मई दिवस के शहीद और 8 घण्टे का कार्यदिवस

(मई 1886 में अमेरिका में काम के घण्टे 8 करने की हमारे पूर्वजों ने एक जंग छेड़ी थी। उनके संघर्ष के दम पर ही दुनिया भर के साथ भारत में भी 8 घण्टे के कार्यदिवस का अधिकार मजदूर वर्ग को मिला। पर बीते दो-तीन दशकों से सरकार और पूंजीपति वर्ग इस 8 घण्टे कार्यदिवस के हक पर हमला बोलने में जुटा है। पहले ओवरटाइम के नाम पर फिर हफ्ते में 4 दिन काम के नाम पर मजदूरों के साथ षड्यंत्र करते हुए मालिक वर्ग व्यवहारतः 12-12 घण्टे ज्यादातर क्षेत्रां में काम लेने लगे हैं। नयी श्रम संहिताओं के सहारे मालिक मजदूरों को और चूसने की तैयारी कर रहे हैं। कई राज्य सरकारें खुद ही आगे बढ़कर मजदूर विरोधी प्रावधान लागू कर रही हैं। ऐसे में भारत का मजदूर वर्ग 8 घण्टे कार्यदिवस का हक एक हद तक खो चुका है। और जिन बचे-खुचे क्षेत्रों में यह बचा हुआ है वहां भी इस पर तीखा हमला बोला जा रहा है।

इन परिस्थितियों में 8 घण्टे कार्यदिवस को बचाना आज भारत के मजदूर वर्ग का महत्वपूर्ण कार्यभार बनता है। इस कार्यदिवस को बचाने की प्रक्रिया में जरूरी है कि मई दिवस के शिकागो के शहीदों, उनके लक्ष्यों को जाने समझें। उनके संघर्ष से प्रेरणा ले संघर्षों के नये ज्वार की तैयारी करें।

शिकागो के शहीद यद्यपि अपनी विचारधारा में अराजकतावाद से प्रभावित थे पर अपनी आदर्श व्यवस्था के बतौर वे हमेशा समाजवाद चाहते थे। पूंजीवादी शोषण व पूंजीवादी राज्य के प्रति उनकी नफरत उनके हर पत्र, हर अदालती बयान में महसूस की जा सकती थी।

आज मई दिवस में समाजवादी क्रांति के संघर्ष को आगे बढ़ाने का संकल्प का दिन बन जाता है। समाजवाद की दिशा में किये गये संघर्ष से ही 8 घण्टे कार्यदिवस समेत बाकी कानूनी अधिकारों की मजदूर वर्ग रक्षा कर सकता है।

शिकागो के शहीदों को 11 नवम्बर 1887 को फांसी दे दी गयी। फांसी से पूर्व चले मुकदमे के प्रहसन में मजदूर वर्ग के इन नेताओं ने अपनी बातें बड़ी बेबाकी के साथ रखीं। अदालत में मजदूर नेता पार्सन्स ने 8 घण्टे लम्बा बयान दिया। यहां पार्सन्स की पत्नी लूसी पार्सन्स का अदालत में बयान और पार्सन्स का पत्नी के नाम अंतिम पत्र दिया जा रहा है- सम्पादक)

अदालत में लूसी पार्सन्स का बयान

‘‘जज आल्टगेल्ड, क्या आप इस बात से इन्कार करेंगे कि आपके जेलखाने गरीबों के बच्चों से भरे हुए हैं, अमीरों के बच्चों से नहीं? क्या आप इन्कार करेंगे कि आदमी इसलिए चोरी करता है क्योंकि उसका पेट खाली होता है? क्या आपमें यह कहने का साहस है कि वे भूली-भटकी बहनें, जिनकी आप बात करते हैं, एक रात में दस से बीस व्यक्तियों के साथ सोने में प्रसन्नता महसूस करती हैं, अपनी अंतड़ियों को दगवाकर बहुत ख़ुश होती हैं?’’

पूरे हॉल में विरोध का शोर गूंजने लगाः ‘‘शर्मनाक’’ और ‘‘घृणास्पद’’ की आवाज़ें उठने लगीं। एक पादरी उठा और आवेश से कांपते हुए अपने छाते को जोर-शोर से हिलाकर उसने जज से हस्तक्षेप करने को कहा। दूसरों ने भी शोर किया। परन्तु जज आल्टगेल्ड ने, जैसा कि अगले दिन अखबारों ने भी लिखा, प्रशंसनीय ढंग से आचरण किया। उसने अपने हाथ के इशारे से शोर-शराबे को शान्त किया। उसने व्यवस्था बनाये रखने का आदेश दिया और उसे लागू किया। उसने कहा, ‘‘मंच पर एक महिला खड़ी है। क्या हम इतने उद्दण्ड होकर नम्रता की धज्जियां उड़ायेंगे ?’’ फिर श्रीमती पार्सन्स की ओर मुड़ते हुए उसने कहा, ‘‘कृपया आप अपनी बात जारी रखें, श्रीमती पार्सन्स, और उसके बाद अगर आप चाहेंगी तो मैं आपके सवाल का जवाब दूंगा।’’ तो यह थी बहुचर्चित लूसी पार्सन्स!

हॉल में फुसफुसाहट हुई और श्रीमती पार्सन्स ने, जो इस दौरान पूरे समय दृढ़तापूर्वक खड़ी रही थी, बोलना शुरू किया, ‘‘आप सब लोग जो सुधार की बातें करते हैं, सुधार का उपदेश देते हैं और सुधार की गाड़ी पर चढ़कर स्वर्ग तक पहुंचना चाहते हैं, आप लोगों की सोच क्या है? जज आल्टगेल्ड कैदियों के लिए धारीदार पोशाक की जगह भूरे सूट की वकालत करते हैं। वह रचनात्मक कार्य, अच्छी किताबों और हवादार, साफ-सुथरी कोठरियों की वकालत करते हैं। बेशक उनका यह कहना सही है कि कठोर दण्ड की सजा पाये कैदियों को पहली बार अपराध के लिए सजा भुगतने वाले कैदियों से अलग रखा जाना चाहिए। वह एक जज हैं और इसलिए जब वह न्याय के पक्ष में ढेर सारी बातें करते हैं मुझे आश्चर्य नहीं होता क्योंकि अगर कोई चीज मौजूद ही नहीं है तो भी उसकी चर्चा तो अवश्य होनी चाहिए। नहीं, मैं जज आल्टगेल्ड की आलोचना नहीं कर रही हूं। मैं उनसे सहमत हूं जब वे यंत्रणा की भयावहता के विरुद्ध आवाज़ उठाते हैं। मैंने एक बार नहीं, अनेकों बार तकलीफें और यातनाएं बर्दाश्त की हैं। मेरे शरीर पर उसके ढेरों निशान हैं लेकिन मैं तुम्हारे सुधारों के झांसे में नहीं आती। यह समाज तुम्हारा है, जज आल्टगेल्ड। तुम लोगों ने इसे बनाया है और यही वह समाज है जो अपराधियों को पैदा करता है। एक स्त्री अपना शरीर बेचने लगती है क्योंकि यह भूखे मरने की तुलना में थोड़ा बेहतर है। एक इंसान इसलिए चोर बन जाता है क्योंकि तुम्हारी व्यवस्था उसे कानून तोड़ने वाला घोषित करती है। वह तुम्हारे नीतिशास्त्र को देखता है जो कि जंगली जानवरों के आचार-व्यवहार का शास्त्र है और तुम उसे जेलखाने में ठूंस देते हो क्योंकि वह तुम्हारे आचार-व्यवहार का पालन नहीं करता है। और अगर मजदूर एकजुट होकर रोटी के लिए संघर्ष करते हैं, एक बेहतर जिंदगी के लिए लड़ाई लड़ते हैं, तो तुम उन्हें भी जेल भेज देते हो और अपनी आत्मा को संतुष्ट करने के लिए हर-हमेशा सुधार की बात करते हो, सुधार की बातें। नहीं, जज आल्टगेल्ड, जब तक तुम इस व्यवस्था की, इस नीतिशास्त्र की हिफाजत और रखवाली करते रहोगे, तब तक तुम्हारी जेलों की कोठरियां हमेशा ऐसे स्त्री-पुरुषों से भरी रहेंगी जो मौत की बजाय जीवन चुनेंगे, वह अपराधी जीवन जो तुम उन पर थोपते हो।’’

आलेख

अमरीकी साम्राज्यवादी यूक्रेन में अपनी पराजय को देखते हुए रूस-यूक्रेन युद्ध का विस्तार करना चाहते हैं। इसमें वे पोलैण्ड, रूमानिया, हंगरी, चेक गणराज्य, स्लोवाकिया और अन्य पूर्वी यूरोपीय देशों के सैनिकों को रूस के विरुद्ध सैन्य अभियानों में बलि का बकरा बनाना चाहते हैं। इन देशों के शासक भी रूसी साम्राज्यवादियों के विरुद्ध नाटो के साथ खड़े हैं।

किसी को इस बात पर अचरज हो सकता है कि देश की वर्तमान सरकार इतने शान के साथ सारी दुनिया को कैसे बता सकती है कि वह देश के अस्सी करोड़ लोगों (करीब साठ प्रतिशत आबादी) को पांच किलो राशन मुफ्त हर महीने दे रही है। सरकार के मंत्री विदेश में जाकर इसे शान से दोहराते हैं। 

आखिरकार संघियों ने संविधान में भी अपने रामराज की प्रेरणा खोज ली। जनवरी माह के अंत में ‘मन की बात’ कार्यक्रम में मोदी ने एक रहस्य का उद्घाटन करते हुए कहा कि मूल संविधान में राम, लक्ष्मण, सीता के चित्र हैं। संविधान निर्माताओं को राम से प्रेरणा मिली है इसीलिए संविधान निर्माताओं ने राम को संविधान में उचित जगह दी है।
    

मई दिवस पूंजीवादी शोषण के विरुद्ध मजदूरों के संघर्षों का प्रतीक दिवस है और 8 घंटे के कार्यदिवस का अधिकार इससे सीधे जुड़ा हुआ है। पहली मई को पूरी दुनिया के मजदूर त्यौहार की

सुनील कानुगोलू का नाम कम ही लोगों ने सुना होगा। कम से कम प्रशांत किशोर के मुकाबले तो जरूर ही कम सुना होगा। पर प्रशांत किशोर की तरह सुनील कानुगोलू भी ‘चुनावी रणनीतिकार’ है