‘‘संघ नहीं मनायेगा शताब्दी वर्ष’’

मोहन भागवत जो कि संघ प्रमुख हैं ने घोषणा की कि अगले साल 2025 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अपने शताब्दी वर्ष का जश्न नहीं मनायेगा। उपलब्धियों का ढिंढोरा नहीं पीटेगा।
    
एक ओर मोहन भागवत ऐसी बातें कर रहे थे और दूसरी तरफ भारत के लोगों को धमका भी रहे थे। कह रहे थेः ‘कुछ बुनियादी गलतियों का इलाज जरूरी’, ‘वर्षों की गुलामी का दिमाग पर गहरा असर है उसका उपचार जरूरी’, देश में धर्म का शासन होना चाहिए। और हिन्दुओं को अपने को गर्व से हिन्दू कहना चाहिए। 
    
भागवत अपने शताब्दी वर्ष में अपनी क्या उपलब्धियां गिनायेंगे। ये कि उन्होंने आजादी की लड़ाई में गद्दारी की थी। कि उन्होंने सौ वर्षों में हजारों-हजार दंगे करवाये। कि ये कि संघ ने कितने आदिवासियों का धर्मांतरण करवाया। कि ये कि संघ प्रमुख कोई दलित, कोई औरत आज तक नहीं हुई। 
    
संघ के लिए अच्छा है कि वह शताब्दी वर्ष न मनाये। न अपनी उपलब्धियों का ढिंढोरा पीटे अन्यथा उसकी पोल दर पोल खुलती जायेगी। क्योंकि उसके शताब्दी वर्ष पर उसकी तारीफ करने को बाकी भी तैयार बैठे हैं। 

आलेख

अमरीकी साम्राज्यवादी यूक्रेन में अपनी पराजय को देखते हुए रूस-यूक्रेन युद्ध का विस्तार करना चाहते हैं। इसमें वे पोलैण्ड, रूमानिया, हंगरी, चेक गणराज्य, स्लोवाकिया और अन्य पूर्वी यूरोपीय देशों के सैनिकों को रूस के विरुद्ध सैन्य अभियानों में बलि का बकरा बनाना चाहते हैं। इन देशों के शासक भी रूसी साम्राज्यवादियों के विरुद्ध नाटो के साथ खड़े हैं।

किसी को इस बात पर अचरज हो सकता है कि देश की वर्तमान सरकार इतने शान के साथ सारी दुनिया को कैसे बता सकती है कि वह देश के अस्सी करोड़ लोगों (करीब साठ प्रतिशत आबादी) को पांच किलो राशन मुफ्त हर महीने दे रही है। सरकार के मंत्री विदेश में जाकर इसे शान से दोहराते हैं। 

आखिरकार संघियों ने संविधान में भी अपने रामराज की प्रेरणा खोज ली। जनवरी माह के अंत में ‘मन की बात’ कार्यक्रम में मोदी ने एक रहस्य का उद्घाटन करते हुए कहा कि मूल संविधान में राम, लक्ष्मण, सीता के चित्र हैं। संविधान निर्माताओं को राम से प्रेरणा मिली है इसीलिए संविधान निर्माताओं ने राम को संविधान में उचित जगह दी है।
    

मई दिवस पूंजीवादी शोषण के विरुद्ध मजदूरों के संघर्षों का प्रतीक दिवस है और 8 घंटे के कार्यदिवस का अधिकार इससे सीधे जुड़ा हुआ है। पहली मई को पूरी दुनिया के मजदूर त्यौहार की

सुनील कानुगोलू का नाम कम ही लोगों ने सुना होगा। कम से कम प्रशांत किशोर के मुकाबले तो जरूर ही कम सुना होगा। पर प्रशांत किशोर की तरह सुनील कानुगोलू भी ‘चुनावी रणनीतिकार’ है