आठ साल की बच्ची की हत्या की घटना

आज जैसे ही मैं सोया मेरी नींद अचानक खुल गयी। मैं परेशान था। परेशान एक घटना ने कर रखा था जो आज पूरे दिन मेरे दिलों दिमाग पर घूमती रही। एक आठ साल की बच्ची जिसको उसकी सौतेली मां ने मार दिया। उसकी मां ने पहले उसे रस्सी से बांधकर पीटा बाद में उसका गला दबाकर मार कर बोरी में बंद करके अपने घर के सामने वाले घर में गड्ढा खोदकर दफना दिया। इस घटना की जानकारी मुझे तब हुयी जब लड़की का पिता जो खुली मजदूरी करता है, कैमरे की फुटेज लेने मेरे पास आया। मैंने उसको वीडियो दिखाया लेकिन कोई जानकारी नहीं मिली। ये घटना सुबह आठ बजे की है। मैं दो घण्टे बाद करीबन 10 बजे उसके घर गया। उससे पूछा कि क्या तुम्हारी लड़की मिली। उसने बोला नहीं। हम दो बार थाने हो आये। पुलिस मेले और इलेक्शन में लगी है। फिर मैंने बोला हम गरीब हैं इसलिए पुलिस नहीं सुन रही। यदि पैसे वाले होते तो सुनती। गरीबों की सुनवाई संख्या के बल पर ही हो सकती है। ऐसा करते हैं सभी महिलाएं इकट्ठी हो और थाने चलते हैं। लड़की का पिता और उसकी सौतेली मां व कुछ महिलाएं थाने पहुंच जाती हैं। हम भी थाने पहुंचते हैं। पुलिस पहले तो कार्यवाही नहीं करती है। हमारे दवाब डालने पर और महिलाओं के बोलने पर जांच करने को तैयार होती है। जांच शुरू होती है और अगले दिन पता चलता है कि इस घटना को अंजाम उसकी सौतेली मां ने ही दो लोगों के साथ मिलकर दिया है। मृत लड़की की सौतेली मां को जेल भेज दिया जाता है। 
    
इस समाज में पता नहीं कितनी बच्चियां रोज मरती हैं। ये हमारे लिए एक खबर होती है बस! हम कभी नहीं सोचते कि ये घटनाएं क्यों होती हैं। इसके पीछे क्या कारण हैं। उस महिला ने ऐसा क्यों किया होगा। हमारा समाज कहां पहुंच गया है। लोगों में फ्रस्टेशन कितना बढ़ गया है। लोग एक-दूसरे को मार दे रहे हैं। ये पूंजी के रिश्ते कहां पहुंच गये हैं। मानवता खत्म हो गयी है। इस व्यवस्था में छोटी बच्चियां तक सुरक्षित नहीं हैं। 
    
अभी तक जो बातें सामने आ रही हैं उसके अनुसार सौतेली मां इस बच्ची को पहले से प्रताड़ित करती रही है। वह किसी अंधविश्वास में पड़ बच्ची को अपने लिए अपशुकन मानती रही थी। यह भी हो सकता है कि वह गरीबी में उस बच्ची को परिवार पर अतिरिक्त बोझ मानती रही हो। वजह जो भी हो इस दुखद घटना में सौतेली मां को हत्या की ओर गरीबी, अंधविश्वास व पोंगापंथ ने ही ढकेला। इन सभी को आज की व्यवस्था बढ़़ावा दे रही है।         -राकेश, काशीपुर

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आज आम लोगों द्वारा आतंकवाद को जिस रूप में देखा जाता है वह मुख्यतः बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध की परिघटना है यानी आतंकवादियों द्वारा आम जनता को निशाना बनाया जाना। आतंकवाद का मूल चरित्र वही रहता है यानी आतंक के जरिए अपना राजनीतिक लक्ष्य हासिल करना। पर अब राज्य सत्ता के लोगों के बदले आम जनता को निशाना बनाया जाने लगता है जिससे समाज में दहशत कायम हो और राज्यसत्ता पर दबाव बने। राज्यसत्ता के बदले आम जनता को निशाना बनाना हमेशा ज्यादा आसान होता है।

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युद्ध विराम के बाद अब भारत और पाकिस्तान दोनों के शासक अपनी-अपनी सफलता के और दूसरे को नुकसान पहुंचाने के दावे करने लगे। यही नहीं, सर्वदलीय बैठकों से गायब रहे मोदी, फिर राष्ट्र के संबोधन के जरिए अपनी साख को वापस कायम करने की मुहिम में जुट गए। भाजपाई-संघी अब भगवा झंडे को बगल में छुपाकर, तिरंगे झंडे के तले अपनी असफलताओं पर पर्दा डालने के लिए ‘पाकिस्तान को सबक सिखा दिया’ का अभियान चलाएंगे।

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