जी-20 का शिखर सम्मेलन और मोदी सरकार

    आने वाली 9-10 सितम्बर को देश की राजधानी दिल्ली में जी-20 का शिखर सम्मेलन आयोजित होने जा रहा है। इस बार भारत इसकी अध्यक्षता कर रहा है और मोदी सरकार इसे अपनी विशेष उपलब्धि बता रही है। क्या जी-20 के शिखर सम्मेलन की अध्यक्षता करना वाकई विशेष उपलब्धि है? इसे जानने के लिये आईये पहले यह समझने की कोशिश करते हैं कि जी-20 आखिर है क्या? और खुद जी-20 को समझने की शुरुआत हमें जी-7 से करनी होगी।
    जी-7 अमेरिकी साम्राज्यवादियों के नेतृत्व में पश्चिमी साम्राज्यवादियों का राजनीतिक मंच है जिसमें अमेरिका के अलावा कनाडा, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली और जापान शामिल हैं। जी-7 का गठन 1975 में पहले जी-6 के रूप में और फिर कनाडा के शामिल होने पर 1976 में जी-7 के रूप में हुआ था। यूरोपीय संघ भी लम्बे समय से इस मंच का अनौपचारिक सदस्य बना हुआ है। 1997 से लेकर 2014 तक रूस भी इसमें शामिल था और तब इसे जी-8 कहा जाता था। लेकिन 2014 में जब रूस ने क्रीमिया पर कब्जा कर लिया तब उसे इससे बाहर कर दिया गया।
    जी-7 के गठन के तात्कालिक कारणों में 1973 का तेल संकट और उससे निपटने के प्रयास थे। अपनी स्थापना के समय से ही जी-7 अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, गैट वार्ताओं (जिनसे 1995 में विश्व व्यापार संगठन बना) और विश्व बैंक के जरिये उदारीकरण-निजीकरण-वैश्वीकरण की लुटेरी नीतियों को पूरी दुनिया के स्तर पर लागू कराने की कोशिश करता रहा है।
    और इसी जी-7 द्वारा अपने अलावा दुनिया की शेष बड़ी 12 अर्थव्यवस्थाओं- अर्जेंटीना, आस्ट्रेलिया, ब्राजील, चीन, भारत, इंडोनेशिया, मैक्सिको, रूस, साऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया और तुर्की एवं यूरोपीय संघ को अपने में मिलाकर 1999 में जर्मनी के बर्लिन में एक सम्मेलन कर जी-20 का गठन किया गया था। इसकी पृष्ठभूमि में 1997 का दक्षिण पूर्व एशियाई देशों का संकट था।
    इस तरह अमेरिकी साम्राज्यवादियों के नेतृत्व में पश्चिमी साम्राज्यवादी अपनी लुटेरी नीतियों को बड़ी अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों के साथ अधिक तालमेल कायम कर आगे बढ़ा सकें, इस हेतु एक मंच के रूप में जी-20 का गठन किया गया था। इसके तहत एक हद तक तीसरी दुनिया के कुछ बड़े देशों की दुनिया में बढ़ती हैसियत को भी मान्यता प्राप्त हुई थी। 2007-08 के वैश्विक आर्थिक संकट के समय दुनिया के संचालन में जी-20 की भूमिका पर बहुत सी बातें भी हुई थीं। लेकिन खुद जी-7 के साम्राज्यवादी देशों के बीच आपसी अंतर्विरोध एवं बढ़ती कलह तथा जी-20 में मौजूद रूसी एवं चीनी साम्राज्यवादियों के साथ पश्चिमी साम्राज्यवादियों की लगातार तीखी होती कलह के कारण जी-20 ऐसी कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभा सका जैसी कि इसके बारे में बात की जा रही थी। इस समय जी-20 महज रस्मी बातें करने वाला एक ऐसा मंच बना हुआ है जो कि कोई औपचारिक संयुक्त वक्तव्य भी नहीं जारी कर पाता है। 
    इस वर्ष सितम्बर माह में दिल्ली में होने जा रहे शिखर सम्मेलन की तैयारियों के मद्देनजर 1 एवं 2 मार्च को दिल्ली में हुई विदेश मंत्रियों के स्तर की बैठक में कोई संयुक्त वक्तव्य नहीं जारी हो सका क्योंकि उसमें रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले की आलोचना थी और इस पर विरोध खड़ा हो गया। इसी तरह फरवरी में वित्त मंत्रियों के स्तर की बैठक में भी कोई सहमति न बन पाने के कारण कोई संयुक्त वक्तव्य जारी नहीं हो सका था। इन दोनों ही घटनाक्रमों से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मोदी सरकार की भारी फजीहत हुई। 
    जी-7 की ही तरह जी-20 भी एक अनौपचारिक राजनीतिक गठबंधन है, जिसकी न तो कोई औपचारिक सदस्यता है और न ही कोई मुख्यालय अथवा सचिवालय। इसकी अध्यक्षता बारी-बारी से सभी देश करते हैं। गत वर्ष 2022 में इसकी अध्यक्षता इंडोनेशिया ने की थी, इस वर्ष 2023 में इसकी अध्यक्षता भारत कर रहा है और अगले वर्ष 2024 में इसकी अध्यक्षता ब्राजील करेगा।
    उपरोक्त के मद्देनजर स्पष्ट है कि जी-20 की अध्यक्षता करना एक सामान्य सी बात है कि प्रतिवर्ष कोई न कोई देश इसकी अध्यक्षता करता ही है। इसमें गौरवान्वित होने अथवा कोई विशेष उपलब्धि जैसा तो कुछ भी मामला नहीं है। ऐसे में सहज ही सवाल बनता है कि मोदी सरकार प्रति वर्ष होने वाली एक रस्मी कवायद को भला क्यों अपनी विशेष उपलब्धि बता रही है? क्यों इसके प्रचार में सैंकड़ों करोड़ रुपये फूंक रही है? और क्यों कारपोरेट मीडिया इसे इतना तूल दे रहा है?
    दरअसल इस सबकी असल वजह 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव हैं। भारत को जी-20 के सम्मेलन का आयोजन 2020 में करना था लेकिन उस समय मोदी सरकार इसके लिये तैयार नहीं हुई और तब इसका आयोजन इटली ने किया। जबकि 2021 में कोरोना के कारण जी-20 का सम्मेलन आयोजित नहीं हो सका। और जब 2022 आने पर भी मोदी सरकार इसके आयोजन को तैयार नहीं हुई तब इंडोनेशिया ने इसे आयोजित किया। और अब लोकसभा चुनाव के ठीक एक साल पहले चुनावी लाभ लेने के मकसद से मोदी सरकार 2023 में इसका आयोजन कर रही है। असल में यह है सारा खेल!
    9-10 सितम्बर को दिल्ली में होने जा रहे जी-20 के इस शिखर सम्मेलन से पूर्व विभिन्न मसलों पर इसकी 200 तैयारी बैठकें देश भर में जगह-जगह होनी हैं। बेहद रुटीनी इन बैठकों को मोदी सरकार किसी इवेंट की तरह आयोजित कर रही है और विकास के बड़े-बड़े दावे कर रही है। इन बैठकों में क्या हो रहा है और आगे क्या होगा इसे हम 28-29-30 मार्च, 2023 को उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में नैनीताल जिले के रामनगर के निकट ढिकुली में विज्ञान और पर्यावरण पर हुई बैठक से समझ सकते हैं। 
    ढिकुली बैठक में 28 मार्च की दोपहर बाद जी-20 के विभिन्न देशों के प्रतिनिधि ढिकुली स्थित ताज रिजार्ट पहुंचे। उन्होंने सरकार की आलीशान मेजबानी का लुत्फ उठाया और आराम किया। 29 मार्च को उन्होंने बैठक की और विज्ञान व पर्यावरण पर कुछ सामान्य बातों को दोहराया। इसके बाद 30 मार्च को वे कार्बेट पार्क घूमे, जंगली जानवरों के दर्शन किये और दोपहर बाद उनका काफिला सरकारी सुरक्षा में वापस लौट गया।
    गौरतलब है कि उक्त बैठक के आयोजन के लिये मोदी सरकार द्वारा करोड़ों रु. खर्च कर दिये गये। अन्य तैयारी बैठकों में भी इसी तरह पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा है और यह तमाशा 9-10 सितम्बर के शिखर सम्मेलन तक चलता रहेगा। यह विशुद्ध चुनाव प्रचार है और कुछ नहीं! ढिकुली बैठक हेतु तो पंतनगर हवाई अड्डे से लेकर रुद्रपुर और रामनगर तक सड़क किनारे ठेला-खोमचा लगाकर किसी तरह जीवन बसर करने वाले सैकड़ों लोगों को बेहद निर्ममतापूर्वक उजाड़ दिया गया और मुआवजे के नाम पर किसी को एक फूटी कौड़ी भी नहीं दी गयी।
    जहां तक बात विज्ञान की है तो खुद मोदी ढेरों अवैज्ञानिक बातें फरमाते हैं कि प्राचीन काल में भारत में प्लास्टिक सर्जरी होती थी और गणेश जी के धड़ पर हाथी का सर प्लास्टिक सर्जरी कर ही जोड़ा गया था। संघी नरेन्द्र मोदी और संघ-भाजपा से जुड़े दूसरे महानुभाव ऐसे मूर्खतापूर्ण वक्तव्य अक्सर ही देते रहते हैं। ये समाज को कितना वैज्ञानिक बनाना चाहते हैं यह इसी से स्पष्ट है कि इन्होंने एन सी ई आर टी की दसवीं की किताब से महान वैज्ञानिक डारविन की थ्योरी को ही हटा दिया है। ये तो असल में भारतीय समाज को चरम कूपमंडूक बनाना चाहते हैं जहां लोग जय श्री राम, जय श्री कृष्णा और राधे-राधे के जाप व कीर्तन करने और ‘लड्डू गोपाल’ को नहलाने-धुलाने और खिलाने में ही खुद को गौरवान्वित महसूस करें। कोरोना काल में सरकार की बद इंतजामी के कारण दुनिया में सबसे अधिक लोग भारत में मरे लेकिन कूपमंडूकों को लगता है कि मोदी ने कोरोना से दुनिया को बचा लिया। समाज में कूपमंडूकता जितनी अधिक बढ़ेगी हिंदू फासीवाद की जमीन भी उतनी ही मजबूत होगी।
    रही बात पर्यावरण की तो उत्तराखंड में ही अंधे पूंजीवादी विकास के कारण एक भरा-पूरा बसा हुआ शहर जोशीमठ धंस रहा है लेकिन उत्तराखंड में ही आयोजित ढिकुली बैठक में शामिल हुये जी-20 के विभिन्न देशों के पर्यावरण के प्रति ‘बेहद गंभीर’ अधिकारियों और वैज्ञानिकों ने इस पर चर्चा करने की कोई आवश्यकता महसूस नहीं की। असल में पर्यावरण संकट का मुख्य कारण अंधा पूंजीवादी विकास है और साम्राज्यवादी और बड़े पूंजीवादी देश खासकर साम्राज्यवादी देश पर्यावरण को सबसे अधिक नुकसान पहुंचा रहे हैं।
    जी-20 शिखर सम्मेलन के आयोजन के नाम पर मोदी सरकार दावे कर रही है कि देश बहुत विकास कर रहा है कि हम बस विश्व गुरू बनने ही वाले हैं। जबकि असलियत क्या है? आज भुखमरी, कुपोषण से लेकर शिशु मृत्यु दर और मीडिया की स्वतंत्रता से लेकर महिलाओं की स्थिति तक हर किसी वैश्विक सूचकांक में भारत का प्रदर्शन निम्नतम स्तरों पर पहुंच चुका है। इस समय विश्व भुखमरी सूचकांक में भारत विश्व के 121 देशों में 107 वें स्थान पर है। दुनिया में सबसे अधिक टी बी के मरीज भारत में ही हैं। पिछले करीब चार दशकों में इस समय देश में सबसे अधिक बेरोजगारी है। रोजगार की मांग कर रहे युवाओं पर लाठियां बरसाना एकदम आम हो चुका है। और अब तो अग्निपथ-अग्निवीर के नाम पर सेना का सुरक्षित रोजगार भी मोदी सरकार ने युवाओं से छीन लिया है।
    मोदी सरकार ने 2022 तक सभी को पक्का घर देने का वायदा किया था लेकिन आज देश में हालत यह है कि रेलवे स्टेशन और फुटपाथ जैसी जगहों पर रहने को मजबूर उजड़ी हुई आबादी लगातार बढ़ती ही जा रही है। मोदी सरकार ने किसानों की आय दोगुनी करने का वायदा किया था लेकिन घोर किसान विरोधी तीन कानून पारित कर देश की खेती-किसानी को कारपोरेट पूंजीपतियों और बहुराष्ट्रीय निगमों के हवाले करने का इंतजाम कर दिया, जिसके विरुद्ध देश में ऐतिहासिक किसान आंदोलन खड़ा हुआ और किसानों ने तीनों कानूनों को वापस करवा कर ही दम लिया।
    और यदि बात देश की बहुसंख्यक आबादी मजदूरों की करें तो उन पर तो मोदी सरकार ने आजाद भारत में सबसे बड़ा हमला करते हुये घोर मजदूर विरोधी चार लेबर कोड्स ही पारित कर दिये हैं। आज देश के मजदूरों का अधिकांश हिस्सा अमानवीय हालातों में जीवन जीने को मजबूर है। 
    इजारेदार पूंजीपतियों के हितों को एकदम नंगे रूपों में आगे बढ़ा रही मोदी सरकार के विकास के दावे एकदम खोखले हैं। विश्व गुरू बनने के दिवास्वप्न में डूबे संघी नरेन्द्र मोदी हिंडेनबर्ग-अडानी प्रकरण में पूरी दुनिया में अपनी फजीहत करा चुके हैं। मोदी सरकार के राज में आज भारत के दक्षिण एशिया के सभी मुल्कों से संबंध बिगड़े हुये हैं और चीनी साम्राज्यवादियों की इस क्षेत्र में घुसपैठ लगातार बढ़ती ही जा रही है। जिस भूटान के साथ भारत के विस्तारवादी शासक बिग बॉस सरीखा व्यवहार करते थे आज वह भी इन्हें आंखें दिखा रहा है। मोदी सरकार की घोर अमेरिका परस्त विदेश नीति के कारण अब ईरान जैसे भारत के परंपरागत सहयोगी भी भारत से दूरी बना रहे हैं। 
    आज भारतीय समाज आर्थिक-सामाजिक-सांस्कृतिक हर मामले में गर्त में जा रहा है और संघ-भाजपा ने अपनी खतरनाक विघटनकारी राजनीति के बल पर देश को फासीवाद के मुहाने पर पहुंचा दिया है। 
    ऐसे में आवश्यक है कि जी-20 के शिखर सम्मेलन के नाम पर मोदी सरकार द्वारा की जा रही चुनावी राजनीति का भंडाफोड़ किया जाये। इनके फ़ासीवादी मंसूबों के विरुद्ध व्यापक जन गोलबंदी की जाये। खुद जी-20 की असलियत और इसके सदस्य साम्राज्यवादी और बड़े पूंजीवादी मुल्कों के शासकों के जनविरोधी चरित्र को उजागर किया जाये। साम्राज्यवादियों खासकर अमेरिकी साम्राज्यवादियों को उनके काले कारनामों के लिये कटघरे में खड़ा किया जाये। और जी-20 के सितंबर माह में होने जा रहे शिखर सम्मेलन के विरुद्ध अपनी आवाज को मुखर किया जाये।
 

आलेख

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