निकम्मी मोदी सरकार को आइना दिखाता मणिपुर

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मई, 2023 में मणिपुर में जो आग भाजपा-संघ के लोगों ने अनूसूचित जनजाति आरक्षण में जबरदस्ती मैतई समुदाय को शामिल कर के लगायी थी, वह आग आज तक नहीं बुझ पायी। मोदी सरकार के सारे पैंतरे-दांव मणिपुर में असफल हो गये हैं। सैकड़ों लोग वहां मारे जा चुके हैं और हजारों-हजार बेघर हो गये हैं। सम्पत्ति का नुकसार करोड़ों रुपये में है। मणिपुर का पूरी तरह से साम्प्रदायिक-सामुदायिक विभाजन हो गया है। कुकी जन समुदाय का इम्फाल घाटी में तो मैतई जन-समुदाय का पहाड़़ी क्षेत्रों से पूरी तरह से पलायन हो चुका है। 
    
दो साल से भी अधिक का समय हो चुका है परन्तु मोदी सरकार किसी भी तरह से वहां शांति न तो कायम कर सकी है और न समुदायों के बीच के गहरे मतभेद व तनाव को हल कर सकी। हद तो यह हो गई कि एक पूर्व गृह सचिव अजय कुमार भल्ला को राज्यपाल बनाने, राष्ट्रपति शासन लगाने, सेना-पुलिस को खुली छूट देने, इण्टरनेट पर प्रतिबंध लगाने कर्फ्यू आदि लगाने के बावजूद वह मणिपुर में शांति कायम नहीं कर सकी। आये दिन आम लोग मारे जा रहे हैं। मैतई और कुकी आतंकवादी हथियारबंद समूह नृशंस हत्याकांड को जन्म देते रहे हैं। 
    
असल में हिन्दू फासीवादी ही मणिपुर के आज के बुरे हालात के लिए पूरी तरह से जिम्मेवार हैं। हिन्दू फासीवादियों ने अपने काले कारनामों से हिन्दू बहुल मैतई जन समुदाय को ईसाई बहुल कूकी व नागा जन समुदाय से अपने घृणित साम्प्रदायिक एजेण्डे के तहत भिड़ा दिया। मणिपुर को आग के हवाले कर दिया। और जब आग बेकाबू हो गयी तो मोदी जी, अमित जी ने अपने-अपने मुंह में दही जमा लिया। 
    
हिन्दू फासीवादियों के मंसूबों की बात कही जायेगी तो शायद ये नारा लगायें ‘मणिपुर तो झांकी है बाकि भारत बाकी है’। पूरी दुनिया को ज्ञान बांटने वाले संघ प्रमुख मोहन भागवत के मुंह में भी मणिपुर का नाम कभी नहीं आता है। 

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राष्ट्रवाद एक ऐतिहासिक परिघटना है जिसका पहले प्रगतिशील पहलू प्रधान था, अब प्रतिक्रियावादी पहलू प्रधान है। समाज की गति में इसकी जड़ें थीं- पूंजीवाद की उत्पत्ति और विकास में। प्रगतिशील राष्ट्रवाद ने समाज को आगे ले जाने का काम किया। अब प्रतिक्रियावादी राष्ट्रवाद समाज को आगे जाने में बाधा बन रहा है। और पूंजीपति वर्ग अंधराष्ट्रवाद के रूप में इसका इस्तेमाल कर रहा है।

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