फूट-छंटनी का मुकाबला वर्गीय एकता से करने की जरूरत

गुड़गांव/ सनबीम ऑटो प्राइवेट लिमिटेड ने 1986 में नरसिंहपुर गुड़गांव में प्लांट स्थापित कर अपना उत्पादन शुरू किया। सनबीम ऑटो एल्युमिनियम डाई कास्टिंग की विश्व में एक अग्रणी कंपनी है। सनबीम ऑटो मारुति सुजुकी, सुजुकी पावरट्रेन, सुजुकी मोटरसाइकिल, मुंजाल शोवा, राने एनएसके, जर्मनी की डाइम्लर एजी, यूएसए एंड जर्मनी की रॉबर्ट बोस कारपोरेशन, फोर्ड मोटर कंपनी, विटेस्को कान्टिनेंटल आटोमेटिक सिस्टम, कॉपर स्टैंडर्ड आटोमोटिव और वैल्यू इन जैनिज्म एंड सिस्टम आदि कंपनियों के लिए डाई कास्टिंग के पार्ट्स बनाने का काम करती है। शोषण बहुत ज्यादा होने के कारण 1996 में सनबीम के मजदूर यूनियन बनाने का प्रयास करते हैं और यूनियन बनाने में सफल रहते हैं लेकिन यूनियन बनने के बाद भी समय के साथ ठेका मजदूरों की तादाद बढ़ती जाती है और यूनियन कुछ मजदूरों को स्थायी करवाने में भी कामयाब रहती है। 2009 में सनबीम यूनियन ने 52 दिन के जुझारू संघर्ष में अपनी एकता का परिचय दिया था। लेकिन समय के साथ-साथ मजदूरों की तनख्वाह बढ़ने और जाति-धर्म-क्षेत्र की राजनीति हावी होने के कारण मजदूरों की एकता में कमजोरी आई है।
    4 दिसंबर 2017 को कंपनी का नाम बदलकर सनबीम लाइटवेटिंग सॉल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड हो गया। इस समय कंपनी में लगी कुल पूंजी 9 अरब 69 करोड़ 99 लाख रु. थी जिसमें 6 अरब 20 करोड़ रु. के लगभग भारतीय पूंजी है। एक समय सनबीम कंपनी में 4 से 5 हजार मजदूर काम करते थे जिसमें 1000 के लगभग स्थाई और 3-3.5 हजार के लगभग ठेका मजदूर काम करते थे। कंपनी ने जब से टपूकड़ा प्लांट लगाया है तब से गुड़गांव प्लांट में उत्पादन धीरे-धीरे कम किया गया और टपूकड़ा प्लांट में शिफ्ट किया गया है। टपूकड़ा प्लांट में मजदूर सिंगल ओवरटाइम पर न्यूनतम वेतन के साथ काम करते हैं जहां उत्पादन लागत काफी कम है। कंपनी ने कास्ट कटिंग के लिए गुडगांव प्लांट में पहले ठेका मजदूरों को कम किया और अब स्थाई मजदूरों पर गाज गिरना शुरू हुआ है। कंपनी ने मजदूरों की एकता को तोड़ने के लिए तमाम षड्यंत्र किए हुए हैं। 2022 में चुनाव के बाद कंपनी के अंदर मैनेजमेंट फूट डालने में कामयाब रही। पूर्व प्रधानों और कुछ अन्य मजदूरों को मैनेजमेंट भ्रमित करने में कामयाब रहा।
    मारुती आंदोलन के बाद गुड़गांव में ट्रेड यूनियन आंदोलन मजबूती हासिल नहीं कर पाया है। तमाम कंपनियों में यूनियनें केवल अपने प्लांटों तक सिमट गई हैं और अपने प्लांट में भी केवल स्थाई मजदूरों तक सिमटी हुई हैं। यह स्थिति कंपनी मालिकों के लिए वरदान साबित हुई है। इन परिस्थितियों का फायदा उठाकर गुड़गांव की तमाम कंपनियों की मैनेजमेंट ने मजदूरों की छंटनी करना शुरू कर दी। पुराने ठेका और स्थाई मजदूरों को निकालकर 6 महीने और 1 साल के अस्थाई मजदूर भर्ती किए जा रहे हैं।
    सनबीम लाइटवेटिंग सॉल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंधन ने भी 2022 में पुराने ठेका मजदूरों को कंपनी से निकालने या उनका कार्ड चेंज करने का प्रयास शुरू किया जिसके कारण 15-20 साल पुराने मजदूरों में भगदड़ और डर का माहौल पैदा हो गया। ठेका मजदूरों ने स्थाई काम के लिए स्थाई रोजगार और समान काम के समान वेतन की मांग के साथ अपना सामूहिक मांग पत्र श्रम विभाग में डाला लेकिन श्रम विभाग ने हाथ खड़े कर दिए। इससे पहले ठेका मजदूरों का सामूहिक मांग पत्र सबसे पहले बेलसोनिका और बाद में हितैची के मजदूरों ने डाला था लेकिन श्रम विभाग और सरकार पुरजोर तरीके से मालिकों के साथ खड़े हैं और सामूहिक मांग पत्र पर कार्यवाही करने के लिए तैयार नहीं हैं। तारीख पर तारीख दी जा रही है लेकिन कंपनियों के खिलाफ अनफेयर लेबर प्रैक्टिस का केस दर्ज नहीं किया जा रहा है।
    सनबीम यूनियन के पूर्व प्रधानों ने दूसरी यूनियन बनाने का प्रयास भी शुरू कर दिया है जिसका एक कारण पूर्व प्रधान की सदस्यता खारिज करना भी हो सकता है। वर्तमान यूनियन नेतृत्व और पूर्व नेतृत्व के बीच मैनेजमेंट ने तनाव पैदा कर दिया है। प्रबंधन का काम ही होता है मजदूरों के बीच गुटबंदी पैदा करना। यह सारा खेल प्रबंधन के द्वारा खेला जा रहा है। पुराने नेतृत्व या हारे हुए प्रतिनिधियों को प्रबंधन मोहरे की तरह प्रयोग करती है। कुछ खामियां वर्तमान नेतृत्व द्वारा किए गए समझौते में भी हैं जिसका समाधान दूसरी यूनियन बनाना नहीं है। सनबीम प्रबंधन छंटनी करने के लिए जो खेल खेल रहा है उसको सनबीम के सभी मजदूरों को समझना होगा और ठेका व स्थाई मजदूरों की एकता बनाते हुए सनबीम प्रबंधन को मुंहतोड़ जवाब देना होगा। सनबीम प्रबंधन जो खेल खेल रहा है सनबीम के तमाम मजदूर इसके पीड़ित हैं। इसका समाधान भी मजदूरों के पास यही है कि वे अपनी वर्गीय एकता बनाकर और गुड़गांव तथा टपूकड़ा प्लांट के मजदूरों की एकता बनाकर प्रबंधन के इस हमले का मुंहतोड़ जवाब दें।
    आज देश के हर औद्योगिक क्षेत्र में पूंजीपति वर्ग जेबी यूनियनें चाहता है। वह चाहता है कि यूनियन मालिक के अनुसार चले। पूंजीपति वर्ग अपने लक्ष्य में कुछ-कुछ कामयाब होता दिखा रहा है। क्योंकि मजदूरों में वर्गीय एकता का अभाव है। 4 लेबर कोड आने के बाद तमाम औद्योगिक क्षेत्रों की मैनेजमेंट ने यूनियनों को खत्म करने का काम शुरू कर दिया है। तमाम मजदूरों और यूनियन नेतृत्व को यह समझना होगा कि अगर आज मजदूरों को नौकरी बचानी है, अपनी यूनियन बचानी है तो संघर्ष का रास्ता अख्तियार करना होगा और औद्योगिक बेल्ट की तमाम यूनियनों के साथ एका करके पूंजीपति वर्ग और उनकी सरकारों को मुंहतोड़ जवाब देना होगा। 
        -गुड़गांव संवाददाता

आलेख

अमरीकी साम्राज्यवादी यूक्रेन में अपनी पराजय को देखते हुए रूस-यूक्रेन युद्ध का विस्तार करना चाहते हैं। इसमें वे पोलैण्ड, रूमानिया, हंगरी, चेक गणराज्य, स्लोवाकिया और अन्य पूर्वी यूरोपीय देशों के सैनिकों को रूस के विरुद्ध सैन्य अभियानों में बलि का बकरा बनाना चाहते हैं। इन देशों के शासक भी रूसी साम्राज्यवादियों के विरुद्ध नाटो के साथ खड़े हैं।

किसी को इस बात पर अचरज हो सकता है कि देश की वर्तमान सरकार इतने शान के साथ सारी दुनिया को कैसे बता सकती है कि वह देश के अस्सी करोड़ लोगों (करीब साठ प्रतिशत आबादी) को पांच किलो राशन मुफ्त हर महीने दे रही है। सरकार के मंत्री विदेश में जाकर इसे शान से दोहराते हैं। 

आखिरकार संघियों ने संविधान में भी अपने रामराज की प्रेरणा खोज ली। जनवरी माह के अंत में ‘मन की बात’ कार्यक्रम में मोदी ने एक रहस्य का उद्घाटन करते हुए कहा कि मूल संविधान में राम, लक्ष्मण, सीता के चित्र हैं। संविधान निर्माताओं को राम से प्रेरणा मिली है इसीलिए संविधान निर्माताओं ने राम को संविधान में उचित जगह दी है।
    

मई दिवस पूंजीवादी शोषण के विरुद्ध मजदूरों के संघर्षों का प्रतीक दिवस है और 8 घंटे के कार्यदिवस का अधिकार इससे सीधे जुड़ा हुआ है। पहली मई को पूरी दुनिया के मजदूर त्यौहार की

सुनील कानुगोलू का नाम कम ही लोगों ने सुना होगा। कम से कम प्रशांत किशोर के मुकाबले तो जरूर ही कम सुना होगा। पर प्रशांत किशोर की तरह सुनील कानुगोलू भी ‘चुनावी रणनीतिकार’ है