही ऐसी जगहें रहीं जहां भाजपा अपने नफरती मुद्दों के सहारे अपना आधार बचाने में कामयाब रही। 
    

पर फिर भी अगर मत प्रतिशत को ध्यान में रखा जाए तो कांग्रेस की यह जीत उतनी आकर्षक नहीं रह जाती। भाजपा का मत प्रतिशत 2018 के विधानसभा चुनाव के लगभग बराबर (36 प्रतिशत) ही रहा है। उसमें महज 0.43 प्रतिशत की कमी आयी है। इसी तरह कांग्रेस का मत प्रतिशत लगभग 4.3 प्रतिशत बढ़़ा है और जद (यू) का मत प्रतिशत लगभग 7 प्रतिशत गिरा है। इस तरह से देखा जाए तो चुनाव में भाजपा जहां अपने मत प्रतिशत को बचाने में कामयाब रही है वहीं जद (यू) के मतों के एक हिस्से के कांग्रेस को स्थानान्तरण ने कांग्रेस की भारी जीत सुनिश्चित की है। 
    

भाजपा के मत प्रतिशत के पूर्ववत बने रहने को देखते हुए कहा जा सकता है कि यह दरअसल कहीं से भाजपा मुक्त दक्षिण भारत की शुरूआत नहीं है जैसा कि विपक्षी दल दावा कर रहे हैं। जहां तक प्रश्न 24 के आम चुनाव का है तो आम चुनावों में भाजपा का मत प्रतिशत बीते दोनों आम चुनावों (2014, 2019) में विधानसभा की तुलना में काफी बढ़ जाता रहा है। यह दिखलाता है कि आम चुनावों में भाजपा के प्रति मतदाताओं का रुख अलग रहता रहा है। 
    

जो भी लोग कांग्रेस के कंधे पर सवार होकर भाजपा की हार, फासीवाद की हार का स्वप्न देख रहे हैं वे यह भूल जाते रहे हैं कि कांग्रेस भी उसी एकाधिकारी पूंजीपति वर्ग की पार्टी है जिसकी पार्टी भाजपा है। ऐसे में कांग्रेस बुनियादी सुविधाओं के मुद्दों पर भाजपा से अलग कुछ नहीं कर सकती। कांग्रेस किन्हीं चुनावों में भाजपा को जरूर हरा सकती है पर भाजपा-संघ के फासीवादी आंदोलन, समाज में इसके द्वारा फैलते जहर को कांग्रेस कहीं से कम नहीं कर सकती। राहुल गांधी मोहब्बत की चाहे जितनी बातें करें उनकी पार्टी में भाजपा-संघ की नफरत खत्म कर मोहब्बत फैलाने की कूवत ही नहीं है। हां अब सत्ता से बाहर हो संघी-बजरंगी खुलेआम बंगाल-बिहार की तरह कर्नाटक में भी नफरत फैलाने, साम्प्रदायिक तनाव रचने में जुट जायेंगे। 
    

संघी संगठन व पूंजीवादी मीडिया भाजपा की इस हार के वक्त भी विपक्षी ताकतों को लताड़ने में जुटे रहे। वे ‘लोकतंत्र के खात्मे’, ‘ई वी एम से छेड़छाड़’ सरीखे विपक्षी आरोपों को लेकर विपक्षी दलों को लताड़ रहे थे कि अगर लोकतंत्र खत्म हो रहा है ई वी एम खराब है तो कैसे कांग्रेस जीत गयी। पूंजीवादी मीडिया यह देख पाने में विफल है कि अगर सारे ही टी वी चैनल मिलकर संघ-भाजपा की धुन पर नाच रहे हैं तो यह ‘लोकतंत्र के खात्मे’ का ही सबूत है। प्रश्न जहां तक ई वी एम का है तो वह एक मशीन है जो एक चुनाव में बिगाड़ी जा सकती है तो दूसरे में ठीक भी रखी जा सकती है। 
    

फिर भी कर्नाटक में भाजपा की हार इस हकीकत को भी बयां करती है कि मोदी-शाह की सारी कारस्तानियों, राज्य मशीनरी के मनमाने इस्तेमाल आदि के बावजूद भाजपा-संघ का फासीवादी आंदोलन अजेय नहीं है। देश की लगभग 20 प्रतिशत आबादी ही इसके साथ खड़ी है। कि इसके पक्ष में खड़े लोगों की तुलना में खिलाफ खड़े लोगों की तादाद कहीं ज्यादा है। ऐसे में हिन्दू फासीवादी आंदोलन की बढ़त को जनता आगे बढ़ कर रोक सकती है। पर यह चुनावों के जरिये या कांग्रेस के सहारे नहीं हो सकता। यह केवल देश के क्रांतिकारी मजदूर वर्ग के नेतृत्व में बनने वाले फासीवाद विरोधी मोर्चे के जरिए ही संभव है जो सड़कों से लेकर चुनावों तक, राजनीति से लेकर विचारधारा तक हर मोर्चे पर हिन्दू फासीवादियों को चुनौती देगा। जो हिन्दू फासीवाद के साथ पूंजीवादी व्यवस्था को भी निशाने पर लेगा। जब तक ऐसा मजबूत मोर्चा नहीं कायम होता तब तक जरूरी है कि कांग्रेस या किसी अन्य पूंजीवादी दल के पीछे चलने के बजाय जमीनी स्तर पर संघ-भाजपा के द्वारा फैलाये फासीवादी जहर के खिलाफ जनता को जागरुक किया जाए। संघ-भाजपा के हर हमले का क्षमता भर प्रतिरोध किया जाए।   

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